भाग - ७
लिखा है शास्त्र में - सब लोग मुक्त हों। कुम्हार जैसे मिट्टी से घड़ा बना लेता है, घड़ा अलग करके रख देता है, किन्तु चक्का चलता रहता है, क्योंकि उसमें गति है, चलने की शक्ति है। घड़ा भले ही हट गया, किन्तु चक्र चलता है। जीवन में भी ऐसा ही होना चाहिए। आप बन गए, तो चक्र को चलने दें, उससे आप मुक्त हो जाएं।
भगवान की दया से जीवित रहते ही लोगों को ज्ञान हो जाता है। दुनिया में जितने वैज्ञानिक नहीं हुए हैं, उससे ज्यादा दुनिया में मुक्त पुरुष हुए हैं। एक से एक ऋषि, महात्मा, संत हुए हैं, जिन्होंने पूरे संसार को आलोकित किया है।
हम मनुष्यों की इतनी बड़ी आबादी हो गई, लगभग ७ अरब लोग संसार में हैं, किन्तु व्यवस्थित जीवन के लोगों का प्रतिशत कम हो गया। आज बहुत कम लोग हैं, जिनका जीवन सही मार्ग पर चल रहा है, जिन्हें स्वयं सुख मिल रहा है, संतोष मिल रहा है। जिनका जीवन दूसरों के लिए भी प्रेरणादायक है, ऐसे बहुत कम प्रतिशत लोग हैं। यहां तो जब हम देखते हैं, तो उन महान लोगों से इतिहास के पृष्ठ भरे पड़े हैं, जिनका जीवन धन्य, प्रेरक था। संस्कारितों का प्रतिशत कम हो रहा है। श्रेष्ठ उद्देश्य वालों की, महापथ पर आरूढ़ लोगों की संख्या बहुत कम हो रही है, यह चिंता की बात है। आज हम नजर दौड़ाते हैं, तो सोचते हैं कि किसके हाथ में नेतृत्व आ गया है, ऐसा कौन है, जो वस्तुत: राष्ट्रभक्त है। जो मातृभूमि के सेवक हैं, बहुत कम हैं ऐसे लोग।
जो लोग आज मोक्ष के लिए जी रहे हैं, उनमें भी कमी आई है। गाड़ी नहीं हो, तो चलेगा, माला नहीं हो, तो चलेगा। हमारी भी वर्दी है, प्रेरक है, बतलाती है कि हम साधु हैं, किन्तु भगवान की दया से हमारा जीवन धार्मिक लिबास और बाह्य स्वरूप से ठीक होकर भी यदि हमारा जीवन केवल धन के लिए है, केवल भोग के लिए है, तो हमारा बाहरी स्वरूप कभी भी हमें श्रेष्ठ जीवन नहीं दे सकता। सभी क्षेत्रों में जो गिरावट आई है और जो गिरावट राष्ट्र को प्रभावित कर रही है, पूरी मानवता, पूरी जाति को प्रभावित कर रही है। सही शिक्षा के अभाव में, वेदों, दर्शनशास्त्रों की शिक्षा के अभाव में, शिक्षा की परिपक्वता के अभाव में, शिक्षा को चरित्र में नहीं उतारने के कारण ही सभी क्षेत्रों में विकृतियां आई हैं। उन लोगों को देखकर, जो बहुत समृद्ध हैं, हमें अपने जीवन को नहीं ढालना चाहिए। हमें उन लोगों को जीवन में ढालना चाहिए, जिन्होंने अपने जीवन की परिपूर्णता को प्राप्त कर संपूर्ण समाज को आलोकित किया और बल दिया। किन्तु अनेक लोग आलोकित व्यक्ति को नहीं देखते। हम तो पड़ोस वाले को देखते हैं कि कहां से पैसा लाकर बंगला बना लिया, कहां से गाड़ी ले आया, हमें भी ऐसे ही करना है। मालूम हो जाता है कि पड़ोसी गलत विधि से लाया है, तो भी फर्क नहीं पड़ता, लोग केवल यह सोचते हैं कि इसका हो गया, तो ऐसी ही किसी गलत विधि से मेरा भी हो जाए। जबकि गलत विधि से जो शक्ति आएगी, परिवार, प्रभाव आएगा, चाहे ज्ञान हो, वो कभी भी कारगर नहीं होगा। वस्तुत: सफल नहीं होगा। तो शिक्षा को हमें बदलने की आवश्यकता है। संयम हो और बढ़े। हमारा कदम-कदम शास्त्र की मर्यादा में होना चाहिए।
हमारे कमाने का तरीका भी सही होना चाहिए। न्याय से अर्जित धन को ही स्वीकार करने के लिए शास्त्रों ने कहा, किसी तरह से कमाया और दे दिया, तो दान नहीं कहलाएगा। न्यायार्जित धन का परित्याग दान है। न्यायपूर्वक जो धन अर्जित किया है, शास्त्रों की रीति से किया है, जो संविधान है, उसके भी नियम-कायदे के अनुरूप किया है, उससे जो धन अर्जित होगा, वही पवित्र होगा। उससे ही आपको सही जीवन मिलेगा, संतति को अच्छा स्वरूप मिलेगा। सबकुछ मिलेगा, अगर आपने ऐसे कमाया।
यदि कहीं से झूठ से पाकिटमारी से धन लाए, फरेब से, जैसे-तैसे, उससे कुछ नहीं होगा। कहीं से भी लाई गई पत्नी वंश का गौरव नहीं बढ़ाएगी, उससे तो वर्णसंकर ही पैदा होना है। उससे हमारा जीवन नहीं सुधरेगा। क्रमश:
