भाग - दो
सम्पूर्ण संसार ईश्वर से व्याप्त है। उसी का कार्य है और कारण से कार्य व्याप्त होता है, जैसे सूत से व्याप्त है वस्त्र। बहुत दिनों से यह बात कही जाती रही थी, लेकिन इस ओर अब आंदोलन चलाने वालों का ध्यान नहीं है। जो अभियान चल रहे हैं, वो रामजी को मानक बनाकर, प्रेरणा का स्रोत बनाकर, उदाहरण बनाकर चलाए जाएं, तो सफल होंगे। जब आपको ज्ञान ही नहीं है कि धन की पवित्रता कैसे होती है, इसके लिए किन किन उपायों को सामने लाना चाहिए और हमको कैसा होना चाहिए, तो कैसे चलेगा? यदि हम चाहते हैं कि यह अभियान चले और सफल हो, तो हमें भगवान राम से सीखना पड़ेगा।
लिखा है कि जब भरत जी जा रहे थे अयोध्या के लिए, तब बहुत चिंतित थे कि राज्य की संपत्ति की सुरक्षा कैसे होगी। यह चिंता बाद में भी बनी रही। किसी ने पूछा उनसे, आप इतने बड़े राजा हैं और आपको बिल्कुल लोभ नहीं है, कोई आपका औचित्य नहीं है कि मैं राजा बन जाऊं, जिसके लिए देवता भी तरसते हैं, कुबेर भी लज्जित होते हैं और आपको यहां धन की सुरक्षा की चिंता हो रही है, यह कैसे? आपको चिंता है कि धन की हानि नहीं हो जाए, आप एक आसक्त व्यक्ति की तरह व्यवहार कर रहे हैं। तब भरत जी ने कहा कि सारी संपत्ति रामजी की है, मैं तो उनका नौकर हूं, मैं उनको स्वामी मानता हूं, थोड़ा भी कुछ नुकसान हो जाएगा, तो हम बड़े अपराधी हो जाएंगे, हमें सेवक कहलाने का मान नहीं रहेगा। सेवक का मतलब होता है कि वह स्वामी के ऐश्वर्य और मान को बढ़ाए और यदि जो बढ़ा हुआ है, उसे ही घटा दे, उसकी रक्षा नहीं करे, तो फिर कैसे चलेगा? तो रामराज्य का यह सूत्र है - सम्पूर्ण संपत्ति ईश्वर की है। उस संपत्ति का हम उतना ही उपभोग करें, जिससे हमारी नितांत आवश्यकताएं तृप्त हों, बाकी जो हम जरूरत से अधिक संचय या उपभोग करते हैं, वह गलत है।
रामजी भी जो अभियान चलाते हैं, वे इसलिए अभियान नहीं चलाते कि लंका से हमें सारा माल-संपत्ति मिल जाए। वे भी मानते हैं कि सम्पूर्ण संपत्ति आध्यात्मिक दृष्टि से ईश्वर की है, इसका सही विनियोग, सही अर्जन, सही संरक्षण, सही भंडारण का भाव होना चाहिए।
जब बाली को रामजी ने मारा, तो बाली ने पूछा कि आपको मारने का क्या अधिकार है, राम जी ने कहा, मैं रघुवंशी हूं, मैंने रघुवंशियों के विधान के तहत आपको मारा है, अभी रघुवंशियों के राजा भरत हैं, मैं उनकी आज्ञा व सिद्धांत के परिपालन क्रम में आपको मार रहा हूं। रघुवंशियों का नियम है, जो भाई की पत्नी को रख ले, वह मारा जाता है, आपने छोटे भाई की पत्नी को रख लिया। मैं यों ही आपको नहीं मार रहा हूं, मैं रघुवंशियों के नियम व शास्त्र के अनुरूप यह कर रहा हूं।
