परमसुख के लिए योग
यदि किसी को जीवन का परमसुख लेना है, पूर्णता लेनी है, तो महर्षि पतंजलि के योग दर्शन का अवलंबन करके। यम से लेकर समाधि पर्यंत योग का संपादन करें। आज देखिए, व्यक्ति चाहता है कि मैं अपने चित्त को अधिक से अधिक फैलाऊं। यह अज्ञान का विस्तार है। यह जितना बढ़ेगा, संसार में उतनी ही अशांति बढ़ेगी। इसलिए संसार के सभी लोगों को योग का अवलंबन करके अन्य संसाधनों को गौण करके, साधनों का उतना ही उपयोग किया जाए, जितना जीवन जीने के लिए आवश्यक है। अभी तो इतनी बीमारियां हैं, तमाम समाज में अमानवीय कृत्य हो रहे हैं। जब संपूर्ण संसार को योग का आनंद मिल जाएगा, तो क्यों आदमी बुराई में लगेगा, क्यों आदमी आतंककारी बनेगा। जिसे उत्तम रूप मिल जाएगा, वह दूसरे छोटे रूपों को क्यों देखेगा?
गलत प्रचार न हो
यह दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि आज जो लोग योग प्रचारक के रूप में प्रचलित हैं, वे केवल धन और प्रतिष्ठा कमाने के लिए कर रहे हैं। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के बारे में लोग मानते थे कि उन्हें योग का बड़ा ज्ञान था, सरकार से नजदीकी के कारण लोग स्वीकारने लगे थे, लेकिन अंत में क्या हुआ। उन्हें इंदिरा गांधी का परिवार ही सम्मान नहीं दे सका। इंदिरा गांधी की पार्टी सम्मान नहीं दे सकी। वे कैसे योगी थे? आज उनका नाम लेने वाला कोई नहीं है।
आज मैं किसी का नाम लेना नहीं चाहता, लेकिन बहुत से लोग योग का प्रचार कर रहे हैं। आश्रम नहीं, होटल खुल रहे हैं, दुकानें खुल रही हैं। अब कैसे लोग विश्वास करेंगे कि योग से व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है?
अब योग का सरकार में विभाग होना चाहिए और उस विभाग को अत्यंत विशुद्ध रूप से प्रचारित किया जाए। अधिकारी, नेता सभी इसमें भाग लें, तभी भ्रष्टाचार, अनियमितताएं, व्याधियां मिटेंगी। बड़े-बड़े जो घोटाले हो रहे हैं, न्यायपालिका और विधायिका में जो व्याधियां हो रही हैं, उन सबका समाधान योग के जरिये हो सकता है।
केवल रोग निवारण नहीं
जिसे देखो, वही योगासान कर रहा है। आज का योग केवल रोग निवारण का साधन बनकर रह गया है। यह योग का अत्यंत गौण फल है। केवल रोग निवारण के लिए प्रयासरत होने से सच्चा सुख नहीं मिल सकता। मैं मानता हूं, आसनों से रोग निवारण होता है, लेकिन यह योग का अंतिम फल नहीं है। यह योग का पूरा सत्य नहीं है। लोगों को योग के पूर्ण सत्य से साक्षात्कार करना चाहिए, तभी जीवन को संपूर्णता मिलेगी। सच्चे योगी में तो इतनी शक्ति आ जाती है कि वो जो चाहे, वैसा कर सकता है। वह पिछले जन्मों और आगे के जन्मों को देख सकता है। केवल घुटने का दर्द कम करने के प्रयास बंद हों और योग की सही प्रक्रिया की स्थापना समाज में हो। पतंजलि के ज्ञान का पूरा लाभ लिया जाए। योग ने असंख्य लोगों को परम जीवन दिया है, आज भी देने में समर्थ है, योग की सभी क्रियाओं का संपूर्ण संसार में अवलंबन होना चाहिए।
जयसियाराम
यदि किसी को जीवन का परमसुख लेना है, पूर्णता लेनी है, तो महर्षि पतंजलि के योग दर्शन का अवलंबन करके। यम से लेकर समाधि पर्यंत योग का संपादन करें। आज देखिए, व्यक्ति चाहता है कि मैं अपने चित्त को अधिक से अधिक फैलाऊं। यह अज्ञान का विस्तार है। यह जितना बढ़ेगा, संसार में उतनी ही अशांति बढ़ेगी। इसलिए संसार के सभी लोगों को योग का अवलंबन करके अन्य संसाधनों को गौण करके, साधनों का उतना ही उपयोग किया जाए, जितना जीवन जीने के लिए आवश्यक है। अभी तो इतनी बीमारियां हैं, तमाम समाज में अमानवीय कृत्य हो रहे हैं। जब संपूर्ण संसार को योग का आनंद मिल जाएगा, तो क्यों आदमी बुराई में लगेगा, क्यों आदमी आतंककारी बनेगा। जिसे उत्तम रूप मिल जाएगा, वह दूसरे छोटे रूपों को क्यों देखेगा?
