Sunday 2 October 2016

महर्षि भारद्वाज : राम कथा के अनुपम प्रेमी

भाग - २
दर्शन शास्त्र में बहुत महत्वपूर्ण बात बताई जाती है, विद्वता कैसे पैदा होती है, जिज्ञासा होती है, तभी विद्वता की शुरुआत होती है। जिज्ञासा वहां होती है, जहां संदेह रहता है, यह नियम है। जिसके सम्बंध में हमारा आकर्षण है, जिससे लाभ या हानि होने वाली है, ज्यों ही हम यह जानने की इच्छा करते हैं, जिज्ञासा होती है, फिर उसके बाद ही समाधान निकलता है, विद्वता उत्पन्न होती है।
भारद्वाज जी ने संदेह जताया। एक राम ने रावण के सभी करीबियों को मारा, जो अपनी पत्नी के अपहरण के बाद विलाप कर रहे थे, एक राम वह भी हैं, जिनकी महिमा गाई जा रही है, क्या वही व्यक्ति सामान्य लोगों के समान रो रहा है, बिलख रहा है, क्या यह वही राम हैं, जिनके नाम का भगवान शंकर जैसे देवता जप करते हैं। भगवान शंकर जी से पार्वती जी ने भी यही पूछा था, रामायण में लिखा है। भगवान शंकर से कहती हैं, आप दिन रात, राम, राम जपते रहते हैं, अत्यंत आदर के साथ जपते हैं। आपकी संपूर्ण शक्ति राम नाम जप रही है। आप जो चाहते हैं, वही होता है। 
तो भारद्वाज जी वस्तुत: संशयग्रस्त नहीं हैं। जिज्ञासा के प्रयोजक तत्व हैं, संदेह, संशय, प्रयोजन। जिसे प्रयोजन नहीं होगा, वह संदेह नहीं करेगा, जिसे संदेह नहीं होगा, वह जिज्ञासा नहीं करेगा।  
भारद्वाज जी ने जिज्ञासा की, ‘राम तत्व का अवलोकन करके बताइए, हृदय में हलचल है कि ये दो राम हैं या एक ही राम हैं?’ 
भारद्वाज जी संदेहग्रस्त नहीं हैं, लेकिन लिखा है शास्त्रों में कि ब्रह्म तत्व का ज्ञान होने पर ब्रह्म तत्व की चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए, ठीक इसी तरह से राम तत्व का ज्ञान होने के बाद भी राम नाम श्रवण, चिंतन बंद नहीं होना चाहिए। ऐसे ही राम से संयुक्त कोई भी अनुष्ठान बंद नहीं होते। ईश्वर तत्व के ज्ञान के बाद छोटा व्यापार नहीं चलेगा, बड़ा व्यापार भी नहीं चलेगा, वह राम तत्व में ही लगा रहेगा। लोकनीति को ध्यान में रखकर पुरुषार्थ की परंपरा नहीं होती। ब्रह्म चर्चा हो, मर्यादित चर्चा हो। यह अनुपालन नहीं है, यह स्वभाव है। भारद्वाज जी ने महर्षि याज्ञवल्क्य जी जो मेले में आए थे, प्रयाग में आए थे, उनसे प्रश्न किया। प्रश्न के पीछे राम चर्चा के बिना एक क्षण न रहने वाली जो बात है, उसे उजागर किया। महर्षि याज्ञवल्क्य जैसा महात्मा हर किसी को प्राप्त नहीं हो सकता, तो मैं भी जिज्ञासु बनता हूं और ईश्वर को स्मरण करता हूं। 
याज्ञवल्क्य जी ने कहा, ‘आप परम ज्ञानी हैं, आप सभी तत्वों से परिचित हैं, आपसे ज्यादा राम जी के सम्बंध में कौन जानता है? मैं समझ रहा हूं आपकी बात को, आप इसी बहाने राम चर्चा करवाना चाहते हैं, नहीं तो आपको कोई संदेह नहीं है, कोई अज्ञान नहीं है। चर्चा होगी, तो असंख्य लोग लाभ उठाएंगे, एक परंपरा शुरू होगी।’ 
समय ऐसे ही बिताना चाहिए, समय का संपूर्ण सदुपयोग होना चाहिए। भारद्वाज जी का जो प्रश्न है, राम जी के संदर्भ में वह उत्पादक संदेह है। वेदों में लिखा है, स्वाध्याय और प्रवचन से कभी विराम नहीं लेना चाहिए। मोक्ष की चर्चा होती रहनी चाहिए, मोक्ष को सुनना, समझना आवश्यक है। 
शास्त्रों में जो तत्व मानव जीवन को उत्कर्ष देने वाले हैं, मानव जीवन की सफलता के जो सफल कारण हैं, उनकी चर्चा हमेशा होती रहनी चाहिए। हम सभी लोगों को इससे प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। महर्षि भारद्वाज को सबकुछ मालूम है राम तत्व के बारे में, लेकिन तब भी वे महर्षि याज्ञवल्क्य के माध्यम से सुनना चाहते हैं, ताकि लोग अधिक से अधिक लाभ उठाएं। 
क्रमश: 

No comments:

Post a Comment