Monday, 27 August 2018

बच्चों को महामानव बनाएं

भाग - ८
ऐसे ही एक दिन मैं दिल्ली आ रहा था। कुछ विदेशी भी आ रहे थे, चंडीगढ़ हवाईअड्डे पर। विदेशियों ने मुझे देखकर कहा, बाय-बाय, हाथ दिखाकर। अमरीका के लगभग पच्चीस लोग थे, हमारा मजाक उड़ा रहे थे, बाबा जी हैं, बैठे हैं। मेरे साथ एक ब्रिगेडियर भी बैठे थे, मैंने उन्हें कहा, मुझे अंग्रेजी नहीं आती, आप ऐसा करें कि मैं जो पूछता हूं, वो उनसे पूछिए।
पूछिए कि बाय-बाय का अर्थ क्या है - व्हाट इज मीनिंग ऑफ बाय-बाय। तो उत्तर मिला, बाय-बाय का अर्थ बाय-बाय।
यह क्या हुआ? जैसे वाटर का मतलब वाटर होता है। शब्द अलग है, वस्तु अलग है। ऐसे ही सूर्य अलग है, जो प्रकाशित करता है और सूर्य शब्द अलग है। आपने क्यों कहा, बाय-बाय, मेरा आपसे सम्बंध है क्या? आपकी मेरे में निष्ठा है क्या, तो किस तरह से आपने बाय-बाय कहा? मैंने आपको कुछ कहा नहीं। यदि यह निरर्थक शब्द है, तो आप पागल हैं या मैं पागल हूं? 
अब तो हुआ झगड़ा। तब उन्होंने कहा, भारत में लोग संत नहीं, चोर ज्यादा होते हैं। मैंने उन्हें तमाम तरह से घेरकर कहा कि अमरीका में आयकर या इनकम टैक्स के साथ चोरी टैक्स भी लगता है। टैक्स चोर अमरीका में ज्यादा हुए या भारत में? अमरीका में अनेक राष्ट्रपतियों की हत्या हुई, यहां केवल गद्दी पर रहते इंदिरा गांधी की हत्या हुई, सुरक्षा ज्यादा कहां है? एक समय में पश्चिमी देशों में जितने समाज विरोधी कार्य करने वाले लोग थे, उन्हें देश से निकालकर अमरीका जैसे देशों में भेजा और बसाया गया था। वहां से ज्यादा भ्रष्ट कहां हैं?
सही प्रशिक्षण नहीं होने के कारण ही लोग एक दूसरे से गलत व्यवहार करते हैं। किसी से भी मिलें, तो नमस्कार करें। उन्हें बतलाएं कि आप हमारे यहां आए, हम धन्य हो रहे हैं। बहुत आनंद हो रहा है, आपकी श्रेष्ठता को हम प्रणाम करते हैं। दर्शनशास्त्र में भी पढ़ाया जाता है कि कोई भी आए, तो हम सबसे पहले उसे प्रणाम करें। प्रणाम इसलिए कि आप हमसे श्रेष्ठ हैं, आप सम्मानित हैं, आप वरिष्ठ हैं, यह बतलाने का जो व्यापार है, उसे ही प्रणाम कहते हैं। हममें जो छोटापन है, उससे निरूपित बड़प्पन आपमें है, इसका ज्ञान हम जिस व्यापार से करा दें, उस व्यापार का नाम नमस्कार है। कोई आया है, तो यह न मानें कि दरिद्र है, इसलिए आया है। हमसे कुछ चाहता है, उत्कर्ष वाला नहीं है, इसलिए आया है। वह आए, तो हम उसे यह कहें कि आप बड़े हैं, आइए नमस्कार, हाथ जोडक़र कहें। नमस्कार, प्रणाम के तमाम विधान हैं। शाष्टांग दंडवत से लेकर सामान्य नमस्कार तक। जोडक़र दोनों हथेलियों को अपने सिर से सटाएं, इसे नमस्कार कहते हैं। सबका एक ही अभिप्राय है, यहां तक कि जो अचानक आया है, जिसे हम नहीं जानते, उसे भी अतिथि मानकर देवता जैसा सम्मान देने की परंपरा है। आप आए, तो कोई परिचय नहीं था, रिश्ता नहीं था, फिर भी आए, कितने उदार हैं आप, आइए-आइए नमस्कार। 
क्रमश: 

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