Saturday 29 March 2014

जय गंगा, जय नर्मदा - २

भाग - २

गंगा में जब जल बढ़ता है, तो वह आसपास के इलाकों को डुबो देती है और उसके बाद जब आप खेतों में बीज डालेंगे, तो खूब फसल होती है। गंगा संस्कृति और समाज को भी प्रभावित करती है।
गंगा किनारे पर बसे एक आदमी से मैंने पूछा, 'आपके कितने मकान बह गए?
उसने कहा, 'आठ बह गए, यह नौवां है।
मैंने पूछा, 'तो गंगा के लिए क्या भाव हैं?
उसने उत्तर दिया, 'सर्वश्रेष्ठ भाव हैं, मां के लिए खराब भाव होता है क्या? कौन मां होगी, जो छोटी आयु में शैतानी करने पर अपने बच्चे के कान नहीं गरम करती होगी? जब मां देखती है कि बच्चे का विकास नहीं हो रहा है, बुराई की ओर जा रहा है, तब अनुशासित करती है। मां हमारी जमीन को अपने में समाहित कर लेती हैं, हमारी बुरी भावनाओं को दूर करती हैं।

उस व्यक्ति ने कहा, 'हम डंके की चोट पर कहते हैं कि गंगा के किनारे वाले लोग दूषित नहीं थे, और जगह के लोग आए, तो बुराइयां आईं, नहीं तो यह गंगा लाखों लोगों को बेघर कर देती हैं, जमीन के बिना कर देती हैं, लाखों लोगों को सडक़ पर ले आती हैं, लेकिन इसके बावजूद सबसे बड़ी आस्था का केन्द्र गंगा है।
नर्मदा का भी ऐसा ही महत्व है। नर्मदा जी ने एक बड़े भूभाग पर बसे लोगों को जल दिया। बड़ा स्वरूप हो गया, गुजरात वगैरह को पानी मिल रहा है, बड़े बांध बने हैं। फिर भी उतने बड़े महानगरों को जल नहीं दिया, जितने महानगरों को गंगा ने दिया। नर्मदा के तट पर ज्यादातर इलाका आदिवासी क्षेत्र था, शिक्षा, धार्मिकता, संस्कार, संपत्ति और जीवन जीने के संसाधन अल्प थे, उन लोगों को नर्मदा ने आस्था से भरपूर मानवीय जीवन दिया। गुजरात का समृद्ध तबका भी नर्मदा परिक्रमा कर रहा है। यहां भी दूसरे तंत्र निष्फल थे, संस्कार देने में, समृद्धि देने में, बड़े समाज को दीक्षित करने में, समाज को समाहित करने में, जहां राजकीय व्यवस्था निष्फल थीं, उन व्यवस्थाओं और लोगों को अपने साथ जोडक़र नर्मदा जी ने श्रेष्ठ संस्कार को विकसित कर प्रभावित किया। वह बहुत बड़ा इलाका जहां कुछ भी नहीं था और नर्मदा जी को ही नमस्कार कर, गोता लगाकर उनका नाम जपकर उनकी परिक्रमा करके लोगों में सांस्कृतिक विकास हुआ कि ये देवी हैं। पुराणों में जो गंगा की महिमा है, उसी तरह की महिमा नर्मदा की भी है।
हमारे यहां एक वाक्य कहा जाता है कि मरना हो, तो गंगा के तट पर और तप करना हो, तो नर्मदा के तट पर। तप करने का अर्थ है द्वंद्व झेलना। अभी बिजली चली जाए और हम तड़पने लगें, तो मतलब है, हम लोग द्वंद्व सहन नहीं कर पा रहे हैं। इसको झेल कर भी जो न तिलमिलाए, वही तपस्वी है। गर्मी के मौसम में कितनी भी भयंकर गर्मी हो, कितने लोग हिल स्टेशन पर जा पाते हैं, बहुत कम लोग। नेता गर्मी के कारण अपना क्षेत्र छोडक़र जाएगा क्या? कोई महात्मा अपने चेलों, अपनी पूजा छोडक़र गर्म स्थानों को छोडक़र पहाड़ों पर जाएगा क्या?
तो नर्मदा के तट पर तप करना चाहिए और मरना चाहिए गंगा के तट पर।
नर्मदायां तप: कुर्यात् मरणं जाह्नवीतटे।
वैसे यह बात हर जगह नहीं होती, क्योंकि मोक्ष नर्मदा के तट पर भी शरीर छोडऩे से, नर्मदा जी का नाम जपने से, उनका आचमन करने से मिलता है।
तो यह पहलू जिसको मैं उजागर कर  रहा हूं, नर्मदा मां की जलधारा ने एक बहुत बड़े समुदाय को संस्कारित किया। नर्मदा जी का जो क्षेत्र है, मध्य प्रदेश का अधिकांश भाग गौड़ आदिवासियों का है, गुजरात है, दोनों प्रांत के बहुत बड़े इलाके को अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा से प्रभावित किया। गंगा में नगरों के माध्यम से जो प्रदूषण आया, वैसा प्रदूषण नर्मदा में आज भी नहीं है, नाले नर्मदा में भी गिर रहे हैं, किन्तु सुधार भी हो रहा है। निस्संदेह, गंगा में नालों की मात्रा बढ़ गई है। बनारस में आबादी बढ़ रही है, पटना की आबादी बहुत बढ़ गई है। औद्योगिक शहर बढ़े हैं, राजधानियां बढ़ी हैं, तो नाले भी बढ़े हैं, इस विषय पर सोचना चाहिए। नदियों की सफाई के बारे में सोचना चाहिए और आगे बढक़र कदम उठाने चाहिए।
फिर भी कुल मिलाकर गंगा की तुलना में नर्मदा का स्वच्छ जल और पौराणिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ जो स्वरूप है, उस स्वरूप को छोटे-बड़े सभी लोगों ने प्राप्त किया। जल ने दोनों को ही संस्कारित किया। ऐसे-ऐसे लोग हैं, वर्षों तक नर्मदा की परिक्रमा करते रहते हैं, पूरे विधि-विधान से करते हैं।
क्रमश:

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