गलत प्रचार न हो
यह दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि आज जो लोग योग प्रचारक के रूप में प्रचलित हैं, वे केवल धन और प्रतिष्ठा कमाने के लिए कर रहे हैं। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के बारे में लोग मानते थे कि उन्हें योग का बड़ा ज्ञान था, सरकार से नजदीकी के कारण लोग स्वीकारने लगे थे, लेकिन अंत में क्या हुआ। उन्हें इंदिरा गांधी का परिवार ही सम्मान नहीं दे सका। इंदिरा गांधी की पार्टी सम्मान नहीं दे सकी। वे कैसे योगी थे? आज उनका नाम लेने वाला कोई नहीं है।
आज मैं किसी का नाम लेना नहीं चाहता, लेकिन बहुत से लोग योग का प्रचार कर रहे हैं। आश्रम नहीं, होटल खुल रहे हैं, दुकानें खुल रही हैं। अब कैसे लोग विश्वास करेंगे कि योग से व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है?
अब योग का सरकार में विभाग होना चाहिए और उस विभाग को अत्यंत विशुद्ध रूप से प्रचारित किया जाए। अधिकारी, नेता सभी इसमें भाग लें, तभी भ्रष्टाचार, अनियमितताएं, व्याधियां मिटेंगी। बड़े-बड़े जो घोटाले हो रहे हैं, न्यायपालिका और विधायिका में जो व्याधियां हो रही हैं, उन सबका समाधान योग के जरिये हो सकता है।
केवल रोग निवारण नहीं
जिसे देखो, वही योगासान कर रहा है। आज का योग केवल रोग निवारण का साधन बनकर रह गया है। यह योग का अत्यंत गौण फल है। केवल रोग निवारण के लिए प्रयासरत होने से सच्चा सुख नहीं मिल सकता। मैं मानता हूं, आसनों से रोग निवारण होता है, लेकिन यह योग का अंतिम फल नहीं है। यह योग का पूरा सत्य नहीं है। लोगों को योग के पूर्ण सत्य से साक्षात्कार करना चाहिए, तभी जीवन को संपूर्णता मिलेगी। सच्चे योगी में तो इतनी शक्ति आ जाती है कि वो जो चाहे, वैसा कर सकता है। वह पिछले जन्मों और आगे के जन्मों को देख सकता है। केवल घुटने का दर्द कम करने के प्रयास बंद हों और योग की सही प्रक्रिया की स्थापना समाज में हो। पतंजलि के ज्ञान का पूरा लाभ लिया जाए। योग ने असंख्य लोगों को परम जीवन दिया है, आज भी देने में समर्थ है, योग की सभी क्रियाओं का संपूर्ण संसार में अवलंबन होना चाहिए।
जयसियाराम
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