Friday, 8 December 2017

योग का उद्देश्य समझिए - 4

नियम का महत्व 
योग में यम के बाद नियम का महत्व है। नियम के पांच अंग हैं - शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान। हम नियमों का पवित्रता से पालन करें। आज के योगियों को शौच का कितना ज्ञान है। लोग गलत काम करते हैं, हाथ नहीं धोते, कान को पकड़ा, जूता छुआ, पैर छुआ और उसके बाद आसन भी कर लेते हैं। ऐसे आसन नहीं किया जा सकता। पतंजलि ऋषि ने लिखा है कि आदमी को अपने अंगों से ही घृणा हो जाएगी। जब व्यक्ति बाहर से भी पवित्र होगा, अंदर से भी पवित्र होगा, तो दूसरे के लिए आकर्षण क्या होगा, उसे अपने से भी घृणा होने लगेगी। यह भाव आने लगेगा कि नहीं-नहीं, अब हमें किसी की जरूरत नहीं है, अब हम किसी को छुएंगे नहीं, किसी को भी प्राप्त करने की जरूरत नहीं। दूसरों से संसर्ग की इच्छा नहीं होगी। दूसरों को गले लगाने की इच्छा नहीं होगी, वह यह सदा मानेगा कि हमारे संस्कार अलग हैं, हमारे परमाणु अलग हैं, हम अपने चित्त को निरुद्ध करना चाहते हैं। हम शांति और आनंद के सागर में निमग्न होना चाहते हैं, तो किसी को छूने की भी जरूरत नहीं।
महर्षि पतंजलि ने लिखा है - शौच का सही पालन करने से अपने ही अंगों से वैराग्य उत्पन्न होता है और दूसरों को छूने की भी इच्छा नहीं होती। 
शौच के लिए जैसे सफाई आवश्यक है, उससे भी आवश्यक है कि हम पवित्रता का पालन करें। किटाणु भले आंखों से दिखाई न पड़ते हों, लेकिन वे हैं और हमें दुष्प्रभावित करते हैं। लोग समझते हैं कि अपने बालों को छूने से क्या होगा, अपने अंगों को छूने से क्या होगा, अपनी उंगलियों से आंखों को साफ करने से क्या होगा, लेकिन हर जगह किटाणु हैं, गंदगी है। योग करते हुए सजग होना चाहिए। शौच का पालन करने से ही हम पवित्र हो सकते हैं, तभी मन साफ हो जाएगा। क्या आज के योगियों को शौच का पूरा ध्यान है? क्या वे अपने शिष्यों को शौच का पाठ पढ़ा रहे हैं?
ठीक उसी तरह से हममें संतोष हो। महर्षि पतंजलि ने लिखा है - संतोषादनुत्तमसुखलाभ:। आज तमाम घोटाले संतोष के अभाव में ही हो रहे हैं। संतोष होगा, तभी सुख की प्राप्ति होगी। संतोष का मतलब हम सही काम करें, समर्पित होकर काम करें और उससे जो संसाधन प्राप्त हो, उसी से हम जीवन का निर्वाह करें। यही संतोष है। काम और व्यापार किया, तो भी संतोष होना चाहिए। 
उसके बाद तप भी आवश्यक है। तप के कारण अशुद्धियां समाप्त होती हैं। स्वाध्याय का भी अवलंबन करना चाहिए। ईश्वर के गुणों का जप करें, मोक्ष शास्त्रों का अध्ययन करें, यह स्वाध्याय है। आज के योग के प्रचारक स्वाध्याय नहीं करते हैं। लोग कहते हैं कि पढऩे से केवल नौकरी मिलती है, लेकिन महर्षि पतंजलि ने लिखा कि मोक्ष शास्त्रों को पढ़ो, वेदों, स्मृतियों, पुराणों, दर्शन शास्त्र को, गीता को पढ़ो, रामायण को पढ़ो, तभी तुम ईश्वर के लिए समर्पित होगे। ईश्वर के सही स्वरूप को तुम जान सकोगे, तुम्हारा उनके प्रति आकर्षण होगा। तुम्हारी समाधि हो जाएगी और मोक्ष का लाभ होगा।  
दार्शनिक प्लेटो ने कहा था कि दुनिया का शासक दार्शनिक होना चाहिए, मैं कहता हूं दुनिया के हर आदमी को दार्शनिक होना चाहिए। जो स्वाध्याय करेगा, उसे पता चलेगा कि उसे बुद्धि को कहां लगाना है, समस्या का समाधान कहां है, यह शास्त्रों के अध्ययन से ही पता चलेगा। शास्त्रों को सही पढऩे वाला कभी नहीं बिगड़ेगा। उसे जीवन के उद्देश्य का पता होगा। यह भी नियम का अंग है।
उसके बाद नियम में प्रणिधान अर्थात ईश्वर प्रणिधान आवश्यक है।
समाधिसिद्धिरीश्वर प्रणिधानात्। 
वास्तव में समाधि की सिद्धि प्रणिधान से होती है। योग के मार्ग में स्वयं को ईश्वर के लिए समर्पित कर देना चाहिए। 
क्रमश: 

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