लिखा है शास्त्र में - सब लोग मुक्त हों। कुम्हार जैसे मिट्टी से घड़ा बना लेता है, घड़ा अलग करके रख देता है, किन्तु चक्का चलता रहता है, क्योंकि उसमें गति है, चलने की शक्ति है। घड़ा भले ही हट गया, किन्तु चक्र चलता है। जीवन में भी ऐसा ही होना चाहिए। आप बन गए, तो चक्र को चलने दें, उससे आप मुक्त हो जाएं।
भगवान की दया से जीवित रहते ही लोगों को ज्ञान हो जाता है। दुनिया में जितने वैज्ञानिक नहीं हुए हैं, उससे ज्यादा दुनिया में मुक्त पुरुष हुए हैं। एक से एक ऋषि, महात्मा, संत हुए हैं, जिन्होंने पूरे संसार को आलोकित किया है।
हम मनुष्यों की इतनी बड़ी आबादी हो गई, लगभग ७ अरब लोग संसार में हैं, किन्तु व्यवस्थित जीवन के लोगों का प्रतिशत कम हो गया। आज बहुत कम लोग हैं, जिनका जीवन सही मार्ग पर चल रहा है, जिन्हें स्वयं सुख मिल रहा है, संतोष मिल रहा है। जिनका जीवन दूसरों के लिए भी प्रेरणादायक है, ऐसे बहुत कम प्रतिशत लोग हैं। यहां तो जब हम देखते हैं, तो उन महान लोगों से इतिहास के पृष्ठ भरे पड़े हैं, जिनका जीवन धन्य, प्रेरक था। संस्कारितों का प्रतिशत कम हो रहा है। श्रेष्ठ उद्देश्य वालों की, महापथ पर आरूढ़ लोगों की संख्या बहुत कम हो रही है, यह चिंता की बात है। आज हम नजर दौड़ाते हैं, तो सोचते हैं कि किसके हाथ में नेतृत्व आ गया है, ऐसा कौन है, जो वस्तुत: राष्ट्रभक्त है। जो मातृभूमि के सेवक हैं, बहुत कम हैं ऐसे लोग।
जो लोग आज मोक्ष के लिए जी रहे हैं, उनमें भी कमी आई है। गाड़ी नहीं हो, तो चलेगा, माला नहीं हो, तो चलेगा। हमारी भी वर्दी है, प्रेरक है, बतलाती है कि हम साधु हैं, किन्तु भगवान की दया से हमारा जीवन धार्मिक लिबास और बाह्य स्वरूप से ठीक होकर भी यदि हमारा जीवन केवल धन के लिए है, केवल भोग के लिए है, तो हमारा बाहरी स्वरूप कभी भी हमें श्रेष्ठ जीवन नहीं दे सकता। सभी क्षेत्रों में जो गिरावट आई है और जो गिरावट राष्ट्र को प्रभावित कर रही है, पूरी मानवता, पूरी जाति को प्रभावित कर रही है। सही शिक्षा के अभाव में, वेदों, दर्शनशास्त्रों की शिक्षा के अभाव में, शिक्षा की परिपक्वता के अभाव में, शिक्षा को चरित्र में नहीं उतारने के कारण ही सभी क्षेत्रों में विकृतियां आई हैं। उन लोगों को देखकर, जो बहुत समृद्ध हैं, हमें अपने जीवन को नहीं ढालना चाहिए। हमें उन लोगों को जीवन में ढालना चाहिए, जिन्होंने अपने जीवन की परिपूर्णता को प्राप्त कर संपूर्ण समाज को आलोकित किया और बल दिया। किन्तु अनेक लोग आलोकित व्यक्ति को नहीं देखते। हम तो पड़ोस वाले को देखते हैं कि कहां से पैसा लाकर बंगला बना लिया, कहां से गाड़ी ले आया, हमें भी ऐसे ही करना है। मालूम हो जाता है कि पड़ोसी गलत विधि से लाया है, तो भी फर्क नहीं पड़ता, लोग केवल यह सोचते हैं कि इसका हो गया, तो ऐसी ही किसी गलत विधि से मेरा भी हो जाए। जबकि गलत विधि से जो शक्ति आएगी, परिवार, प्रभाव आएगा, चाहे ज्ञान हो, वो कभी भी कारगर नहीं होगा। वस्तुत: सफल नहीं होगा। तो शिक्षा को हमें बदलने की आवश्यकता है। संयम हो और बढ़े। हमारा कदम-कदम शास्त्र की मर्यादा में होना चाहिए।
हमारे कमाने का तरीका भी सही होना चाहिए। न्याय से अर्जित धन को ही स्वीकार करने के लिए शास्त्रों ने कहा, किसी तरह से कमाया और दे दिया, तो दान नहीं कहलाएगा। न्यायार्जित धन का परित्याग दान है। न्यायपूर्वक जो धन अर्जित किया है, शास्त्रों की रीति से किया है, जो संविधान है, उसके भी नियम-कायदे के अनुरूप किया है, उससे जो धन अर्जित होगा, वही पवित्र होगा। उससे ही आपको सही जीवन मिलेगा, संतति को अच्छा स्वरूप मिलेगा। सबकुछ मिलेगा, अगर आपने ऐसे कमाया।
यदि कहीं से झूठ से पाकिटमारी से धन लाए, फरेब से, जैसे-तैसे, उससे कुछ नहीं होगा। कहीं से भी लाई गई पत्नी वंश का गौरव नहीं बढ़ाएगी, उससे तो वर्णसंकर ही पैदा होना है। उससे हमारा जीवन नहीं सुधरेगा। क्रमश:
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