Wednesday 1 May 2019

प्रह्लाद ने प्रभु से क्या मांगा

भाग - ४
जब हम सुनेंगे ईश्वर को, तो कहां से सुनेंगे, किससे सुनेंगे। संसार में अनेक धर्मों की परंपराएं खड़ी हो गई हैं, जिनको सीधे-सीधे लोग बोलते हैं कि सब धर्म बराबर हैं। तो आइंस्टीन भी बराबर और पटाखा बनाने वाला भी बराबर। बर्तन बनाने वाला भी बराबर और बर्तन धोने वाली भी बराबर। कई लोग हैं, जो माता-पिता को ही बर्तन धोने में लगा देते हैं, क्योंकि वे नौकर नहीं रख सकते। तो हमें ऐसा नहीं मानना है कि किसी को भी सुनें ईश्वर के लिए। हम वेदों को सुनेंगे। बराबरी कैसे होगी? वो तो लूटने आए थे, कुछ लोग आज भी वही काम कर रहे हैं। गौतम बुद्ध के लोग भी आगे चलकर विक्षिप्त हुए, सनातन धर्म को अपशब्द बोलकर। मांस, मदिरा इत्यादि का सेवन सब करने लगे। सारे दुव्र्यसन करने लगे। तो हम केवल वेदों को ही सुनें।
कहा प्रह्लाद जी ने कि हमें उस ईश्वर को जानना है। केवल सुनने के लिए ही नहीं, उस ईश्वर की वाणी का वाचन भी करें। सुनें, देखें और बोलें। हमें उसका स्मरण भी करना है। तीनों इन्द्रियां साथ हैं। सुनना, गायन करना और मन से स्मरण करना। स्मरण से प्रेम उत्पन्न होता है ज्ञान और परिपक्व होता है। 
प्रह्लाद जी ने कहा कि ईश्वर को ही जानना है। भक्ति और ज्ञान का स्वरूप स्मरण है। तेल की धारा टूटती नहीं है, वैसे ही स्मरण है, जो टूटे ना। ऐसे स्मरण से उत्पन्न प्रेम ही भक्ति है। 
कई बार अपने स्वजनों के बीच भी कई महीनों के बाद बातचीत होती है, किन्तु मन में स्मरण रहता है, अपनत्व निरंतर रहता है, तो लगता ही नहीं है कि कितने दिन बीत गए और बात ही नहीं हुई। हमारा कोई भी अनुयायी हो, समर्थक हो, अपने को बल देने वाला हो, अपने को अपना मानने वाला हो, उससे बातचीत नहीं हुई, किन्तु स्मरण से परस्पर जुड़े रहे। हमने जो कहा है, उसने जो कहा है, उसके आधार पर स्मरण होता है। स्मरण का अर्थ है अनुभव होगा, तो संस्कार उत्पन्न होंगे, उन्हीं संस्कारों से उद्बोधक की प्राप्ति होगी। भगवान का स्मरण करें। अभी चुनाव होना है, तो पूरे देश के लोग लगे हैं। अपशब्द बोले जा रहे हैं। तमाम आरोप लग रहे हैं। लोकतंत्र को घटिया बना रहे हैं लोग। मन उसी में जा रहा है। यदि हम ईश्वर को सुनेंगे-गाएंगे-स्मरण करेंगे, उससे जो हमारा ज्ञान परिपक्व होगा, तो ईश्वर के दर्शन होंगे, तो हमारा उसमें प्रेम बढ़ेगा। प्रेमी का स्तर कैसा है, उसी से तो प्रेम का स्तर तय होता है। हम जिससे प्रेम करते हैं, वह कैसा है। किसी का दुष्ट ही प्रेमास्पद है, किसी का कुत्ता ही प्रेमास्पद है। पीने वाला है नाचने वाला है। प्रह्लाद जी ने कहा कि हम ईश्वर से प्रेम करेंगे, जो दुनिया का सबसे बड़ा है, किसी भी दुर्गुण से युक्त नहीं है। उसी की हम चरण सेवा करेंगे। पादसेवनम् 
उसी की हम पूजा करेंगे। संपूर्ण साधनों से उसकी हम वंदना करेंगे। उसको प्रणाम करेंगे। उसी को हम अपना मित्र बनाएंगे। हमें मित्रों की आवश्यकता होती है, जो हमारी बराबरी का हो, जिसे हम मानें कि ये मेरे जैसा है, मैं इसके जैसा हूं, स्वच्छ भाव से हम जुड़ें। भगवान के सामने सुग्रीव और विभीषण की क्या योग्यता है, किन्तु भगवान ने सखा बना लिया। जैसे पत्नी का अपहरण करने वाले रावण को हमें दंडित करना है, वैसे ही सुग्रीव की भी पत्नी का अपहरण हुआ है, उनके लिए भी लडऩा है। जैसे मैं संसार के लोगों में श्रेष्ठ भावनाओं का प्रसार करता हूं, ठीक वैसे ही ये भी करेंगे। विभीषण लंका को अयोध्या बनाएंगे और सुग्रीव किष्किन्धा को बनाएंगे। बहुत बड़े क्षेत्र को अयोध्या जैसा बनाएंगे। भगवान को मित्र बनाना है। तमाम लोग दुनिया में हैं, जिनका कोई मित्र नहीं है। समान संस्कार और दीक्षा चरित्र, कत्र्तव्य के लोग नहीं हैं। मित्रता का बड़ा अकाल है। ऐसे-ऐसे लोगों को मित्र लोग बना लेते हैं। 
क्रमश:

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