Sunday, 31 December 2017

अपने-अपने संकल्प


सबके मन में प्रतिशोध की भावना होती है, सबके मन में यह भावना होती है कि उसके हिसाब से ही सारे काम हों। सबके अपने-अपने संकल्प होते हैं। लेकिन इसके लिए जो लोग हमारे विपरीत हैं, उनका हम क्या करें? हमें बनाना है राम राज्य और हम प्रयोग कर रहे हैं रावण राज का। सरेआम सडक़ पर गलत काम हो, व्यभिचार हो, यह कदापि उचित नहीं। इस तरह से राम राज्य नहीं आएगा। रावण तो आतंकवाद का सबसे बड़ा प्रतीक हुआ। उसने तो राम जी की पत्नी का ही धोखे से अपहरण कर लिया। ब्राह्मणों की तो हत्या रोज ही होती थी, वेद ध्वनि बंद हो गई थी, यज्ञ बंद हो गए, माता-पिता का सम्मान बंद हो गया था, देवताओं का कोई सम्मान नहीं रहा। अर्थ यह कि धर्म की, श्रेष्ठता की, पवित्रता की, मर्यादाओं की, अच्छी परंपराओं की विधियां नष्ट हो गई थीं। दंड व प्रतिशोध का कोई विकल्प नहीं बच गया था। परन्तु तब भी राम जी ने हनुमान जी को भेजा, अंगद को भेजा, विभीषण, कुंभकर्ण और यहां तक कि पुलत्श्य को भी परोक्ष रूप से प्रेरित किया कि वे रावण को सुधरने के लिए समझाएं। ताकि रावण रास्ते पर आ जाए। राम जी ने रावण को पूरे मौके दिए, वे प्रतिशोध भावना के कारण अमर्यादित नहीं हुए। प्रतिशोध या किसी को दंड देने की भी एक मर्यादा होती है, एक उचित विधि होती है। हनुमान ने भी तरह-तरह से समझाया, अंगद ने भी रावण को खूब समझाया कि बिना हत्या-मारकाट, बिना युद्ध के ही सुधार हो जाए। रावण के ही कुटुंब के लोगों ने समझाया कि राम जी को उनकी धर्म पत्नी लौटा दो, धर्म का पालन करो, लेकिन जब रावण नहीं माना, तब राम जी ने अंतिम विकल्प के रूप में विधिवत व घोषित युद्ध का सहारा लिया। वे रावण की तरह छिपकर आक्रमण करने नहीं गए, उन्होंने रावण की तरह किसी को धोखा नहीं दिया। राम जी ने अमर्यादित व दुष्ट रावण को भी दंड देने के लिए युद्ध की तमाम मर्यादाओं का पालन किया। आक्रमण का वह तरीका नहीं था, जो आज दंगों के समय देखने को मिलता है या आतंककारी हमलों के समय देखने को मिलता है। राम जी की सेना ने खुलेआम सडक़ों पर मौत का तांडव नहीं मचाया। निर्दोष लोगों को नहीं मारा। लूटमार या हत्या या बलात्कार का सहारा नहीं लिया। युद्ध जीतने के बाद भी राम जी की सेना ने लंका में घुसकर कोई उत्पात नहीं मचाया। यदि सडक़ पर खुलेआम व्यभिचार होगा, अन्याय होगा, तो राम राज्य कैसे आएगा? एक हत्या करने के बाद हत्या की भावना बनी रहती है। लाखों में से कोई एक हत्यारा ही सामान्य हो पाता है। 
प्रतिशोध के लिए और श्रेष्ठ मूल्यों की स्थापना के लिए उन कृत्यों की जरूरत नहीं है, जिन कृत्यों की हम निंदा करते हैं। जोर-ज्यादती ठीक नहीं है। रावण जैसी तानाशाही ठीक नहीं है। जब देश स्वतंत्र हुआ, तब किसी ने गांधी जी से कहा कि देश में तानाशाही की जरूरत है। गांधी जी ने जवाब दिया, ‘यह मैं भी मानता हूं, लेकिन जो लोग दस साल तानाशाही चला लेंगे, वो फिर लोकतंत्र को नहीं आने देंगे।’ प्रतिशोध भाव होना चाहिए, लेकिन सुधार के लिए होना चाहिए। हमें यथोचित मर्यादाओं, संविधान, धर्म के हिसाब से चलना चाहिए। हमें कदापि बर्बर नहीं होना चाहिए।  

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