Friday 19 October 2018

श्रीराम मार्ग पर चलें सदा

भाग - ३ 
हम सभी लोगों को सत्य बोलना चाहिए। वेद वाक्य है सत्यम् वद। यह ज्ञान ज्ञात है कि सत्य बोलना चाहिए, किन्तु हम असत्य ही बोलते हैं। हम डरते नहीं कि झूठ गलत है, झूठ विकास नहीं होने देगा, झूठ हमें ऋषि नहीं बनाएगा, महामानव नहीं बनाएगा, देवता नहीं बनाएगा। झूठ जीवन में कभी भी संपूर्णता नहीं आने देगा। यह हम ध्यान नहीं रखते। तो मेरा अपनी परंपरा व अपने सनातन धर्म के अनुसार यह कहना है कि परंपरा से प्राप्त जो मानव जीवन की सार्थकता के जो विशिष्ट साधन हैं, हम उन बातों को कहें बच्चों को, जो सच हैं और बार-बार कहें। आप उन बातों पर ध्यान दें, जो आपको सर्वश्रेष्ठ जीवन प्राप्त होगा। अभी आपको और विकास करना है, धीरे-धीरे ऋषित्व को प्राप्त करना है, देवत्व को प्राप्त करना है। यह पहला ज्ञान होगा।
फिर बार-बार उसको कहा जाए, तो बच्चे का ज्ञान परिपक्व होगा। बार-बार कहा जाएगा, तभी बच्चे को यह लगेगा कि मम्मी-पापा, परिवार के सभी लोग कह रहे हैं कि तुम्हें बड़ा मनुष्य बनना है, तुम्हें अपने समाज के लिए, संपूर्ण संसार के लिए, स्वयं अपने लिए बड़ा मनुष्य बनना है, सबसे विशिष्ट बनना है। बच्चा जब ये जान लेगा, तब उसका ज्ञान दूसरी अवस्था में आएगा। बार-बार पकाने से ज्ञान हमारे चरित्र में उतरेगा। फिर उसको बतलाया जाए कि आपको ये बात दूसरों को भी बतलानी है। जो अच्छा सीख लिया, वह दूसरों को भी सिखाओ। 
ये शिक्षाएं लोग शुरू से देते हैं। लोग कहते हैं कि बेटा झूठ नहीं बोलना चाहिए, बड़ों का आदर करना चाहिए, किन्तु इसके लिए जितना अभ्यास करवाना चाहिए, उसमें कमी हो जाती है। कैसे विचारों को परिपक्व बनाना है। अभ्यास आवश्यक है, पहले स्वयं में उसे परिपक्व बनाना और उसके बाद दूसरों को चरित्रवान बनाना। ये जो प्रकिया है, उससे बच्चों को अनेक माता-पिता, संत-महात्मा भी नहीं जोड़ते हैं। बच्चों को केवल सुना दिया जाता है, झूठ नहीं बोलना, चोरी नहीं करना, हिंसा नहीं करना, बड़ों का अपमान नहीं करना, अनावश्यक अपनी शक्ति को समाप्त नहीं करना। तमाम जो विषमताएं हैं - जैसे अधिक खाना, अधिक सोना, कहीं भी घूमना, कहीं भी देखना - ये समाप्त नहीं हो पाती हैं। सुधार के लिए, सच्ची शिक्षा के लिए ज्ञान को परिपक्व बनाना होगा, चरित्र में उतारना होगा। बच्चा जब यह जान जाएगा, तो वह स्वयं करने लगेगा। इसके बाद दूसरों को बताने लगेगा। बच्चों को कहिए कि आप अपने छोटे भाई-बहन को बताओ, बड़ों को बताओ, औरों को भी बताओ। 
इस क्रम में अपनी परंपरा में अनेक आदर्श उदाहरण हैं। तमाम चरित्रों का वर्णन है। चाहे ऋषियों का हो, संतों का हो, राजाओं का हो, आचार्यों का हो या ईश्वर का हो, इसमें सर्वश्रेष्ठ रूप से राम चरित्र को महत्व दिया जाता है। राम चरित्र निर्विवाद चरित्र है, सबसे बड़ा चरित्र है। और भगवान की दया से लोगों के लिए अनुकरणीय चरित्र है। आदर्श रूप है। उस चरित्र की कल्पना, उस तरह के चरित्र का वर्णन और उसका जो सारा स्वरूप है, वह कहीं भी दूसरी जगह प्राप्त नहीं है। राम जी का जो काल है, ११ हजार वर्षों का है, कहीं जिक्र मिलता है कि ३३ हजार वर्ष का है। राम जी संपूर्ण सृष्टि के लोगों के लिए प्रेरक हैं। उनका चरित्र, चिंतन, व्यवहार कैसे तैयार हुआ, इससे अच्छा उदाहरण किसी और चरित्र में कैसे मिलेगा। तो राम जी को एक उदाहरण के लिए लिया जा सकता है कि राम जी के जन्म के बाद उनके गुरु वशिष्ठ, जो अद्भुत ज्ञानशाली, उस वंश के परम संरक्षक, ऋषित्व से परिपूर्ण थे, रघुकुल के शुभचिंतक थे, वे राम जी के समस्त संस्कारों को पूर्ण करवाते हैं। राम जी के सभी भाइयों का संस्कार साथ होता है। 
एक उदाहरण है, जब भगवान अपने साथियों के साथ खेलने में लगे हुए हैं। छोटी आयु में खेलने का बड़ा महत्व रहता है। मनोरंजन भी हो रहा है, शरीर का व्यायाम भी हो रहा है। शरीर के शौष्ठव संपादन की व्यवस्था हो रही है, यह बड़ी प्रेरक, आनंददायक और जीवन को आनंदित करने वाली बेला है। और तब पिता राजा दशरथ जी राम जी को बुला रहे हैं कि आइए भोजन कीजिए। 
रामायण के निर्माताओं ने यहां यह नहीं लिखा कि दशरथ जी सभी साथियों को बुला रहे हैं। कहा गया कि राजा दशरथ भोजन कर रहे हैं, तो भोजन के अपने अवसर पर राम जी को बुलाया। आओ राघव भोजन करो हमारे साथ। आध्यात्मिक परंपरा में जो भूख मिटाने की जो प्रक्रिया है, उसमें यह नहीं कहते कि आइए भोजन करना है। कहते हैं, आइए भगवान का प्रसाद ले लें। इसका भी हमें अभ्यास करना चाहिए, यह सुन-सुनकर जब बच्चा बड़ा होगा, तो उसे लगेगा कि संसार में सबकुछ ईश्वर का बनाया हुआ है। 
क्रमश:

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