Friday 19 December 2014

साधु, तुझको क्या हुआ?

 भाग - ३
ईसा मसीह को भी संत का दर्जा प्राप्त है, उन्होंने भी संसार को अपने जीवन से धन्य बनाया। यह परंपरा संसार में अनादि है, जैसे संसार अनादि है, जैसे ईश्वरीय व्यवस्था, उसके संस्कार अनादि हैं। इस संसार का तो यह पता ही नहीं है कि यह कब बना। कर्मों के आधार पर लोगों ने उसे विकसित किया है। केवल बच्चा जन्म देने से बच्चा पवित्र जीवन का नहीं हो जाता, उसके पालन-पोषण में उच्चता होनी चाहिए, उसे पढ़ाना, शब्दों का ज्ञान कराना, ज्ञान देना, यह प्रक्रिया लंबी चलती है और जीवन भर चलती रहती है।
ईश्वर ने संसार को बनाकर छोड़ दिया होता, यदि ऋषियों, संतों, विद्वानों का सृजन नहीं हुआ होता, तो संसार वहीं का वहीं पड़ा रहता। जैसे वेदों ने कहा कि सत्य बोलना चाहिए, सत्यम वद्। वेदों के माध्यम से ईश्वर ने यह बोल दिया, लेकिन वह हर व्यक्ति के पास आकर यह नहीं बोल सकता कि आप सत्य बोलिए, भगवान कितना समय कितने लोगों के साथ बिता सकते हैं, इसीलिए शास्त्रों की रचना हुई, शास्त्रों का अनुसरण करके संतों ने अपने जीवन को अच्छा व धन्य बनाया। संसार में अनेक संतों का प्रादिर्भाव हुआ, न जाने कितने संतों ने संतत्व के विकास के लिए अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया। संयम, नियम से सज्जित जीवन के माध्यम से ऊंचाई को प्राप्त किया। उन्होंने बार-बार बताया कि मेरा जीवन अपने लिए ही नहीं है, संपूर्ण संसार के लिए है। जैसे सूर्य अपने लिए नहीं उगता, जैसे चांद अपने लिए नहीं उगता, जैसे नदियां अपने लिए नहीं बहतीं, आकाश अपने लिए ही आवागमन की सुविधा नहीं देता, ठीक उसी तरह से संत का जीवन भी दूसरों के लिए है। संत, मुनि जीवन के लोग अपने जीवन को समाज के लिए पूर्णत: समर्पित कर देते हैं, उनमें अपना स्व कुछ नहीं होता, उनमें अपने भोग की भावना नहीं होती। कहीं भी वे शक्ति नष्ट नहीं करते, मन में कटुता नहीं आती। एक दिन नहीं, दो दिन नहीं, संपूर्ण जीवन वे ऐसा ही करते चलते हैं। केवल ईश्वरीय भावों को, सर्वश्रेष्ठ भावों को सबको बांटना है। सर्वश्रेष्ठ भावों को अपने जीवन में उतारकर उसका प्रयोग सबको बताना है। कोई भेदभाव नहीं करना है, न जाति का भेदभाव, न क्षेत्र का, न भाषा का, हमें तो बस अच्छी बातें बतलाना है, लोगों को सुशिक्षित बनाना है, सत्य बोलना है और लोगों से बोलवाना है।
सत्य में जो प्रतिष्ठित होता है, वह यदि किसी पापी को भी बोल दे कि तुम स्वर्ग जाओगे, तो पापी को स्वर्ग मिल जाता है, ऐसा योग दर्शन में कहा गया है।
इसमें पैसा नहीं लगता, इसके लिए किसी बड़े विश्वविद्यालय में डिग्री लेने की जरूरत नहीं है, अखाड़े में जाने की जरूरत नहीं, मैदान में जाने की जरूरत नहीं है, जो जहां पर है, वहीं पर जो ज्ञान हुआ है, जो वस्तु जैसी है, उसका ध्यान करे और उसी के अनुरूप बोले। संसार की बहुत बड़ी समस्या का समाधान केवल सत्य बोलने से हो जाएगा और यही काम संत लोग सदा से करते रहे हैं। क्रमशः 

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