समापन भाग
कालीदास ने लिखा है - रघुवंशी राजाओं का प्राण योगियों की तरह छूट रहा है, तो इसके लिए तो अभ्यास करना पड़ेगा। संयम, नियम, तप से चलना पड़ेगा। गुरु वशिष्ठ आदर्श हैं संतों के, गुरुत्व के, संतत्व के। जितनी भी आध्यात्मिक ऊंचाइयां हैं, उसके अंतिम सोपान हैं वशिष्ठ जी। उन्होंने रघुवंश को ऊंचाई पर पहुंचाया और स्वयं पीछे रहकर संरक्षण का काम किया। निर्देशक मुख्य होता है, वह हर तरह के सुधार के लिए आग्रह करता है, प्रेरित करता है और ब्राह्मण, ऋषि, गुरु हमेशा पर्दे के पीछे रहता है, शासन के लिए आगे आने की परंपरा नहीं थी। सीधे शासन चलाना ब्राह्मणों का काम नहीं था।
कहने को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू भी ब्राह्मण थे, लेकिन ब्राह्मणत्व के लिए जो प्रयास होने चाहिए थे, जो गुण होने चाहिए थे, वो उनमें नहीं थे, लेकिन यदि ब्राह्मणत्व के जरूरी गुण उस वंश को प्राप्त हुए होते, तो यह वंश और भी ऊंचाई पर होता। उन्होंने शासक के रूप में ऊंचाइयों को प्राप्त नहीं किया जैसा रघुवंशी लोग प्राप्त करते थे। आध्यात्मिक ऊर्जा का लाभ देश को मिले, इसके लिए कोई प्रयास नहीं था।
जैसे अध्यापक बहुत अच्छा मिल जाए, लेकिन विद्यार्थी बहुत प्रयास नहीं करेंगे, पहलवान गुरु मिल जाए, शिष्य प्रयास न करे, तो सफल नहीं हो सकता। वैसे ही कितना बड़ा ही वैज्ञानिक अध्यापक हो जाए और विद्यार्थी प्रयास न करे, तो क्या लाभ होगा, इसलिए गुरु वशिष्ठ को मानक बनाकर चलना होगा। संपूर्ण संसार के लोग देश के लिए उनको प्रेरक स्तंभ बनाकर उनके अनुसार जीवन जीएं, आज भी जो पुराणों में संदर्भ हैं, विश्वास हैं, इस आधार पर हम अपने जीवन को जीएं, तो हमारा वंश ही रघुवंश हो जाएगा। हमारा जीवन ही राम जी के जैसा हो जाएगा। हमारा संपूर्ण प्रयास राम राज्य का संस्थापक प्रयास हो जाएगा। गुरु वशिष्ठ जी कहीं गए नहीं हैं, सप्त ऋषियों के रूप में मान्यता के आधार पर मौजूद हैं, बहुत खिन्न होकर भारत भूमि को देख रहे हैं, जहां रघुवंश आलोकित हो रहा था, वह भूमि कैसी हो गई। हमारे जो विचार हैं, कृतित्व हैं, जो आदर्श थे, जिसके आधार पर लोगों को प्रेरित होना था, जिससे लोग लोक, परलोक दोनों को बनाते, वो कहां गए। वशिष्ठ जी आज भी सप्तऋषि मंडल में विराजमान रहकर प्रेरित करने के लिए तत्पर हैं। कोई भी चाहे कि हमारे जीवन में रामराज्य आए, राम जी हमारे यहां प्रकट हों, रघु जी हमारे यहां प्रकट हों, हम असंख्य लोगों के लिए गंगा को लाने वाले भगीरथ जी की भूमिका में आ जाएं, तो वशिष्ठ जी से प्रेरणा लेनी पड़ेगी।
