Monday 27 August 2018

बच्चों को महामानव बनाएं

भाग - ६
हम बच्चों को अच्छी चीजों का संग्रह करना भी सिखाएं। शिशु कुछ भी उठाकर मुंह में डालने की कोशिश करता है, उसे हम रोकते हैं। उसे हम सिखाते हैं - यह बिल्कुल खराब है, इससे आप राजा बेटा नहीं बनेंगे, इससे सुंदर नहीं बनेंगे, यह दूसरे का है, थू थू थू। यह बहुत गलत है।
जैसेे हम बिजली, अत्यधिक पानी से बच्चों को बचाते हैं, ठीक उसी तरह से उन चीजों से भी बच्चों को बचाएं, जो गलत दिशा में ले जाती हैं। हमें क्या संग्रह करना है और क्या नहीं करना है। ऐसा आहार संग्रहित नहीं करना, जो दूषित है। हम अपने घर में मांगलिक पशु-पक्षी ही पालें। शुरू से अभ्यास करा दिया जाए कि इन्हीं रंगों को पहनना है, जिसे ऋषियों ने पहना, जिसे पूर्वजों ने पहना। 
अभी समस्या है बच्चों में, जवानों में, यह बात समझ नहीं आती कि हमारा भोजन कैसा हो, हमारा वस्त्र कैसा हो, कैसे बोलें, कैसे नमस्कार करें, कैसे किसी के लिए प्रस्तुत हों। जो हमारे आदर्श हैं, अनादि काल से जिन संस्कारों और व्यवहारों के आधार पर हमने दुनिया को चमत्कृत किया है, दुनिया को आगे बढ़ाया है, श्रेष्ठ बनाया है, जीवन को पूर्ण विकसित स्वरूप दिया है, उसकी शिक्षा के लिए शुरू से ही तैयारी होनी चाहिए। 
मैंने लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की जीवनी में पढ़ा था कि जब उनकी दादी जी का शरीर अंतिम सांसें ले रहा था, तब घर वालों ने कहा कि दादी जी को गीता सुनाना है, तिलक ने गीता सुनाई। घर वालों की आज्ञा थी। ब्राह्मण परिवार था, पढऩे का अभ्यास था। अर्थ समझ में नहीं आता था, किन्तु पाठ कर दिया। बाद में उनके मन में आया, जब वयस्क हो गए, जब अच्छी आयु हो गई कि आखिर दादी जी परलोक जा रही थीं, तो क्यों गीता सुनाने के लिए कहा गया? क्या मृत्यु को गीता रोक सकती है? क्या इसको सुनाने से आगे की यात्रा अच्छी होगी? श्रेष्ठ योनि मिलेगी क्या? ये प्रश्न गूंजने लगे, तो तिलक ने गीता का अनुसंधान किया। दुनिया में जितनी भी टिकाएं हैं, हिन्दी, संस्कृत में सबको पढ़ा और एक अति उत्तम कृति प्रकट हुई। संसार में गीता पर अनेक व्याख्याएं हुई हैं। आचार्यों की व्याख्याओं को छोड़ दिया जाए, आदि शंकराचार्य जी, रामानुजाचार्य जी, रामानंदाचार्य जी, वल्लभाचार्य जी ने जो टिकाएं लिखीं, उनको छोड़ दिया जाए, किन्तु जो आधुनिक विद्वानों ने गीता पर जितना चिंतन किया, उनमें से एक भी तिलक की गीता व्याख्या के स्तर को प्राप्त नहीं कर सके। यातना झेलते हुए जेल में रहकर उन्होंने मराठी में गीता का व्याख्यान प्रस्तुत किया - गीता रहस्य - कर्मयोगशास्त्र...। अब तो इसका संसार की कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। अद्भुत व्याख्या है। मेरा यह कहना है कि प्रारंभ में ही पाठ करवाया गया। दादी जी अंतिम सांसें ले रही थीं, घर के लोगों ने गीता पाठ करवाया, तो वही बालक आगे चलकर गीता का महान अध्येता-व्याख्याता बना। उनके जीवन को गीता ने ऐसा प्रकाश दिया, ऐसा मोड़ दिया कि लोकमान्य तिलक इस क्षेत्र के अमर पुरुष हो गए। 
क्रमश: 

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