Tuesday 25 December 2018

रावण कैसे भटक गया

भाग - ४
अभी मैं पढ़ रहा था मनुस्मृति को, जिनकी वाणी को वेदों की समकक्षता प्राप्त है, ऐसे मनु ने कहा कि अधर्म से भी लोग बढ़ते हैं। अधर्म से बढ़ते हैं लोग, तो उनके कई पिछलग्गू, चापलूस हो जाते हैं।  
सर्वे गुणा: कांचनमाश्रयन्ति 
अगर सोचें कि जिसके पास पैसा है, वही बलवान, सुंदर, मधुर वाणी वाला, वही देवता तुल्य है -तो ये राक्षसी भाव हो गया। यदि पैसे हैं और यज्ञ में उपयोग नहीं हो रहा है, दान में नहीं हो रहा है, मानव सेवा में नहीं हो रहा है, तो वह कौन-सा पैसा, कौन-सी शक्ति है इन्द्रियों की, कौन-सा विश्वास है, पैसा नहीं चलेगा। पैसे का सदुपयोग हो। यदि हमारे शरीर में बल है और लोगों को सताने के लिए उसका उपयोग करते हैं, तब तो हमारा शरीर नहीं चलेगा। हमें अपने शरीर को चलाने के लिए ऊर्जा चाहिए, किन्तु वह ऊर्जा जो हमारे शरीर का सही उपयोग कराए। आदमी सही चाहिए, परिवार सही चाहिए, यदि हम गलत लोगों से सम्बंध कर लेंगे, तो वो हमें भी गलत बना देंगे। 
राम जी ने सेना बनाई रावण पर आक्रमण के लिए, जानकी जी की खोज के लिए बहुत सोच समझकर सुग्रीव को मित्र बनाया और उसकी भी अपनी समस्याएं थीं, राम जी की भी थी। राम जी को अपनी प्राणवल्लभा को खुजवाना था कि वो कहां हैं। यहां लीला के क्रम में राम जी हैं। अभी लीला पुरुषोत्तम हैं, वे मनुष्य को प्रेरित करने के लिए लीला कर रहे हैं। तो प्राणवल्लभा को खुजवाना होगा, नहीं तो लोग क्या कहेंगे कि कैसे राम हैं, कैसे ईश्वर हैं, कैसे बलवान हैं कि पत्नी को खुजवाए नहीं। तो सुग्रीव से मित्रता कर लिया, राज्य भी दिलवा दिया, पत्नी भी दिलवा दी, किन्तु कहा कि मेरी पत्नी की खोज में भी लगना होगा। सुग्रीव के व्यवहार में बीच में विकृत्ति आई, किन्तु फिर वह भगवान के दर्शन के बाद फिर सही दिशा में मुड़ा। भगवान से मिलने के बाद भी वह धन और भोग की ओर मुड़ गया था, किन्तु हनुमान जी ने, लक्ष्मण जी ने उसके ज्ञान को परिपक्व ज्ञान के रूप में तैयार किया। उसके मन पर जो मल जम रहा था, जो विषयांतर हो रहा था, भटक रहा था भोग और धन के लिए, उसको बतलाया गया कि ये जो तुम्हें शक्ति मिली है, राम जी के आशीर्वाद से मिली है। यह केवल समस्त जीवों को परम कल्याण की प्रेरणा देने के लिए मिली है। ये राम जी की सेवा के लिए है, राम जी की सेवा ही मानवता और संपूर्ण जंतुओं की सेवा है, तो फिर सुग्रीव यथोचित कर्म में पूरे मन से लग गया। 
जैसे सुग्रीव को उपदेश की आवश्यकता पड़ी, विभीषण को पड़ी, असंख्य लोगों को पड़ती रहती है। यदि न दोहराया जाए, तो आदमी भटक जाता है देवत्व ही नहीं, मनुष्यत्व भी चला जाता है। बार-बार तथ्यों को याद कराया जाए, विचारों, भावों, शास्त्रों के उपदेशों को याद दिलाया जाए, क्योंकि यदि याद नहीं दिलाया जाएगा, तो कहीं भी मनुष्य भटक सकता है। 

जैसे सेना में रोज दौड़ाते हैं, बैठे-बैठे ही भोजन मिलने लगे, भोग मिलने लग जाए, तो मुलायम पदार्थ का ही सेवन होता रहेगा, तो पुलिस वाला किसी चोर को तो नहीं पकड़ पाएगा। जैसे सेना और पुलिस में अभ्यास बंद नहीं होता, वैसे शिक्षण बंद नहीं होना चाहिए। परीक्षा दिया और नौकरी मिली, तो पढऩा बंद कर दिया, क्यों? आज सारी दुनिया का भोजन सारी दुनिया के लोग खा रहे हैं। मकान, कपड़ा, आदान-प्रदान हो रहा है, जो लौकिक संसाधन हैं जीवन के लिए उसका अनुकरण हम कर रहे हैं, किन्तु हम जीवन की प्रमाणित विशिष्टताओं का अनुकरण नहीं कर रहे हैं।
हमें चाहिए कि हम अपने जीवन को उन तत्वों से जोड़ें, जो तत्व हमारे जीवन को ऊपर ले जाएं, आनंददायक बनाएं। केवल मकान बनाने से काम नहीं चलेगा। केवल दूकान से काम नहीं चलेगा। केवल जैसे-तैसे परिवार से काम नहीं चलेगा। जैसे रावण ने परिवार बढ़ा लिया, राक्षस लोग जैसे परिवार बढ़ाते हैं। ठीक उसी तरह से शास्त्र की मर्यादा से दूर हटकर लोग परिवार बढ़ाते हैं, यह नहीं चलेगा। कोई भी लडक़ी नहीं बन सकती पत्नी। इतनी पत्नियों को एकत्र करके भी रावण संतुष्ट नहीं हो पाया और खोजता रहता था, लडक़ी मिल जाती, तो घर बस जाता, खुशहाली बढ़ जाती। मालूम है कि लडक़ी अवैध रूप से आई है, ताकत से आई है, अपहरण करके आई है, यातनाएं झेलकर आई है, फिर भी वह लाता गया। इस क्रम ने उसे बड़ा राक्षस बना दिया। क्रमश:

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