वहीं बाली के मारे जाने के बाद सुग्रीव ने बाली की पत्नी को रख लिया, ऐसा प्रावधान है। अगर भाई मर जाए, तो उसकी पत्नी से विवाह हो सकता है, विवाह न होगा, तो समाज में अपवित्रता व अराजकता बढ़ेगी। आयु है, इच्छाएं हैं, महत्वाकांक्षाएं हैं। सुग्रीव ने जो किया, वह समाज सम्मत था, लेकिन बाली ने तो अपने छोटे भाई के जीते जी उसकी पत्नी को बलात रख लिया था। रामजी वही करते हैं, जो नियम व समाज सम्मत है। हम यदि खोज करें, तो पाएंगे कि शास्त्रों की मान्यता के आधार पर सभी समस्याओं का समाधान है।
आज जो बातें हो रही हैं, वह मनमानी ढंग से हो रही हैं। हर आदमी चाहता है कि हमारे स्वयं का धन, संप्रभुता, मान, बढ़ जाए। यह जो व्यवस्था संविधान के आधार पर बनी है, उसमें तमाम खामियां रह गई हैं। लोगों को आज न उपनिषद से कोई लेना-देना है न पुराणों से लेना-देना है और न इतिहास से कुछ लेना-देना है। यदि किसी भी तरह के अच्छे संघर्ष को सफलता पूर्वक लंबे समय तक चलाना है, तो इस काम को शास्त्र-सम्मत दिशा में ले जाना होगा। दुनिया में जो लोग पवित्र हैं, जिनका आचरण, भोग, धन पवित्र है, व्यवहार पवित्र है, उसमें अधिकांश लोग जाने या अनजाने रूप में शास्त्र के तहत ही चल रहे हैं। महात्मा गांधी को राम पर विश्वास था, रामराज्य पर विश्वास था, इसलिए वे किसी गद्दी या राज-पाट के पीछे नहीं दौड़े। आज जो लोग अभियान चला रहे हैं, उन सभी लोगों को राम जी के अभियान पर ध्यान देना चाहिए। कैसे आतंकवाद की समाप्ति के लिए लोग बिना वेतन रामजी के साथ लग गए थे, जहां भोजन की भी कोई सामूहिक व्यवस्था नहीं थी, वानर इत्यादि अपना भोजन स्वयं जुटाते थे। रामजी के पास भी कंबल, धोती, आसान कुछ भी नहीं था, लेकिन लोगों के सामने अपनी बात को उन्होंने इस तरह से प्रस्तुत किया कि संसार में बहुत गलत हो रहा है, आपका ही धन लंका में है, आपके साथ अन्याय हो रहा है, भयानक शोषण हो रहा है, देखिए हम भी चल रहे हैं, हमारे पैरों में भी जूता नहीं है, झोली में पैसा नहीं है, अंगुलियों में अंगूठी नहीं है, हमारे सिर में भी सुगंधित तेल नहीं है, वस्त्र पर इत्र नहीं है और मैं आपके साथ हूं, यह लड़ाई हम सबके लिए है।... और असर देखिए, सब रामजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आतंकवाद और भ्रष्टाचार मिटाने के लिए चल पड़ते हैं।
अब तो अनशन भी बहुत महंगा होने लगा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ जो अनशन किया गया, उसमें बहुत पैसा खर्च हुआ। आडवाणी जी ने भी यात्रा की। अपने समय में गांधी जी ने जो यात्रा की थी, उसी से प्रेरित होकर ये लोग यात्रा करते हैं, किन्तु गांधी जी ने पैदल यात्रा की थी, उनके लोग जमीन पर बैठकर खाते थे, कहीं उन्हें छप्पन भोग नहीं मिलता था, लेकिन अब नेताओं की यात्राओं का बजट प्रस्तुत किया जाए, तो आश्चर्य होगा। एसी गाड़ी, होटल में ठहरना, खूब खाना-पीना। अगर इनसे पूछ लिया जाए कि कितना खर्च हुआ यात्रा में, तो ये लोग धनी घरानों के बराबर सिद्ध हो जाएंगे। फिर सोचिए, आपके साथ गरीब भला क्यों खड़ा होगा? क्रमश:
