Wednesday 4 April 2012

धर्म क्या है?

भाग : नौ
आज भी लोग समझ नहीं रहे हैं, अभी किसी को सुख मिलने लगे, तो उसे चिंतन करना चाहिए कि कैसे मिल रहा है। मैं अपने जीवन के बारे में आपको सुनाता है, मुझसे बड़े-बड़े तपस्वी रामानंद संप्रदाय में हुए हैं। मुझसे बड़े विद्वान रामानंद संपद्राय में हुए हैं। मुझे लोग कहते हैं कि मैं विद्वान हूं। यह सुनकर मैंने कहीं कहा, पढ़ाने-लिखाने का मेरा ध्ंाधा बंद हो गया, जबसे संत-महात्माओं के क्षेत्र में आ गया, उतना अच्छा नहीं कर पा रहा हूं। एक महात्मा राजेन्द्र दास जी ने कहा कि अभी भी जो विद्वान हैं, अधिकांश लोग आपके विद्यार्थी हैं, इससे बढिय़ा क्या चाहिए।
आज कई बड़े विद्वान संत हैं, कई तो मेरे मित्र भी हैं, उनसे कोई जाकर पूछे एक आदमी का नाम बतलाइए, जिसे आपने गद्दी पर बैठने से पहले पढ़ाया हो और जो विद्वान हो और एक ऐसे आदमी का नाम बतलाइए, जिसे आपने गद्दी पर बैठने के बाद पढ़ाया हो, बहुतों के पास एक नाम नहीं मिलेगा। इस रामनरेशाचार्य ने अपने साथियों को, जो लोग मेरे साथ पढ़ते थे, उनको भी पढ़ाया। अपने आगे वालों को भी पढ़ाया और पीछे वालों की बात छोडि़ए। और मेरे शिष्य ऐसे विद्वान लोग हैं, जो जहां भी जाएंगे, यही कहेंगे कि मैं महाराज का विद्यार्थी हूं, हालांकि उनमें से बहुतों को मैं भूल भी चुका हूं।
मेरे द्वारा पढ़ाए गए ऐसे लोगों को भी विद्वान माना गया, जिन्हें मैं विद्वान नहीं मानता था। किसी की निंदा नहीं कर रहा हूं, लेकिन शिक्षक के रूप में मेरे उत्पादन दायरा बहुत बड़ा था। अब लगता है, कुछ छोटा हो गया है।
अब मैं अपने विषय पर आता हूं। मुझसे बड़े विद्वान और बड़े-बड़े तपस्वी और बड़ी आयु के लोग, जिनको श्रेय नहीं मिला, काम करने का मंच नहीं मिला, वह मुझे मिला। रामानंदाचार्य की पीठ में मुझे अवसर मिला। मैं बहुत चिंतन करता हूं कि मेरी कौन-सी विद्या थी, क्या धर्म था, कौन लोग मेरे सहयोगी थे, लेकिन अब लगता है, वस्तुत: राम जी का अनुग्रह और मेरा पिछला पुण्य काम कर रहा है। उसी पुण्य की बदौलत मुझे जब कोई मिल जाता है, तो मैं समझ जाता हूं कि पुण्य का प्रताप था। अपने यहां कहा जाता है कि आपका हमारा कोई लेना-देना था, इसलिए हम साथ आ गए या मिल गए, इसका मतलब ही है कि कोई पुण्य था, जिसने मिलाया।
हिन्दू धर्म माने विश्व का धर्म। हिन्दू धर्म माने सिर्फ हिन्दुओं का नहीं। विश्व में जो मानव हैं, उनके लिए जो धर्म बना, उसी का नाम हिन्दू धर्म है। भले ही उसे कोई बारह आना मानता है, कोई तेरह आना, तो कोई पांच आना। यह जो धर्म बना, वह तो सबके लिए था। सूर्य उगा हो और कोई दरवाजा-खिडक़ी बंद करके बैठा हो, तो इसमें सूर्य का क्या दोष है?
