Tuesday 4 October 2011

जात पांत पूछे नहीं कोई

यह ईश्वरावतार की भूमि है, ऐसी भारत भूमि हमें प्राप्त हुई। कहा जाता है, ईसाई धर्म दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है। ईसाई देश दुनिया में सबसे धनवान हैं। दुनिया का नेतृत्व कर रहे हैं, दुनिया की सारी गतिविधियों को प्रभावित करते हैं। तो जिसके पास पैसा है, वह तो बड़ा हो जाता है, सुंदर हो जाता है। ये सभी बातें आपको मालूम हैं। किन्तु काफी लंबे समय तक कोई काले रंग का आदमी संत की उपाधि प्राप्त नहीं कर सका था। अमरीका को स्थापित हुए सवा दो सौ साल से भी अधिक हो गए। ईसा मसीह को २००० वर्ष हो गए, किन्तु कैसा धर्म है कि काले लोग संत नहीं बन पाते हैं, अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, वहां काले रंग वाले को भी संत की उपाधि दी गई। यहां तो जब कहा गया कि विद्याध्ययन ब्राह्मण ही करेगा, ब्राह्मणों को ही संन्यास लेने का अधिकार होगा, ऐसा कहा शंकराचार्य जी ने। धर्म को निश्चित रूप से उनका योगदान अनुपम है, लेकिन इस बात पर उनके अनुयायियों ने ही विरोध कर दिया। इस बात का विरोध विद्वान मंडन मिश्र ने कर दिया, जो बाद में सुरेश्वराचार्य के रूप में जाने गए, सृंगेरी मठ के प्रथम शंकरचार्य हुए. कहा यह गलत है, जिसे जेनऊ का अधिकार है, उसे वेदाध्ययन करने का अधिकार है, संन्यास लेने का भी अधिकार है। तो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य, तीनों संन्यासी बनने लगे। दशनाम की परंपरा है, संन्यासी में भी दो विभाग हैं एक तो दंड वाले लोग और दूसरे दशनाम हैं। जो दंडी नहीं हैं। बिना दंड के हैं, जैसे महामंडलेश्वर इत्यादि। यह सनातन धर्म है, यहां ऐसे गुरु हैं, जिन्हें शंकराचार्य कहा जाता है।
दु:ख क्यों होता है?

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