सम्पूर्ण संसार ईश्वर से व्याप्त है। उसी का कार्य है और कारण से कार्य व्याप्त होता है, जैसे सूत से व्याप्त है वस्त्र। बहुत दिनों से यह बात कही जाती रही थी, लेकिन इस ओर अब आंदोलन चलाने वालों का ध्यान नहीं है। जो अभियान चल रहे हैं, वो रामजी को मानक बनाकर, प्रेरणा का स्रोत बनाकर, उदाहरण बनाकर चलाए जाएं, तो सफल होंगे। जब आपको ज्ञान ही नहीं है कि धन की पवित्रता कैसे होती है, इसके लिए किन किन उपायों को सामने लाना चाहिए और हमको कैसा होना चाहिए, तो कैसे चलेगा? यदि हम चाहते हैं कि यह अभियान चले और सफल हो, तो हमें भगवान राम से सीखना पड़ेगा।
लिखा है कि जब भरत जी जा रहे थे अयोध्या के लिए, तब बहुत चिंतित थे कि राज्य की संपत्ति की सुरक्षा कैसे होगी। यह चिंता बाद में भी बनी रही। किसी ने पूछा उनसे, आप इतने बड़े राजा हैं और आपको बिल्कुल लोभ नहीं है, कोई आपका औचित्य नहीं है कि मैं राजा बन जाऊं, जिसके लिए देवता भी तरसते हैं, कुबेर भी लज्जित होते हैं और आपको यहां धन की सुरक्षा की चिंता हो रही है, यह कैसे? आपको चिंता है कि धन की हानि नहीं हो जाए, आप एक आसक्त व्यक्ति की तरह व्यवहार कर रहे हैं। तब भरत जी ने कहा कि सारी संपत्ति रामजी की है, मैं तो उनका नौकर हूं, मैं उनको स्वामी मानता हूं, थोड़ा भी कुछ नुकसान हो जाएगा, तो हम बड़े अपराधी हो जाएंगे, हमें सेवक कहलाने का मान नहीं रहेगा। सेवक का मतलब होता है कि वह स्वामी के ऐश्वर्य और मान को बढ़ाए और यदि जो बढ़ा हुआ है, उसे ही घटा दे, उसकी रक्षा नहीं करे, तो फिर कैसे चलेगा? तो रामराज्य का यह सूत्र है - सम्पूर्ण संपत्ति ईश्वर की है। उस संपत्ति का हम उतना ही उपभोग करें, जिससे हमारी नितांत आवश्यकताएं तृप्त हों, बाकी जो हम जरूरत से अधिक संचय या उपभोग करते हैं, वह गलत है।
रामजी भी जो अभियान चलाते हैं, वे इसलिए अभियान नहीं चलाते कि लंका से हमें सारा माल-संपत्ति मिल जाए। वे भी मानते हैं कि सम्पूर्ण संपत्ति आध्यात्मिक दृष्टि से ईश्वर की है, इसका सही विनियोग, सही अर्जन, सही संरक्षण, सही भंडारण का भाव होना चाहिए।
जब बाली को रामजी ने मारा, तो बाली ने पूछा कि आपको मारने का क्या अधिकार है, राम जी ने कहा, मैं रघुवंशी हूं, मैंने रघुवंशियों के विधान के तहत आपको मारा है, अभी रघुवंशियों के राजा भरत हैं, मैं उनकी आज्ञा व सिद्धांत के परिपालन क्रम में आपको मार रहा हूं। रघुवंशियों का नियम है, जो भाई की पत्नी को रख ले, वह मारा जाता है, आपने छोटे भाई की पत्नी को रख लिया। मैं यों ही आपको नहीं मार रहा हूं, मैं रघुवंशियों के नियम व शास्त्र के अनुरूप यह कर रहा हूं।
