Sunday 20 October 2019

पंचगंगा घाट और उससे जुड़ी परंपरा

वाराणसी : गंगा के साथ ही इसके वैभव और घाटों पर मौजूद सभ्यता और संस्कृतियों का फलना फूलना यह साबित करता है कि गंगा अपने आप में भी किसी संस्कृति से कम नहीं। खासकर जब काशी में गंगा के चौरासी घाटों की चर्चा होती है तो काशी के ठाठ से जुडे़ यह घाट किसी शीर्ष प्रतीक से कम नहीं। दैनिक जागरण के वेब सीरीज में आज जानिए पंचगंगा घाट और उससे जुड़ी परंपरा और मान्यता के बारे में - 

पंचगंगा घाट में पांच नदियों के संगम की जहां मान्यता है वहीं आलमगीर मस्जिद जो स्थानीय स्तर पर बेनी माधव का डेरा के नाम से जानी जाती है, यहां ¨हदू-मुस्लिम संस्कृतियों को समाहित किए हुए है। हालांकि समय के साथ काफी क्षति तो हुई है मगर यह मस्जिद अपने समय के सबसे बड़े मंदिर माने जाने वाले बिंदु माधव के ध्वंस अवशेषों पर बनी है। कालांतर में यह भगवान विष्णु का एक विशाल मंदिर हुआ करता था जो पंचगंगा से राम घाट तक फैला हुआ था। इतिहासकारों के मुताबिक मंदिर को औरंगजेब ने नष्ट कर इस मस्जिद का निर्माण कराया। हालांकि पंचगंगा हिंदू और मुस्लिमों के परस्पर संबंधों की एक और कड़ी अपने में समेटे हुए है। यह कड़ी है मध्ययुगीन दौर में संत कबीर की। माना जाता है कि एक मुस्लिम जुलाहे के बेटे कबीर ने अपनी कृतियों से हिंदू और मुस्लिम दोनों ही वर्गो में समान रूप से लोकप्रियता बटोरी थी। यहां नदी के मुहाने पर तीन ओर से घिरी कोठरिया हैं, जो बरसात बाढ़ के दौरान पानी में डूबी रहती हैं। यहीं पर है पाच नदियों के संगम का प्रतीक मंदिर निर्मित है तो धूतपाप और किरण जैसी अदृश्य मानी जाने वाली नदियों सहित यमुना, सरस्वती और गंगा नदी का यह संगम स्थल भी है। यह जीवंत शहर बनारस के सर्वाधिक चर्चित और महत्व वाले घाटों में अपना स्थान रखता है।

दैनिक जागरण

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