Friday, 8 December 2017

योग का उद्देश्य समझिए - 5

योग का विकल्प भी बताया
यदि कोई यम-नियम नहीं करना चाहता और समाधिस्थ होना चाहता है, मोक्ष की प्राप्ति चाहता है। उसके लिए विकल्प बताया महर्षि पतंजलि ने कि ईश्वर प्रणिधान करो। ईश्वर का चिंतन करो, ईश्वर के लिए अपने जीवन को समर्पित करो, ऐसा करने से बिना किसी संसाधन के आपको मोक्ष या समाधि की प्राप्ति होगी। ईश्वर का हम प्रणिधान करें। विकल्प क्या है? इसे बहुत ध्यान से समझाना चाहिए। जैसे हम हवाई जहाज से नहीं जा सकते, तो रेल से जा सकते हैं, रेल से नहीं जा सकते, तो बस से जा सकते हैं, बस से नहीं जा सकते, तो पैदल जा सकते हैं। समाधि की प्राप्ति के लिए विकल्प बता दिया महर्षि पतंजलि ने कि ईश्वर प्रणिधान करो। यह भी नियम का भाग है। ईश्वर में हम पूरा ध्यान लगाएं, तो इससे भी सीधे समाधि की प्राप्ति संभव है। 
भगवान ने कहा कि मेरी शरण में आ जाओ। इसमें ज्ञान की विशेष जरूरत नहीं है, मेरे ऊपर पूर्ण रूप से विश्वास करके, सभी मोह, माया, प्रपंच, सभी दूसरे अवलंबों को दूसरे आश्रयों को पूर्णत: विदाई देकर तुम आ जाओ मेरी शरण में, तुम्हें मैं मोक्ष दूंगा, तुम्हारे शोक दूर करूंगा, तुम्हें तमाम प्रकार के दुखों से दूर करूंगा। यह भी मोक्ष का मार्ग है। 
यम, नियम योग दर्शन के महत्वपूर्ण सोपान हैं। आज समाज के हर व्यक्ति को जरूरत है कि वह यम, नियम का अवलंबन करे। महा चंचलता से युक्त मन को संभालना है, नियंत्रित करना है, तो यम, नियम का पालन करना होगा। 

योग का तीसरा अंग आसन 
आसन को परिभाषित करते हुए महर्षि पतंजलि ने लिखा -
स्थिरसुखमासनम्। 
चित्त का स्थिर होना आसन है। सुख से स्थिर बैठना आसन है। केवल हाथ पैर हिल रहे हैं, यह आसन नहीं है। हम बैठे हैं और सुख नहीं मिल रहा है, तो आसन नहीं हुआ। हम अंग संचालन बंद करें, तब भी सुख की प्राप्ति हो, यह आसन है। हम आसन का अवलंबन करें। आसन करने से क्या होगा? योग का तीसरा अंग आसन जब सिद्ध हो जाएगा, तो हमारा मन अनंत परमात्मा में लगने लग जाएगा। आसन के दो फल हैं - मन लगने लगेगा परमात्मा में और जो द्वंद्व होते हैं विपरीत भावों को, हम उन्हें झेल सकेंगे। 
ततो द्वंद्वानभिघात:।
हम भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी को झेल सकेंगे। विपरीत परिस्थितियों को झेलने की शक्ति आसन करने से ही मिलती है। हमें बेचैन करने वाले द्वंद्व दूर होंगे। हमारा ईश्वर में जो मन प्रतिष्ठित नहीं हो रहा था, उसमें उसकी प्रतिष्ठा होने लगेगी। मन को भागने से हम रोक पाएंगे। हम आसानी से अपने चित्त को ईश्वर में लगा सकेंगे, इसलिए योग दर्शन में वर्णित विभिन्न आसनों का अभ्यास करना चाहिए। आज लोग जहां जाते हैं, देखने लगते हैं कि मेरे लिए क्या आसन हैं। मेरे लिए बैठने का क्या संसाधन रखा गया है। देखने लगते हैं कि खाने के क्या संसाधन हैं। कुछ न मिले, तो व्यक्ति को विषाद होने लगता है, लेकिन आसन सही आ गया, तो हमारे ये द्वंद्व दूर हो जाएंगे। 

चौथा अंग प्राणायाम
आसन सिद्ध हो जाएं, तो प्राणायाम करना चाहिए। श्वांस-प्रश्वांस की गति को रोकने का नाम प्राणायाम है। महर्षि ने लिखा - 
तस्मिन् सतिश्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम:। 
इससे चित्त की एकाग्रता बढ़ती है। इसलिए सनातन धर्म में किसी भी पूजन के प्रारंभ में भी और अंत में भी कहते हैं कि अब आप प्राणायाम कीजिए। हम अपने श्वांस-प्रश्वांस की गति को रोकें। वायु को अंदर लेना श्वांस और वायु को छोडऩे को प्रश्वांस कहते हैं। योग दर्शन की भाषा में जो श्वांस भीतर ले जाते हैं, उसे पूरक बोलते हैं और जो श्वांस छोड़ते हैं, उसे रेचक कहते हैं और श्वांस रोकने को कुंभक कहते हैं। जो वायु है, उसे बाहर निकालना, धीरे-धीरे वायु को भगवान का नाम लेते हुए अंदर ले जाना, फिर श्वांस-प्रश्वांस को रोक देना और उसके बाद धीरे-धीरे प्राण वायु को निकालना, इसी का नाम प्राणायाम है। 
प्राणायाम करने से क्या होगा? प्राणायाम करने से हमारी चित्त वृत्तियां रुकेंगी। हमारा संपूर्ण समाधि का क्रम मजबूत होगा। लोगों को शांति मिलेगी, चित्त का उद्वेग रुकेगा। जीवन जीने का इतना लाभ होगा कि जिसकी परिकल्पना भी लोग नहीं कर सकते। संपूर्ण ज्ञान हममें समाहित है, ज्ञान कहीं बाहर से नहीं आता, उस पर मल जमा हुआ है, अनेक तरह के आवरण हैं उस पर, इससे उसका प्रकाश प्रभावित हो जाता। प्राणायाम करने से प्रकाश या ज्ञान पर से आवरण हटते हैं। हमारा चित्त धुलता जाता है। प्राणायाम से हम बातों को बहुत दिनों तक याद रख सकते हैं। स्मरण व अन्य सकारात्मक शक्तियां प्राणायाम से बढ़ जाती हैं।
क्रमश: 

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