वहीं बाली के मारे जाने के बाद सुग्रीव ने बाली की पत्नी को रख लिया, ऐसा प्रावधान है। अगर भाई मर जाए, तो उसकी पत्नी से विवाह हो सकता है, विवाह न होगा, तो समाज में अपवित्रता व अराजकता बढ़ेगी। आयु है, इच्छाएं हैं, महत्वाकांक्षाएं हैं। सुग्रीव ने जो किया, वह समाज सम्मत था, लेकिन बाली ने तो अपने छोटे भाई के जीते जी उसकी पत्नी को बलात रख लिया था। रामजी वही करते हैं, जो नियम व समाज सम्मत है। हम यदि खोज करें, तो पाएंगे कि शास्त्रों की मान्यता के आधार पर सभी समस्याओं का समाधान है।
आज जो बातें हो रही हैं, वह मनमानी ढंग से हो रही हैं। हर आदमी चाहता है कि हमारे स्वयं का धन, संप्रभुता, मान, बढ़ जाए। यह जो व्यवस्था संविधान के आधार पर बनी है, उसमें तमाम खामियां रह गई हैं। लोगों को आज न उपनिषद से कोई लेना-देना है न पुराणों से लेना-देना है और न इतिहास से कुछ लेना-देना है। यदि किसी भी तरह के अच्छे संघर्ष को सफलता पूर्वक लंबे समय तक चलाना है, तो इस काम को शास्त्र-सम्मत दिशा में ले जाना होगा। दुनिया में जो लोग पवित्र हैं, जिनका आचरण, भोग, धन पवित्र है, व्यवहार पवित्र है, उसमें अधिकांश लोग जाने या अनजाने रूप में शास्त्र के तहत ही चल रहे हैं। महात्मा गांधी को राम पर विश्वास था, रामराज्य पर विश्वास था, इसलिए वे किसी गद्दी या राज-पाट के पीछे नहीं दौड़े। आज जो लोग अभियान चला रहे हैं, उन सभी लोगों को राम जी के अभियान पर ध्यान देना चाहिए। कैसे आतंकवाद की समाप्ति के लिए लोग बिना वेतन रामजी के साथ लग गए थे, जहां भोजन की भी कोई सामूहिक व्यवस्था नहीं थी, वानर इत्यादि अपना भोजन स्वयं जुटाते थे। रामजी के पास भी कंबल, धोती, आसान कुछ भी नहीं था, लेकिन लोगों के सामने अपनी बात को उन्होंने इस तरह से प्रस्तुत किया कि संसार में बहुत गलत हो रहा है, आपका ही धन लंका में है, आपके साथ अन्याय हो रहा है, भयानक शोषण हो रहा है, देखिए हम भी चल रहे हैं, हमारे पैरों में भी जूता नहीं है, झोली में पैसा नहीं है, अंगुलियों में अंगूठी नहीं है, हमारे सिर में भी सुगंधित तेल नहीं है, वस्त्र पर इत्र नहीं है और मैं आपके साथ हूं, यह लड़ाई हम सबके लिए है।... और असर देखिए, सब रामजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आतंकवाद और भ्रष्टाचार मिटाने के लिए चल पड़ते हैं।
अब तो अनशन भी बहुत महंगा होने लगा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ जो अनशन किया गया, उसमें बहुत पैसा खर्च हुआ। आडवाणी जी ने भी यात्रा की। अपने समय में गांधी जी ने जो यात्रा की थी, उसी से प्रेरित होकर ये लोग यात्रा करते हैं, किन्तु गांधी जी ने पैदल यात्रा की थी, उनके लोग जमीन पर बैठकर खाते थे, कहीं उन्हें छप्पन भोग नहीं मिलता था, लेकिन अब नेताओं की यात्राओं का बजट प्रस्तुत किया जाए, तो आश्चर्य होगा। एसी गाड़ी, होटल में ठहरना, खूब खाना-पीना। अगर इनसे पूछ लिया जाए कि कितना खर्च हुआ यात्रा में, तो ये लोग धनी घरानों के बराबर सिद्ध हो जाएंगे। फिर सोचिए, आपके साथ गरीब भला क्यों खड़ा होगा? क्रमश: