Tuesday 24 September 2013

भाई-भाव बचाइए

समापन भाग
सोचकर देखिए, यदि राम जी नहीं होते, तो भरत जी का कार्य कैसे चलता? भरत जी नहीं होते, तो राम जी का कार्य कैसे चलता? यदि लक्ष्मण नहीं होते, तो कैसे होता? भरत नहीं होते, १४ वर्ष तक राम जंगल में रहते, तो अयोध्या की क्या दशा होती? भाइयों ने मिलकर वन और राज्य दोनों में जीवन को सहज बना दिया, श्रेष्ठतम बना दिया। एक दूसरे के लिए समर्पित होकर ये ऐसे भाई बने कि संसार के लिए उदाहरण बन गए। 
लक्ष्मण जी भाई हैं, लक्ष्मण जी ने राम जी के लिए १४ वर्षों तक शयन नहीं किया। पूरी रात जागते हैं, जब राम सोते हैं। लिखा है रामायणों में, जितनी सेवाएं राम जी की होती थीं, उन सभी का संपादन लक्ष्मण जी स्वयं करते थे। झोंपड़ी बनाने से लेकर फल-मूल देना। पहरेदारी करना। यहां तक विद्वान कहा करते हैं कि यदि राम जी को तकिये की आवश्यकता है, तो लक्ष्मण जी तकिया के रूप में प्रस्तुत हो जाते हैं, फल-मूल की आवश्यकता हो, तो फल-मूल के रूप में प्रस्तुत हो जाते हैं, लक्ष्मण जी में ऐसी शक्ति है। कहने का अर्थ यह कि भाई के प्रति सर्वांगीण समर्पण है। ऐसा भाई ही कर सकता है। राम जी ने भातृत्व को कभी लांछित नहीं होने दिया, उसे सदा बढ़ाया। उन्होंने धन और भोग को महत्व नहीं दिया। अन्य सम्बंधों को भातृत्व के पोषक के रूप में माना। और आज आदमी भूल जाता है, जहां पत्नी आई, जहां बच्चे हुए, तो भाई का सम्बंध दूर का सम्बंध हो जाता है। जो पत्नी है, वही असली सम्बंधी बन जाती है, उसके लिए आदमी चोरी करता है, तमाम दूषित कर्मों को करता है। जिसके साथ जीवन में एक साथ खाया, एक ही मां के एक ही गर्भ में दोनों रहे, साथ में मां की गोद में पलना, साथ में सोना, साथ में पलना, साथ में शिक्षित होना, भातृत्व की कोई तुलना नहीं है।
किन्तु दूसरा पक्ष भी है, औरंगजेब ने भाइयों को मरवा दिया राजा बनने के लिए, भाई के समर्थक पिता को जेल में बंद करवा दिया। ऐसे ही अब पत्नी के लिए भाई की हत्या तक हो जाती है। गद्दी के लिए लोग भाई को छोड़ देते हैं। केवल भोग और धन की लिप्सा के कारण ऐसा होता है, नहीं तो दुनिया में कोई शक्ति नहीं है, जो भातृत्व को प्रभावित कर सके। सम्बंधों में जो विकृतियां आई हैं, जिसके कारण से भातृत्व लांछित हो रहा है, उसके संदर्भ में हमें दृष्टि प्राप्त करने के लिए राम चरित्र का चिंतन करना चाहिए। विभिन्न रामायणों में राम चरित्र का वर्णन है और राम किसी भी स्तर पर भातृत्व का परिस्कार करना नहीं छोड़ते।
१४ वर्ष बाद भी भरत राजा रहना चाहें, तब भी चलेगा। भरत में जरा भी राज चलाने का भाव हो, तो राम जंगल चले जाएंगे, ऐसा राम जी ही सोच सकते हैं। वह मेरा भाई है, राजा बनना चाहता है, तो ठीक है, कोई बात नहीं, दोनों एक ही है। जैसे मैं परिपालन करूंगा प्रजा का, वह मुझसे अच्छा करेगा।
कई बार वार्ता में लोग कहते थे कि लक्ष्मण जी की ओर से भी कई बार यह बात आई कि हो सकता है, भरत को राज मद हो गया हो। लिखा है कि जब मालूम हुआ लक्ष्मण जी को कि भरत जी सेना लेकर आ रहे हैं, साथ में अपार जनता आ रही है, तो लक्ष्मण जी बड़े नाराज हुए, उन्होंने कहा कि मैं आज ही समाप्त कर दूंगा। इसे राज मद हो गया है। राम जी ने कहा, तू मूर्ख है लक्ष्मण, राज मद जिन्हें होता है, वो और लोग हैं, कभी भी भरत को राज मद नहीं हो सकता। भरत में विकृति आ ही नहीं सकती। वह विकृतियों से परे हैं। कई बार लोग ऐसे बहकावे में आ जाते हैं, किन्तु राम जी ने लक्ष्मण को डांटा और समझाया कि ऐसा नहीं सोचते। राम जी का भरत पर दृढ़ विश्वास है, क्योंकि वे भरत जी का मन जानते हैं। राम जी ने भरत के बारे में कहा :-
मसक फँूक मकु मेरु उड़ाई। होई न नृपमदु भरतहि भाई।
लखन तुम्हार सपथ पितु आना। सुचि सुबंधु नहिं भरत समाना।
मच्छर की फँूक से चाहे पहाड़ उड़ जाए। किन्तु हे भाई, भरत को राज मद नहीं हो सकता। हे लक्ष्मण, मैं तुम्हारी और पिता की सौगन्ध खाकर कहता हूं, भरत के समान पवित्र और उत्तम भाई संसार में नहीं है।
