Monday, 27 August 2018

बच्चों को महामानव बनाएं

भाग - ५
यही प्राचीन शिक्षा है। घर में व्यवहार की जो तमाम बातें हैं, उनसे तो जुडऩा ही है। जब बच्चे को यही नहीं पता हो कि यह मां है, यह पिता हैं, तो वह कैसे समझेगा। यह तो बतलाना ही है, लेकिन इसके साथ ही स्मरण तत्व से भी जोडऩा है कि यह जो जीवन है आपका, यह आपको अपने कर्मों से मिला है। आपका पहले भी जन्म था, बाद में भी जन्म होगा, ईश्वर ने कर्म से आपको जीवन दिया है, माता-पिता मिले हैं, इतनी अच्छी भूमि दी है, इतना अच्छा धर्म दिया है, इससे सीखकर, इसमें ही रहकर, इसकी ही मजबूती से जीवन आगे बढ़ेगा। कई लोग कहते हैं कि अभी अध्यात्म से जुडऩे की आयु नहीं हुई है, तो मंदिर क्यों जाएं, भगवान का नाम क्यों जपें। लेकिन होता यह है कि आदमी जब बड़ी शिक्षा प्राप्त कर लेता है, रोटी-दाल के लिए, भौतिक विकास के लिए, तो ऐसे ही पूरा जीवन निकल जाता है, लेकिन उसे परलोक पर विश्वास नहीं हो पाता, उसे शास्त्रों पर विश्वास नहीं हो पाता, उसे राष्ट्रीयता व ऋषि परंपरा पर विश्वास नहीं होता। उसे गीता पर विश्वास नहीं होता। उसे जो हमारा उज्ज्वल इतिहास है, महाभारत व वाल्मीकि रामायण पर विश्वास नहीं होता। अब स्थिति ऐसी है कि लडक़े सयाने हो रहे हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता चलता कि देश की आजादी के लिए कितने लोगों ने कुर्बानी दी थी, किन लोगों ने अपना सर्वस्व नष्ट कर दिया, शिक्षा-दीक्षा, नौकरी, परिवार सब छोड़ दिया। 
कैसे देश इतने दिनों तक गुलाम रहा, यह आज अधिकतर युवाओं को नहीं पता। इतिहास पढ़ें, तो पता चले। सभी लोग इतिहास नहीं पढ़ेंगे, उन्हें क्या पता कौन-सा राजा कैसा हुआ, राजा हरिश्चंद्र क्यों इतने बड़े व्यक्ति कहलाते हैं। तो यही सत्य है कि प्रारंभ से ही इन सभी विधाओं को अपने बच्चों को बतलाना, सिखाना पड़ेगा। उनके खान-पान को भी शुरू से ही सही रखा जाए। खाना है, तो क्या खाना है और क्या नहीं खाना है। भोज्य पदार्थ तामस है या राजस है, बतलाना पड़ेगा। 
जैसे हम लोग सुनते हैं कि यशोदा जी भगवान को दूध पीने के लिए कहती थीं। तो भगवान कहते थे दूध नहीं पीऊंगा, तो माता जी प्रलोभन देती थीं - दूध पीएगा, तो मेरा राजा बेटा बहुत बड़ा हो जाएगा, तुम्हारी चोटियां बड़ी हो जाएंगी, तू बहुत सुंदर लगने लगेगा, जब घर से बाहर निकलेगा तो लोग देखकर प्रसन्न होंगे कि कितना अच्छा है यशोदा का लाला, नंद बाबा का लाड़ला। 
शुरू से शिक्षा दी जाए कि यदि जीवन को बहुत अच्छा बनाना है, तो गाय का दूध पीना है, फलों का जूस पीना है। चाय, शराब, मांस आहार सही नहीं है। जो विकृत आहार हैं, उन्हें नहीं लेना है। भोजन शुद्ध होना चाहिए। बार-बार बैठा दिया जाए मन में कि तुम्हारा भोजन ऐसा ही होना चाहिए। बतलाना चाहिए कि कपड़ा कैसे पहनें, परिवेश कैसा हो। ऐसा कपड़ा न पहनें, जिसे पहनकर बैठा नहीं जाता, जिससे नसें रुक रही हैं। 
अपने यहां कपड़ों का भी विधान है, वस्त्र सात्विक होना चाहिए। शुरू में ही सात्विक भाव पोषित करना होगा। कोई बुढ़ौती में कहे कि प्याज, लहसून नहीं खाओ, तो आदमी समझ नहीं पाता कि मामला क्या है। जो खा रहे हैं, वो भी तो जीवित ही हैं, पश्चिमी राष्ट्रों में कोई वर्जना नहीं है, वहां भी तो आदमी ही हैं। क्या जरूरत है?
तो भगवान की दया से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष - जीवन के यही चार लक्ष्य हैं। यही विकास के साधन हैं। इन्हीं के लिए हम जन्म से मरण तक प्रयत्न करते हैं। हम विभिन्न योनियों में प्रयास करते हैं। किसी में कम, किसी में ज्यादा, इसीलिए इन्हें पुरुषार्थ बोलते हैं, व्यक्ति अपने प्रयास से जिन्हें प्राप्त करने की इच्छा करता है, इसी का नाम पुरुषार्थ है। 
क्रमश: 

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