Monday, 27 August 2018

बच्चों को महामानव बनाएं

भाग - ९
यह व्यवहार इतना अच्छा है कि क्या बात है, इसका कोई जोड़ नहीं है। ये सारे जो मनुष्य के प्रारंभिक ज्ञान हैं, किसी के आने पर हम कैसे उसका स्वागत करते हैं, कैसे उसे स्वीकार करते हैं, कैसे शुरुआत करते हैं, तो यह बहुत ही सिखाने लायक बात है। यह बात अंतिम समय तक काम आएगी। जीवन के किसी भी क्षेत्र में होंगे, यह काम आने वाली शिक्षा है। 
लिखा है कि मनु ने कि सज्जनों के यहां स्वागत के चार संसाधन सदा उपस्थित रहते हैं। सबसे पहले कोई आया, हम उसे नमस्कार करें। घर के लोग करें, बच्चे को भी कहें। देखो कि मैं नमस्कार कर रहा हूं, आप भी करो। कोई भी आया है, जो कनिष्ठ है, जो अंजान है, जान नहीं रहे हैं कि छोटा है या बड़ा है, किस भाव से आया है, जान नहीं रहे हैं, किन्तु उसे भी प्रणाम करना है। 
हां, ध्यान रहे, शाष्टांग दंडवत ईश्वर, गुरु, माता-पिता को ही किया जा सकता है। यह सबके लिए नहीं है, पंचांग दंडवत भी सबके लिए नहीं होता। सामान्य तौर पर कोई भी आपके घर में आए, तो कम से कम हाथ जोडि़ए। दोनों हथेलियों को जोडक़र सिर से लगाना है... जी प्रणाम, आइए पधारिए। 
यह स्वागत है, इतने में तो आने वाला आदमी पानी हो जाएगा, पानी कहना गलत लग रहा हो, तो गलकर दूध हो जाएगा, गंगाजल हो जाएगा। जिसे आपने सम्मान दिया, स्वागत किया। अपनी संस्कृति में जय श्रीराम, सीताराम, जय महादेव, जय श्रीकृष्णा, राधे-राधे, राधे-कृष्णा बोलकर भी स्वागत करने का चलन है। यह स्वागत बिना पैसे का है, कोई भी इस व्यवहार को कर सकता है। यह शिक्षा शुरू से नहीं होने से प्रणाम वाली बात तो समाप्त हो चुकी है। लोग घुटने में ही हाथ लगा देते हैं। बड़े-बड़े आज के विद्वान लोग भी घुटने में एक हाथ लगा देते हैं, हो गया प्रणाम, नमस्कार ? 
एक बार एक मंत्री जी ने मुझे माला पहनाया और घुटने के पास हाथ लगा दिया। दिल्ली में सभा हो रही थी, गोविंदाचार्य जी भी थे, के.सी. त्यागी भी थे, वहीं सबके सामने एक हाथ लगा दिया, बतलाइए। मैंने प्रवचन के क्रम में कहा कि आप लोगों को क्या प्रभावित करेंगे, जब प्रभावित करने का सबसे प्रथम चरण प्रणाम ही नहीं करने आ रहा है।  
स्वागत का दूसरा संसाधन मनु जी ने बताया। ये वही मनु हैं, जिनकी बातों, वचनों को वेदों के बराबर स्तर प्राप्त है। वही लोग मनुवाद-मनुवाद कहकर आलोचना करते हैं, जिन्हें पता नहीं है कि मनु कौन हैं। 
स्वागत का दूसरा चरण - हम आगंतुक या अतिथि को आसन दें। जो भी आसन उपलब्ध हो, उस पर बैठाएं आदर के साथ। ऐसे नहीं कि केवल बोल दिया - बैठिए। हम अतिथि को ले जाएं आसन तक और कहें कि विराजिए। आसन को सुशोभित कीजिए। आसन सबको प्रिय है। आप आसन को सुुंदरता प्रदान करें। अंग्रेजी वाले बोलते हैं कि आप अपनी सीट लें, इसमें वह मर्यादा भाव नहीं है, टेक योर सीट। 
स्वागत का तीसरा चरण या संसाधन - अतिथि से कुशल क्षेम पूछना। यह स्वागत मान देने का बड़ा साधन है। पूछिए कि आप कैसे हैं, कुशल तो हैं, इधर कैसे आना हुआ? ये तीन साधन बिना धन बिना तैयारी के उपलब्ध हैं, हर परिवार में हर समय उपलब्ध हैं। 
चौथा है अतिथि को जल पिलाएं। बहुत प्यार से कहें कि जल ग्रहण करें, आप चलकर आ रहे हैं, ऐसा नहीं कि आपने लाकर रख दिया, बहुत प्यार से हाथों में जल का पात्र दीजिए। ये बात जीवन भर काम आने वाली है। सभी लोग अरबपति नहीं होंगे, सभी बड़े पद पर नहीं होंगे, सबको जीवन का बड़ा उत्कर्ष प्राप्त नहीं होगा, लेकिन ये चारों संसाधन, जो अत्यंत विकसित और प्रभावित करने वाले हैं, जो जीवात्मा के विकास के बड़े साधन हैं, उसका संपादन सब करें। यह कब होगा, जब हम जैसे माता-पिता का परिचय कराते हैं, वैसे हम अतिथि का परिचय कराएं। वेदों में लिखा है- अतिथि देवो भव:। जो बिना सूचना, बिना सम्बंध के, जो कहीं से संबद्ध नहीं है, आ गया है या संबद्ध है, किन्तु बिना सूचना के आ गया, तो हम उसका बिना प्रयोजन के, स्वार्थ के बिना, किसी बनावटीपने के बिना, किसी कुरूपता के बिना हम उसका स्वागत करें - आइए प्रणाम, बैठिए, आप कैसे हैं, और लीजिए जल ग्रहण कीजिए। जल पिलाने का भी बहुत-बहुत सकारात्मक प्रभाव है। 
तो मनु जी ने व्यवहार का वह क्रम बताया, जो जीवन भर उपयोगी रहेगा, राष्ट्रपति होकर भी हमें ये काम करने होंगे, जो अपने पास आया उसका स्वागत करना होगा। ऐसे व्यवहार और संस्कार की समाज व राष्ट्र को जरूरत है। बड़े लोगों को आदर्श स्थापित करना होगा। नेता जी को कैसे बोलना चाहिए, नेता जी को कैसे बैठना चाहिए, कैसा कपड़ा पहनना चाहिए, ऐसे सजग नेता व बड़े अधिकारी कम हैं। मुझे बहुत ही दुख होता है कि संतों को भी कपड़ा नहीं पहनने आता। अभी एक महात्मा को देखा, धनवान हैं, छोटी आयु के हैं, मेरे संपर्क में हैं। मैं हैरान हूं, लेकिन जैसे लड़कियां अपने बालों को सुंदरता बढ़ाने के लिए आगे कर लेती हैं, उनके भी बाल घुंघराले हैं, उन्होंने भी बालों को आगे कर लिया, हे भगवान।
क्रमश: 

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