Wednesday 25 February 2015

सर्वथा अनिन्दिता सीता

भाग - 3
समाधान किया हनुमान जी ने, वे समझ गए कि जानकी जी को मेरे शरीर को देखकर विश्वास नहीं हो रहा है, मेरे प्रभाव को नहीं जानती हैं, मेरे सत्व को नहीं पहचानती हैं। उन्होंने जानकी जी से कहा, 'इच्छा के साथ मेरा शरीर बढ़ता है। यह जो आप देख रही हैं, यह तो छोटे रूप वाला मेरा शरीर है, जो मैंने अपनी इच्छा से धारण कर रखा है।'
वे जानकी जी के पास आ गए, पहले वानरों की तरह पेड़ पर बैठकर ही संवाद कर रहे थे, कूद कर नीचे आ गए और अपने विशाल स्वरूप को, दुष्टों का मर्दन करने वाला जो स्वरूप है, अरि का मर्दन करने वाला जो शरीर है, उसे बढ़ाना हनुमान जी ने शुरू किया, ताकि जानकी जी को विश्वास हो जाए कि मैं उनका भार वहन कर सकता हूं, जो लडऩे आएंगे, उनका मुकाबला कर सकता हूं, राम जी के पास पहुंचा सकता हूं। हनुमान जी ने सुन्दर और अत्यंत बलशाली स्वरूप को प्राप्त किया, जानकी जी के सामने खड़े हो गए, पर्वत के समान ताम्र वस्त्र और महाबली स्वरूप। 
हनुमान जी ने जानकी जी को कहा, 'देखिए मेरा कैसा स्वरूप है, सम्पूर्ण लंका को, जो लोगों से भरपूर है, उसे भी लेकर चलने की  मुझमें क्षमता है। आप मुझ पर संदेह न करें।
जब इस तरह का स्वरूप हनुमान जी ने धारण किया, तो जानकी जी का विश्वास प्रकट हुआ और उन्होंने प्रशंसा की। कहा, 'नहीं, मैं संतुष्ट हूं, यदि आपमें इतना बल नहीं होता, तो आप कैसे यहां आ सकते थे, कोई साधारण बंदर यहां नहीं आ सकता, आपमें अद्भुत बल है, तभी आप समुद्र को पार करके, हर दृष्टि से जो सुरक्षित लंका है, उसमें प्रविष्ट हो गए, मेरे पास आ गए, आपकी गमन शक्ति और आपकी ले जाने की क्षमता को भी मैं जानती हूं, आप मुझे निश्चित रूप से लेकर जा सकते हैं, किन्तु मेरा मन बार-बार इस बात को कहता है कि वायु के वेग से आप मुझे लेकर जाएंगे, तो मैं तो गिर ही जाऊंगी, वेग को सहन नहीं कर पाऊंगी, इसलिए आपके  साथ मेरा जाना उचित नहीं है। और जब गिर जाऊंगी, जो जानवर समुद्र में हैं, वो मुझे खा जाएंगे। आपकी शक्ति की कमी का आरोप नहीं है, किन्तु आपकी इस यात्रा में मैं संभलकर कैसे रह पाऊंगी, इसका मुझे संदेह है, अत: मैं आपके साथ जाने में असमर्थ हूं।
एक और संदेह व्यक्त किया जानकी जी ने, 'आप मुझे लेकर जाओगे, तो लोग समझेंगे कि यह पत्नी वाला है, पहले आप अकेले ही आए थे, ब्रह्मचारी के रूप में, अब मैं जाऊंगी, तो देखने वाले सोचेंगे कि यह निश्चित रूप से पत्नी वाला कोई है, इसलिए मैं आपके साथ जाने में संकोच कर रही हूं। मैं नहीं जा सकती आपके साथ। जब आप चलोगे, तो रावण की आज्ञा से, जो दुष्टराज है, हजारों-हजारों, लाखों-लाखों सैनिक आपका पीछा करेंगे, उनके हाथ में तरह-तरह के आयुध होंगे, आप घिर जाओगे, जो स्त्री वाला है, यह वीर नहीं है, संदेह भी होगा, वे आयुध के साथ होंगे आकाश में और आप बिना आयुध के होंगे, आपके पास अस्त्र-शस्त्र नहीं हैं, आप मुझे पीठ पर लेकर कैसे उनसे लड़ेंगे और मेरी रक्षा कैसे करेंगे.  आपका जब उनसे युद्ध होगा, जो अत्यंत निर्दयी हैं, मैं आपकी पीठ पर से गिर जाऊंगी, तो गिरने के उपरांत मेरी रक्षा कैसे होगी, जो राक्षस हैं, बल वाले हैं, कहीं उन्होंने आपको हरा दिया, तो...  लडऩे में आप हार गए, तो मेरे जीवन को खतरा हो जाएगा। यदि लड़ते हुए मैं गिर गई, तो भी खतरा, गिरने के उपरांत कल्पना कीजिए कि समुद्री जंतुओं ने नहीं खाया, तो राक्षस ले जाएंगे, वे बड़े पापी हैं। वे मुझे लेकर पुन: चले जाएंगे, कैद हो जाऊंगी। लडऩे पर जरूरी नहीं कि आप ही विजयी हों, वो भी विजयी हो सकते हैं। यदि राक्षसों ने मुझे किसी ऐसी जगह पर छिपा दिया, जहां किसी को पता नहीं चल सके कि मैं कहां हूं, तो कठिनाई हो जाएगी, अभी तो मैं अशोक वाटिका में थी, आपको लोगों ने बताया और आप यहां पहुंच गए। यदि मुझे कहीं अत्यंत गुप्त जगह पर छिपा दिया, तो किसी को पता नहीं चल पाएगा, अत: आप मुझे ले जाने के संकल्प को छोड़ दीजिए।'
क्रमशः

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