दोनों ही पक्षों में कमी आई है। संत लोग वशिष्ठ बनने के लिए प्रयासरत नहीं हैं, गाड़ी लिया, गद्दी पर बैठे, मौज से जीवन जी रहे हैं, उनमें यह इच्छा ही नहीं कि लोग उन्हें तपस्वी कहें, उन्हें तो बस पैसे की जरूरत है।
जैसे अभिनेता प्रदर्शन के लिए धन मांगते हैं, वैसे ही संत लोग भी मांगने लगे हैं। ऐसे लोग भी धर्म मंच पर विराजमान होने लगे हैं, जिनमें कोई तप-त्याग नहीं है। यह भी माना जाने लगा है कि जो जितना ज्यादा नंगा है, वह उतना ही बड़ा संत है, जिसके गले में जनेऊ है, वही ब्राह्मण है, जो बहुत बड़-बड़ करता है, वही बड़ा विद्वान है। जो चुनाव जीत जाए, वही नेता है, ये नई परिभाषाएं हैं।
पहले लोग केवल ज्ञान से बड़े नहीं होते थे, वे कर्म से बड़े होते थे, वे अपने लोगों, मानवता और संसार के लिए जीते थे। जैसे संतों ने केवल अपने लिए काम नहीं किया, सबके लिए काम किया। सभी के लिए जो काम करता है, वही तो ईश्वर है, जो अपने लिए काम करता है, वह मनुष्य है, जो अपने लिए भी नहीं करे, दूसरों के लिए भी नहीं करने दे, वह राक्षस है।
जो अपना संपूर्ण जीवन समाज के लिए दे, साधु का मतलब ही यही है कि वह अपनी संपूर्ण ऊर्जा दूसरों के लिए लगा दे। वह स्वयं भी आनंद के सागर में होता है और दूसरों को भी आनंद सागर में ले जाता है, दूसरों को भी धन्य जीवन के लिए, राष्ट्र जीवन के लिए तैयार करता है। वशिष्ठ जी आचार्य शिरोमणि हैं, जिनसे आचार्य भी सीख सकते हैं। मैं प्रार्थना करता हूं कि आप स्वयं के लोगों को शक्ति दें आशीर्वाद दें, प्रेरणा दें, शक्ति दें, हमें वशिष्ठ जैसे गुरु प्राप्त हों।
अभी तो साधु इसी बात में लगे हैं कि हमारा शिष्य हमें दक्षिणा दे। जजमान कहां डूब रहा है, उससे पुरोहित का कोई लेना-देना नहीं है। संत से सम्बंध को महत्व देना चाहिए, यह सम्बंध भोग के लिए नहीं है, लेकिन आज समाज में लोग संतों से भोग के लिए भी जुडऩे लगे हैं, इससे बुरी बात क्या हो सकती है? संत भी समाज से केवल पैसे के लिए सम्बंध बना रहे हैं, आज के ज्यादातर संतों, पुरोहितों को भी केवल भोग चाहिए। वैदिक सनातन धर्म को वशिष्ठ जी प्राप्त हुए, इसका गौरव है, पूरी दुनिया के इतिहास में वशिष्ठ जैसे गुरु किसी पंथ-संप्रदाय में नहीं हुए हैं। ऐसे पुरोहित गुरु न पहले हुए थे, न आज हैं और न कल होंगे।
हमारे देश को संपूर्ण रघुवंश जैसा होना चाहिए, संपूर्ण दुनिया रघुवंश जैसी हो जाए, रामराज्य की संस्थापना भारत में हो, पूरी दुनिया में हो। रामराज्य केवल भारत का राज्य नहीं था, पूरी दुनिया का राज्य था। रामराज्य में सभी राज्य समाहित थे, उन्हीं नियमों-कायदों से जुड़े हुए थे। आज कलयुग में भी अच्छे प्रयास जारी हैं, हम वशिष्ठ जी जैसा जीवन अपनाकर असंख्य लोगों का उद्धार करें। तभी हम अच्छे जीवन को जी सकेंगे।
