Sunday 6 October 2013

सद्चरित्र भी पढि़ए-पढ़ाइए - ४

चरित्र की अवहेलना के कारण ही आज के समय में बलात्कार हो रहे हैं, खुलेआम अभद्रता व उत्पीडऩ हो रहा है। युवा ही पीडि़त हैं, युवा ही उत्पीडक़ हैं और उत्पीडऩ के विरुद्ध आंदोलन भी वही कर रहे हैं। हर युवा को आत्मावलोकन करना चाहिए, स्वयं में चरित्र की जो कमियां हैं, उन्हें दूर करना चाहिए।
स्थितियां ऐसी भी नहीं बिगड़ी हैं कि सुधार न हो सके। किसी भी समाज में सौ प्रतिशत लोग सही नहीं होते। अपराधियों और बलात्कारियों की संख्या अच्छे लोगों की तुलना में बहुत कम है। अच्छा जीवन साथी प्राप्त करने की इच्छा सबके मन में होती है, लगभग सभी युवा चाहते हैं कि सुन्दर पत्नी मिले, धनवान मिले, पढ़ी-लिखी मिले। अच्छी लडक़ी कब मिलेगी, जब अच्छा समाज होगा। इसके लिए युवा आंदोलन करते हैं, पाप और बलात्कार के विरुद्ध खड़े हो जाते हैं, इसका अर्थ है कि उनमें अच्छाइयों के लिए सद्भावना है और बुराइयों को दूर करने की इच्छा है।
हमें इस पक्ष को भी देखना चाहिए कि लड़कियों में भी विकृति आई है। कुछ लोग कहते हैं कि लड़कियों में लडक़ों से भी ज्यादा विकृति आई है। मैं अनेक लड़कियों से भी पूछताछ करता रहता हूं, स्वयं वे भी स्वीकार करती हैं कि लड़कियां बदमाशी कर रही हैं, कई मामलों में तो वे लडक़ों से भी बढक़र बिगड़ गई हैं। ऐसी लड़कियों के साथ क्या कोई सहानुभूति होनी चाहिए? यह कहना ठीक नहीं होगा कि केवल लडक़े ही गलत कर रहे हैं। किस समय घूमने निकलना है, किसके साथ घूमने निकलना है, कहां घूमने जाना है, शरीर का कितना भाग खुला रखना है, क्या यह नहीं सोचना चाहिए? बाहर दुनिया में युवाओं के लिए प्रलोभन हो गया है। घर में भी संयम नहीं है, घर में खूब स्वतंत्रता है और पॉकेट मनी भी हजारों में मिलने लगी है, तो बाहर भी कई युवतियां ऐसे घूम रही हैं कि लोग भडक़ते हैं। अनेक युवा हैं, जिन्हें अपनी, परिवार की, समाज या देश की कोई चिंता नहीं है।
बहुत-सी लड़कियों में पैसे का लोभ बढ़ गया है। पैसे के लालच में कई लड़कियां पागलों की तरह घूम रही हैं। अभिभावक पैसे नहीं देते या अभिभावकों के पास पैसे नहीं हैं, तो स्वयं असंयमित तरीकों से कमा रही हैं। कोई कानून नहीं, जो इन्हें रोक सके, रास्ते पर ला सके। जब स्वयं ही स्वच्छता और चरित्र की चिंता न हो, तो दूसरे कितना और क्या कर सकते हैं?
तो आवश्यक है कि प्रशासनिक दृष्टि से विकास के अवसर बढ़ाने पर चर्चा हो, रोजगार बढ़े, चरित्र सुधार के प्रयोग हों, कानून बनें। युवाओं को अच्छी शिक्षा मिले, रोजगार मिले, रोजगार देते समय चरित्र को भी अहमियत दी जाए। वास्तविक चरित्र के बारे में पता लगाकर नौकरी दी जाए। जो गलत हों, उन्हें तत्काल दंड हो, तो स्थितियां सुधरेंगी।
पहले बलात्कार-हत्या इत्यादि की घटनाएं कम होती थीं, होती भी थीं, तो अखबारों इत्यादि में कम ही छपता था, पहले चैनलों और अखबारों का विकास ज्यादा नहीं था, लेकिन अब हो गया है। अब स्थिति यह हो गई है कि दिल्ली में बलात्कार की एक घटना पर संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने भी बयान दे दिया, मतलब भारत में बलात्कार की घटना की पूरी दुनिया में चर्चा में हो गई, यह अपने देश के लिए बहुत हानिकारक है, दुनिया के लोग हमें सिखा रहे हैं कि भारतीयों को कैसे रहना चाहिए। 
कभी यह देश चरित्र की शिक्षा पूरी दुनिया को देता था। यहां पवित्र जीवन वाली महिलाएं हुई हैं। कितने महापुरुष इस देश में हुए हैं। चरित्र की उच्चता वाले, दूसरों को शिक्षित करने वाले, इतने महान लोग दूसरे किसी भी देश में नहीं हुए हैं। ऐसे देश में ऐसा कोई काम नहीं होना चाहिए कि नीचे देखना पड़े।
अंग्रेजी में भी कहा जाता है :-
इफ वेल्थ इज लॉस्ट, देन समथिंग इज लॉस्ट।
इफ करेक्टर इज लॉस्ट, एवरीथिंग इज लॉस्ट।
अर्थात :-
यदि संपत्ति गई, तो कुछ ही गया।
यदि चरित्र गया, तो सबकुछ गया।
दूसरे देश के लोगों को मौका नहीं देना चाहिए कि वे उंगली उठाएं। शासन और प्रशासन दोषी है। ये लोग देश में केवल एमबीए, सीए, डॉक्टर, इंजीनियर इत्यादि बनाने में लगे हैं, केवल ऐसी पढ़ाई से ही संसार की दृष्टि में हमारा स्वरूप बड़ा नहीं हो सकेगा। केवल इन पढ़ाइयों से किसी जाति, समाज, देश का भला नहीं हो सकता। शासन-प्रशासन को इस मामले में चुस्त होना चाहिए कि बच्चों को सही शिक्षा मिले। इस दिशा में दूसरे देशों की देखादेखी नहीं, बल्कि सोच-समझकर जल्दी कदम उठाने चाहिए। अच्छी शिक्षा मिले, व्यक्ति के काम का मूल्यांकन उसके चरित्र से होने लगे, तो सुधार होगा और भारत की छवि संसार में सबसे उज्ज्वल हो जाएगी।
जय सियाराम...
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