Sunday 31 December 2023

संसार को किसने बनाया

जीवन ऐसे ही निकलता जा रहा है और आपने जाना ही नहीं कि संसार को किसने बनाया? कौन इसका पालन करता है? ऐसे प्रश्न हमारे मन में उमड़ने-घुमड़ने चाहिए। आप ध्यान रखिए कि इस संसार को किसी उद्यमी, नेता या संस्था या सरकार ने नहीं बनाया, जिसने इसे बनाया, उसी को ब्रह्म कहते हैं। ब्रह्म का एक अर्थ और भी है। कहा गया है, यह महान बहुत है। हम लोग महान नहीं हैं। जहां हम बैठे हैं, उतना ही हमारा। जहां हम बैठ जाते हैं, उसी को संसार समझ लेते हैं, हम छोटे लोग हैं। जहां जो बैठा है, उसका संसार बस उतना ही बड़ा है। निरंतर जो विकासशील है, जो महान है, सबसे बड़ा जिसका आकार है, वह ब्रह्म है। हमें ऐसा लगता है कि हम ही पालन करते हैं। जैसे माता-पिता अपने बच्चों को लेकर यही समझते हैं कि हमने इनका पालन किया। पूछिए, उन माता-पिता से कि ऑक्सीजन आप ही हैं क्या? आप ही आकाश हैं क्या? पृथ्वी या जल हैं क्या? हमारा यह स्वरूप नहीं है कि हम किसी का पालन कर सकें। हमें यह भ्रम होता है कि हम ने ही यह सब किया है। सोचिए, आप कौन हैं? आप झूठ ही यह मान रहे हैं कि मैंने वह कर दिया, यह कर दिया। ऐसा अभिमान हमें सभी क्षेत्रों में होता है, जो दिखता भी है।

ठीक ऐसे ही, अभी जो चिंतन में आपको सुना रहा हूं, वह मेरा है या उसमें मेरे और पूर्वजों का भी योगदान है। मूल चिंतक कौन है, जिसने हमें यह विचार दिया? वह कौन है, जिसने हमें समझने की शक्ति दी? जिसने हमें आपके पास यह चिंतन पहुंचाने के लिए बल दिया, बुद्धि दी, वह कौन है? इसीलिए पूरे संसार को बनाना, उसका पालन करना और उसे अपने में छिपा लेना, जैसे समुद्र सभी जलधाराओं को छिपा लेता है। समुद्र जल का सबसे बड़ा स्वरूप है। जल की बूंदें अंश मात्र हैं। इस कमरे का जो आकाश है, दीवार या छत टूटने के बाद जिस आकाश में मिल जाएगा, वह महा-आकाश है। वह अपने में छिपा लेता है।

बड़ा बनने के लिए आवश्यक है कि अंश अपने अंश में मिल जाए। जलधाराएं खतरे में रहती हैं, लेकिन अंततः उस समुद्र में मिल जाती हैं, जो कभी सूखता नहीं है, बल्कि जो तमाम धाराओं को अपने में समाहित कर लेता है।

मिट्टी के टुकड़े को आपने ऊपर फेंका, वह आ गया पृथ्वी पर, मिल गया पृथ्वी में, तो बड़ा हो गया। हम लोग भी यही प्रयास कर रहे हैं बड़ा होने के लिए। हम ईश्वर जैसा बनना चाहते हैं, जो सबसे बड़ा है, सबसे शक्तिमान है। हम तो सिर्फ उसके अंश हैं। अंश जब अंश में मिल जाता है, तो सबसे बड़े स्वरूप को प्राप्त कर लेता है।

रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज 

No comments:

Post a Comment