जय श्रीराम
कालीदास ने लिखा है - रघुवंशी राजाओं का प्राण योगियों की तरह छूट रहा है, तो इसके लिए तो अभ्यास करना पड़ेगा। संयम, नियम, तप से चलना पड़ेगा। गुरु वशिष्ठ आदर्श हैं संतों के, गुरुत्व के, संतत्व के। जितनी भी आध्यात्मिक ऊंचाइयां हैं, उसके अंतिम सोपान हैं वशिष्ठ जी। उन्होंने रघुवंश को ऊंचाई पर पहुंचाया और स्वयं पीछे रहकर संरक्षण का काम किया। निर्देशक मुख्य होता है, वह हर तरह के सुधार के लिए आग्रह करता है, प्रेरित करता है और ब्राह्मण, ऋषि, गुरु हमेशा पर्दे के पीछे रहता है, शासन के लिए आगे आने की परंपरा नहीं थी। सीधे शासन चलाना ब्राह्मणों का काम नहीं था।
कहने को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू भी ब्राह्मण थे, लेकिन ब्राह्मणत्व के लिए जो प्रयास होने चाहिए थे, जो गुण होने चाहिए थे, वो उनमें नहीं थे, लेकिन यदि ब्राह्मणत्व के जरूरी गुण उस वंश को प्राप्त हुए होते, तो यह वंश और भी ऊंचाई पर होता। उन्होंने शासक के रूप में ऊंचाइयों को प्राप्त नहीं किया जैसा रघुवंशी लोग प्राप्त करते थे। आध्यात्मिक ऊर्जा का लाभ देश को मिले, इसके लिए कोई प्रयास नहीं था।
जैसे अध्यापक बहुत अच्छा मिल जाए, लेकिन विद्यार्थी बहुत प्रयास नहीं करेंगे, पहलवान गुरु मिल जाए, शिष्य प्रयास न करे, तो सफल नहीं हो सकता। वैसे ही कितना बड़ा ही वैज्ञानिक अध्यापक हो जाए और विद्यार्थी प्रयास न करे, तो क्या लाभ होगा, इसलिए गुरु वशिष्ठ को मानक बनाकर चलना होगा। संपूर्ण संसार के लोग देश के लिए उनको प्रेरक स्तंभ बनाकर उनके अनुसार जीवन जीएं, आज भी जो पुराणों में संदर्भ हैं, विश्वास हैं, इस आधार पर हम अपने जीवन को जीएं, तो हमारा वंश ही रघुवंश हो जाएगा। हमारा जीवन ही राम जी के जैसा हो जाएगा। हमारा संपूर्ण प्रयास राम राज्य का संस्थापक प्रयास हो जाएगा। गुरु वशिष्ठ जी कहीं गए नहीं हैं, सप्त ऋषियों के रूप में मान्यता के आधार पर मौजूद हैं, बहुत खिन्न होकर भारत भूमि को देख रहे हैं, जहां रघुवंश आलोकित हो रहा था, वह भूमि कैसी हो गई। हमारे जो विचार हैं, कृतित्व हैं, जो आदर्श थे, जिसके आधार पर लोगों को प्रेरित होना था, जिससे लोग लोक, परलोक दोनों को बनाते, वो कहां गए। वशिष्ठ जी आज भी सप्तऋषि मंडल में विराजमान रहकर प्रेरित करने के लिए तत्पर हैं। कोई भी चाहे कि हमारे जीवन में रामराज्य आए, राम जी हमारे यहां प्रकट हों, रघु जी हमारे यहां प्रकट हों, हम असंख्य लोगों के लिए गंगा को लाने वाले भगीरथ जी की भूमिका में आ जाएं, तो वशिष्ठ जी से प्रेरणा लेनी पड़ेगी।