किसी के पास भी एक अलग धर्म मार्ग नहीं है। जैनियों के पास अहिंसा धर्म, बौद्धों के पास क्षणिकवाद, यह तो हम पहले से कह ही रहे हैं। गुरुग्रंथ साहब का पाठ हो रहा है, संपूर्ण गुरुग्रंथ साहब में राम, हरि, कृष्ण का भजन है, उसमें रामानंदाचार्य के चेलों के वचन हैं। लेकिन आज उनको पता ही नहीं है कि रामानंद कौन थे, कबीर दास जी के गुरु कौन थे। ये बतलाइए, जिन संतों के वचनों को पढक़र आप बहुत बड़े धार्मिक बन रहे हैं और उसके मूल का आपको पता ही नहीं है, यह क्या बात हुई? जैसे कोई यह जाने ही नहीं कि उसकी पार्टी का अध्यक्ष कौन है, तो किसी छोटे कार्यकर्ता से पार्टी चलेगी क्या?
हिन्दू धर्म को वर्गीकरण के लिए दोषी ठहराया जाता है। वर्गीकरण भला कहां नहीं है? क्या अफसर को ज्यादा वेतन नहीं मिलता है, क्योंकि वह ज्यादा पढ़ा-लिखा है, ज्यादा जिम्मेदारी के पद पर है, उसे अलग से केबिन देकर बैठाया जाता है, सबको बैठने के लिए अलग से केबिन नहीं मिलता। हुआ न वर्गीकरण? पहले अध्यापक का जो वेतन था, वह एक सैनिक का नहीं था, लेकिन बाद में धीरे-धीरे सुधार हुआ। नौकरी में फर्क है या नहीं। कोई उत्सव होता है, तो कई लोग तो अब अतिथियों व सम्बंधियों का भी वर्गीकरण करते हैं। किसी को कम सुविधा किसी को ज्यादा सुविधा। धर्म ने वर्गीकरण किया था, तो क्या गलत है? मंदिर में कौन जाएगा, मंदिर में कौन वेद पढ़ेगा, यह तय हुआ, तो इसमें क्या बात हो गई? जिस आदमी को हनुमान चालीसा का भी ज्ञान नहीं है, उससे कोई पूछे कि धर्म क्या है, तो वह क्या बतलाएगा? उसको पता नहीं है, ‘चोदनालक्षणोह्यर्थो धर्म:।’ महर्षि जैमिनी द्वारा लिखित यह धर्म का प्रतिपादक दर्शन है। पूर्वमीमांसा दर्शन में यही सूत्र बनाया गया। वेद के प्रतिपादित जो प्रयोजनमान अर्थ है, उसको धर्म कहते हैं। धर्म वह है, जिसे वेद ने हमारे कल्याण के साधन के रूप में प्रतिपादित किया हे। लिखा गया है कि शत्रु को मारने के लिए सोमयाग करना चाहिए, किन्तु वेदों ने कहा कि ये धर्म नहीं है, क्योंकि इससे शत्रु तो मर जाएगा, किन्तु बाद में नर्क जानना पड़ेगा। धर्म कल्याण के लिए है, विनाश के लिए नहीं। धर्म का ऐसा ही स्वरूप है जमीन से आकाश तक।
अब ज्यादातर लोगों को पता नहीं है कि धर्म का क्या मतलब है। धर्म का ऐसा क्रम जो जमीन से लेकर आकाश तक है। विद्यार्थी का, भाई का, मां का, पिता का ज्ञान। जिसमें धर्म नहीं होगा, वह पत्नी नहीं होगी। जिसको धर्म का ज्ञान नहीं होगा, वह पति नहीं बन सकेगा, जिसको धर्म को ज्ञान नहीं होगा, वह न छात्र बनेगा न किसान बनेगा। धर्म के ज्ञान से ही कुछ बना जा सकता है।
क्रमश:

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