Saturday 4 November 2017

महर्षि मनु भाग - 7

: दुनिया के पहले संविधान निर्माता :
दान कैसे होता है, तीर्थ यात्रा कैसे होती है, माता-पिता की सेवा कैसे होती है। ये कौन सिखलाएगा सबको? मुसलमानों को पता है क्या कि माता देवी स्वरूप क्यों है, कैसे हमें उसका ऋण उतारना होगा। बच्चों को कैसे अध्ययन करना है, यह कौन बताएगा, मोबाइल से वेदाध्ययन होगा क्या? कोई चरित्रवान कैसे बनेगा? चारों ही वर्णों को, कौन कत्र्तव्य बताएगा, ब्राह्मण का, क्षत्रिय, वैश्य का शूद्र का। जो लोग घृणित हो गए हैं, उन्हें क्या मिल रहा है। अमेरिका आज भी रंगभेद की दलदल में है। काले-गोरे की भावना नहीं जा रही है। यह जातिभेद से भी घृणित है। यहां जो सम्मान मिला जातियों का बंटवारा होने के बाद ही, यह कहीं नहीं मिला है। जब मनु द्वारा संवद्र्धित संसार को देखा जाएगा, तब मनुवाद अभिशाप के रूप में पक्षपात के रूप स्वीकार नहीं किया जाएगा। 
मनु ने कहा कि वेद धर्म के मूल हैं। जो हमारे जीवन को बढ़ाने वाला है, वह धर्म है। जैसे सूर्य और चंद्रमा को हम कभी नहीं छोड़ पाएंगे, उसी तरह संसार के सभी मनुष्यों को कल्पित पद्धतियों से जीवन जीने वाले जैसे-तैसे जीवन जीने वाले मनु स्मृति का जरूर अध्ययन करें। परिपक्व रूप में मनु स्मृति को अपने जीवन में उतारें, अपने चरित्र में उतारें, तो उनके विकास को कोई रोक नहीं पाएगा। 
मनु को श्रेय देना चाहिए। मनु स्मृति को श्रेय देना चाहिए। उन नेताओं को सीखना चाहिए, जो समाज को वोट के लिए बांट रहे हैं। राष्ट्रपति भवन में आम आदमी जाने लगे, तो वह तो चौराहा हो जाएगा। बड़े लोगों से मिलने की मर्यादा है। बड़ा काम करने की मर्यादा है।
मनु सृष्टि के आदर्श हैं, अतुलनीय और प्रेरक हैं। सभी तरह के श्रेष्ठ जीवन से सज्जित हैं। मनु की संतानों को ही मानव कहते हैं। मनु को गाली देने वाले, स्वयं दूषित हो गए, जो लोग मनुवाद को नुकसान पहुंचाकर आगे बढऩा चाहते हैं, वे स्वयं भी लांछित हो गए। उनकी पार्टी के लोग ही कहने लग गए कि ये केवल धन के लिए, स्वार्थ के लिए जी रहे हैं, उन्हें गरीबों से कोई लेना-देना नहीं है, दलितों से कोई लेना देना नहीं है, ये तो जमींदारों से भी आगे निकल गए हैं। मनुवाद की जिन विकृतियों को वे निशाना बना रहे थे, वही विकृतियां स्वयं उनमें आ गईं। 
मनु की प्रेरणा से ही भारत को विश्व गुरुत्व प्राप्त हुआ, लेकिन हम यह बात भूल गए। भारतीय संविधान जो धर्मनिरपेक्ष संविधान बन गया। भारत का संविधान बनाते हुए हमने अनेक देशों के संविधान का नकल किया, लेकिन मनु के संविधान को नहीं देखा। यह देश मनु का देश है, हमारे रक्त में उनका अंश है। तपस्वी का देश है, लेकिन हमने सृष्टि के पहले लिखित संविधान को उपेक्षित कर दिया। स्वतंत्र आधुनिक भारत के संविधान में मनु रचित संविधान को भी लेना चाहिए। यह सोचना था कि धर्म को कैसे जोड़ा जाए, केवल संविधान में यह लिखने से नहीं चलेगा कि सत्यमेव जयते। 
सोचना चाहिए था कि सत्य को कैसे जोड़ा जाए। केवल लिख देने से लोग सत्य नहीं बोलने लगेंगे। सत्य की व्याख्या मनु से पूछिए, सत्य का प्रयोग मनु से पूछिए, वर्णों, आश्रमों का वर्गीकरण मनु से पूछिए। हमारा दुर्भाग्य है कि समाज कल्याण के मनु मार्ग को छोड़ दिया गया। 
भगवान ने सोचा कि लोग कैसे रहेंगे, तो उन्होंने वेदों को बनाया। फिर स्मृतियों का जन्म हुआ। पहला ज्ञान अनुभव है और जब उसका स्मरण होता है, तो उसे स्मृति बोलते हैं। 
संपूर्ण संसार की मार्गदर्शक और सर्वोत्कृष्ट ऊंचाई, आनंद, सफलता देने वाली उसकी नियंत्रक प्रकाशक मनु स्मृति है। मनुवादी... मनुवादी कहकर अपने व्यक्तित्व को ही व्यक्ति लांछित न करे। संविधान में मनु की विशेषताओं को जोड़ा जाता। धर्मनिरपेक्षता ने हमें कुछ नहीं दिया। अनेक लोग हैं, जो इस देश के स्वरूप को नष्ट करने में लगे हुए हैं। यदि हम मनु स्मृति के अनुरूप देश को चलाते, तो भारत अभी भी पूरी तरह से विश्व शुरू होता। मनु के अनुरूप चलते तो हम लौकिक और परालौकिक विकास करते। निस्संदेह, हमें विकसित भारत के निर्माण के लिए मनु की शरण में जाना चाहिए। उनसे सीखना चाहिए।

जयसियाराम

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