Tuesday 24 September 2013

भाई-भाव बचाइए

भाग : ७
तुलनात्मक अध्ययन की सनातन अनादि परंपरा है। राम जी ज्यादा समर्पित हैं या भरत जी। राम जी में ज्यादा पे्रम की भावना है या भरत जी में, कौन ज्यादा प्रेमी है, लोग तुलनात्मक अध्ययन करते हैं। लोग तुलना करके निष्कर्ष निकालते हैं कि भरत जी की तपस्या राम जी से भी बड़ी है। राम जी पत्नी के साथ थे, भरत जी नंदीग्राम में अकेले रह रहे हैं। राजा और राज्य भावना का पालन करते हुए तपस्वी हैं, क्या बात है! अयोध्या से करीब १४ किलोमीटर दूर था नंदीग्राम। सभी दृष्टियों से, यहां तक लिखा है कि बड़े-बड़े ऋषियों के रोंगटे खड़े हो रहे हंै, वे भरत का तपस्वी जीवन देखकर लजा रहे हैं :-
सुनि ब्रत नेम साधु सकुचाहीं।
देखि दसा मुनिराज लजाहीं।।
भरत का जो यह इतना बड़ा प्रेम है, उस प्रेम को जीवन देने वाले और खाद-पानी डालने वाले राम जी ही हैं। राम जी यदि भातृत्व के पोषक के रूप में हमेशा अपने को तैयार नहीं रखते, तो भरत का भातृत्व लुप्त हो जाता। इसके लिए लिखा है कि
भरत सरिस को राम सनेही। जग जपु रामु राम जपु जेही।
दुनिया में कौन भरत के समान राम का स्नेही होगा। संसार राम-राम जपता है और राम जी भरत-भरत जपते हैं। जब कोई भाई सम्बंधों को महत्व देकर, निर्वाह के लिए तत्पर होगा, तभी भातृत्व सम्बंध जीवित रहेगा और दूसरे सम्बंध उसी को मजबूत करने के लिए होंगे। यह नहीं कि उसको तोडऩे के लिए हो जाएं। बाप-बेटा का सम्बंध हो या पति-पत्नी का सम्बंध हो, चाहे कोई सम्बंध हो, उसे यह मानना होगा कि वह भातृत्व सम्बंध का पोषक बने, भातृत्व का संवद्र्धक बने, तभी भातृत्व बचेगा और उससे जो शक्ति मिलेगी, जो एक अच्छा वातावरण तैयार होगा, वह सारे सम्बंधों को आदर्श रूप बना देगा और उससे सम्पूर्ण वातावरण ही पवित्र हो जाएगा। जो सम्बंधों में खोटापन आया है, उसका निषेध किया जाए और राम जी का जो सम्बंध निर्वाहक स्वरूप है, जो भातृत्व निर्वाहक स्वरूप है, उसका अनुकरण किया जाए। राजा बनने के बाद भी भरत जी का जीवन देखिए, वह भी अनुकरणीय है। आज के राजाओं को भरत जी से अपनी तुलना करनी चाहिए।
राम जी का भी विवाह हुआ था, पुत्र हुए, उन्होंने अपने जीवन में न जाने कितने संपर्क बनाए, किन्तु कभी भी उन्होंने इन सम्बंधों को भातृत्व को तोडऩे वाला नहीं बनने दिया। राम-भरत के जैसे आदर्श भातृत्व में गुरु वशिष्ठ का भी बड़ा योगदान है। गुरु वशिष्ठ कहीं भी भातृत्व को तोडऩे के लिए नहीं, भातृत्व को बढ़ाने के लिए हैं। मैं फिर दोहरा रहा हूं, भातृत्व का आधार वो सम्बंध हैं, जिनके बारे में वेदों ने कहा - पितृ देवोभव, मातृ देवोभव। माता-पिता को वेदों ने ईश्वर तुल्य बता दिया। जो सम्बंध ईश्वर तुल्य है, वही आधार है भातृत्व का। इससे बड़ा और कौन सम्बंध होगा?
मैं इसको बहुत ही गहराई से अनुभव करते हुए प्रस्तुत करना चाह रहा हूं कि भातृत्व को संसार में पुन: बल मिलना चाहिए। उसको महत्व मिलना चाहिए। यदि कोई गलती भी हो गई हो भ्राता से, उसे क्षमा करके सम्बंध आगे चलाना चाहिए। गलती किससे नहीं होती? कौन दुनिया में सम्बंधी है, जो गलती नहीं करता? कौन दुनिया में सम्बंध है, जो कभी हानि नहीं पहुंचाता? कौन सम्बंध ऐसा है, जिससे कभी न कभी हमारा मन आहत नहीं होता? पुत्र से कई बार लोगों को कष्ट हो जाता है, पुत्र ही बड़ी हानि पहुंचा देता है, किन्तु पुत्र को कितने लोगों ने घर से बाहर कर दिया, पत्नी को कितने लोगों ने घर से बाहर कर दिया? जो लोग बाहर कर रहे हैं, अपनी वासना की लोलुपता के कारण कर रहे हैं, दूसरी औरत पर आकृष्ट हो गए, भोग और अर्थ से प्रभावित होने के कारण कर रहे हैं। इसी तरह कुछ गलतियों के आधार पर भाई के प्रति मन मैला नहीं करना चाहिए।
हम अपने जीवन में न जाने कितने लोगों से सम्बंध जोड़ते हैं व्यापार के लिए, जीविका के लिए, बड़ा बनने के लिए और तमाम तरह के जो उद्यम हैं जीवन के विकास के लिए, हम कितने सम्बंधों को निर्माण करते हैं, उन सम्बंधों की कोई औकात नहीं है भातृत्व के सामने। भातृत्व की रक्षा के लिए हमें बहुत सचेत होने, सहिष्णु होने, उदार होने की आवश्यकता है। यदि भातृत्व सशक्त हुआ, तो जीवन के सभी अंग पुष्ट हो जाएंगे और हमारा भरपूर विकास होगा। परिवार का होगा, अड़ोस-पड़ोस का होगा, राज्य का और देश और दुनिया का होगा।
क्रमश:

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