दोनों ही पक्षों में कमी आई है। संत लोग वशिष्ठ बनने के लिए प्रयासरत नहीं हैं, गाड़ी लिया, गद्दी पर बैठे, मौज से जीवन जी रहे हैं, उनमें यह इच्छा ही नहीं कि लोग उन्हें तपस्वी कहें, उन्हें तो बस पैसे की जरूरत है।
जैसे अभिनेता प्रदर्शन के लिए धन मांगते हैं, वैसे ही संत लोग भी मांगने लगे हैं। ऐसे लोग भी धर्म मंच पर विराजमान होने लगे हैं, जिनमें कोई तप-त्याग नहीं है। यह भी माना जाने लगा है कि जो जितना ज्यादा नंगा है, वह उतना ही बड़ा संत है, जिसके गले में जनेऊ है, वही ब्राह्मण है, जो बहुत बड़-बड़ करता है, वही बड़ा विद्वान है। जो चुनाव जीत जाए, वही नेता है, ये नई परिभाषाएं हैं।
पहले लोग केवल ज्ञान से बड़े नहीं होते थे, वे कर्म से बड़े होते थे, वे अपने लोगों, मानवता और संसार के लिए जीते थे। जैसे संतों ने केवल अपने लिए काम नहीं किया, सबके लिए काम किया। सभी के लिए जो काम करता है, वही तो ईश्वर है, जो अपने लिए काम करता है, वह मनुष्य है, जो अपने लिए भी नहीं करे, दूसरों के लिए भी नहीं करने दे, वह राक्षस है।
जो अपना संपूर्ण जीवन समाज के लिए दे, साधु का मतलब ही यही है कि वह अपनी संपूर्ण ऊर्जा दूसरों के लिए लगा दे। वह स्वयं भी आनंद के सागर में होता है और दूसरों को भी आनंद सागर में ले जाता है, दूसरों को भी धन्य जीवन के लिए, राष्ट्र जीवन के लिए तैयार करता है। वशिष्ठ जी आचार्य शिरोमणि हैं, जिनसे आचार्य भी सीख सकते हैं। मैं प्रार्थना करता हूं कि आप स्वयं के लोगों को शक्ति दें आशीर्वाद दें, प्रेरणा दें, शक्ति दें, हमें वशिष्ठ जैसे गुरु प्राप्त हों।
अभी तो साधु इसी बात में लगे हैं कि हमारा शिष्य हमें दक्षिणा दे। जजमान कहां डूब रहा है, उससे पुरोहित का कोई लेना-देना नहीं है। संत से सम्बंध को महत्व देना चाहिए, यह सम्बंध भोग के लिए नहीं है, लेकिन आज समाज में लोग संतों से भोग के लिए भी जुडऩे लगे हैं, इससे बुरी बात क्या हो सकती है? संत भी समाज से केवल पैसे के लिए सम्बंध बना रहे हैं, आज के ज्यादातर संतों, पुरोहितों को भी केवल भोग चाहिए। वैदिक सनातन धर्म को वशिष्ठ जी प्राप्त हुए, इसका गौरव है, पूरी दुनिया के इतिहास में वशिष्ठ जैसे गुरु किसी पंथ-संप्रदाय में नहीं हुए हैं। ऐसे पुरोहित गुरु न पहले हुए थे, न आज हैं और न कल होंगे।
हमारे देश को संपूर्ण रघुवंश जैसा होना चाहिए, संपूर्ण दुनिया रघुवंश जैसी हो जाए, रामराज्य की संस्थापना भारत में हो, पूरी दुनिया में हो। रामराज्य केवल भारत का राज्य नहीं था, पूरी दुनिया का राज्य था। रामराज्य में सभी राज्य समाहित थे, उन्हीं नियमों-कायदों से जुड़े हुए थे। आज कलयुग में भी अच्छे प्रयास जारी हैं, हम वशिष्ठ जी जैसा जीवन अपनाकर असंख्य लोगों का उद्धार करें। तभी हम अच्छे जीवन को जी सकेंगे।
जय श्रीराम