एक और प्रसंग है, जब भरत जी मनाने गए, तो गुरु वशिष्ठ जी ने भरत जी की खूब प्रशंसा की, इतनी बड़ाई रामचरितमानस में किसी की नहीं हुई है, जितनी वशिष्ठ जी ने की। वशिष्ठ जी ने कहा, जो भरत कहते हैं, उसे सुनिए और उस पर अमल कीजिए।
भाई की इतनी बड़ाई सुनकर राम जी को कोई ईष्र्या नहीं हुई। वशिष्ठ जी ने कहा कि भरत जी जो कहेंगे और जैसा करेंगे, वही धर्म है, धर्म का कोई और अर्थ नहीं है, भरत जो बोलते हैं, वह धर्म है, भरत जैसा आचरण करते हैं, वह धर्म है, धर्म के मानक पुरुष हैं भरत। मैं भरत से बहुत प्रभावित हूं।
यह सुनकर राम जी बहुत खुश हुए। अयोध्या कांड के चित्रकूट के प्रसंग में राम जी ने कहा कि मेरे जीवन में इससे ज्यादा उत्कर्ष और क्या होगा, जिस रघुवंश को वशिष्ठ जी ने ही पाला-बढ़ाया, सुन्दर बनाया, रघुवंशियों के लिए आप सबकुछ हैं, और आपने ही हमें गरिमा प्रदान की और आप ही भरत से प्रभावित हैं, मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि मेरे भाई के लिए संसार का सबसे बड़ा ज्ञान शिरोमणि और इतना बड़ा तपस्वी और इतना बड़ा ऋषि, इतना बड़ा संयमी, जिसका कोई जोड़ नहीं हो, वह भरत की इतनी अनुशंसा कर रहा है, मेरा जीवन धन्य हुआ, मुझे गौरव है भरत का भाई होने का। आज अगर मंच पर कोई बड़े नेता के सामने छोटे नेता की ऐसी प्रशंसा कर दे, तो पार्टी उस छोटे नेता को निकाल बाहर करेगी। दूसरे की प्रशंसा सुनकर लोगों को ईष्र्या होने लगती है। सहिष्णुता समाप्त हो गई है, भाई को भिन्न समझने लगे हैं लोग, जैसे कोई और दूसरा सहयोगी होता है। ऐसे कैसे सम्बंध चलेगा?
मैं सभी लोगों को आगाह करना चाहता हंू कि भातृत्व को गरिमा देने की आवश्यकता है, संसार में भातृत्व की आवश्यकता है, भातृत्व को सुन्दर बनाने की आवश्यकता है। जिस भातृत्व के बिना हमारा कोई व्यवहार नहीं चलता, कोई बड़प्पन नहीं चलता, कोई भी विकास का मार्ग प्रशस्त नहीं होता, उस भातृत्व को किसी भी स्तर पर बिगडऩे नहीं देना चाहिए और उसके लिए सम्पूर्ण सामग्री हमें रामचरितमानस, वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण और अन्य रामायणों से मिलती है। इतनी अच्छी सामग्री है कि जिसकी कोई सीमा नहीं है। राम जी का सम्पूर्ण चरित्र ही रामराज्य का संस्थापक है, किन्तु राम राज्य की संस्थापना राम जी आए, तब से ही नहीं हुई, राम जी वन से लौटकर राजा बने, तभी से राम राज्य नहीं शुरू हुआ, राम राज्य तो तब शुरू हुआ, जब तपस्वी वेश धारण करके भरत जी ने राम राज्य का संचालन किया। राम राज्य की शुरुआत तो भरत जी के राज्य संभालते ही हो गई थी। राम राज्य के संस्थापक राम नहीं, बल्कि भातृत्व शिरोमणि भरत हैं।
यदि कोई राम राज्य की स्थापना अपने जीवन में करना चाहता है, तो वह अपने उच्च व्यवहार से भरत की तरह भ्राता प्राप्त करे और भरत जैसा भ्राता प्राप्त करने के लिए राम जैसा भ्राता बने। लोलुपता का त्याग करे, सहिष्णु बने, राम जी के समान, श्रेष्ठ भावों का स्रोत होने की आवश्यकता है। भातृत्व के लिए अच्छा परिवेश बनाने की आवश्यकता है।
राम जी भाइयों के बिना खाते नहीं हैं, भाइयों के बिना सोते नहीं हैं। भाइयों के बिना एक पल भी बिताना नहीं चाहते। पति-पत्नी के अंतरंग जीवन को छोडक़र और जो तमाम प्रशासनिक व्यवस्थाएं हैं, कहीं भी राम अपने भाइयों के बिना नहीं रहते। छाया के जैसे भाई हैं। राम राज्य या राम दरबार का एक चित्र बहुधा देखने को मिलता है, जिसमें हनुमान जी भी हैं, तीनों भाई भी हैं और राजा के रूप में राम, जानकी जी के साथ बैठे हैं, क्या बात है! जैसे बाल्यावस्था में चारों भाई साथ थे, वैसे ही जीवन की चरम आयु में भी चारों भाई साथ रहे। यह भातृत्व का सबसे बड़ा नमूना है। हम प्रयास करें कि भातृत्व को हम लोग पुन: स्थापित करें, ताकि जीवन में उच्च भावनाओं की प्रतिष्ठा हो। परिवार, समाज, देश में राम भाव की संस्थापन हो।
जय सियाराम...

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