Monday, 29 October 2018

श्रीराम मार्ग पर चलें सदा

भाग - ११
शिक्षा का ये जो घरेलू महाविद्यालय है, हमें पारंपरिक विद्यालय से पहले वाले जीवन का जो शिक्षा देने वाला विद्यालय है, उस विद्यालय में इन सभी तथ्यों को जीवन में वृक्ष का रूप देना है। बड़ी-बड़ी डालियां, टहनियां धड़ और जड़ देना है, उसमें आवश्यक है कि हम इन सभी बातों को सीखें। बातचीत की शुरुआत कहां से करनी है सीखें। हम सीखें कोई आया है, तो उसे मान कैसे देना है, हम सीखें कि कोई आया है, तो हम उसकी कैसी प्रशंसा करें, हम उसे क्या देकर भेजें, हम कैसे उसके लिए अपने को बिछावें, पलक पांवड़े बिछावें। यह पुरानी परंपरा है, कोई आया है, तो उसे हम दरवाजे तक छोडक़र आएं। और कहें कि आप आए आपका आभार।
ये जो शिक्षा घर में दी जाएगी, तो बच्चा ऋषि के रूप में सर्वश्रेष्ठ मानव के रूप में वरदान के रूप में समाज और मानवता के भूषण के रूप में प्रकाशित रूप में प्रकट होगा। ये सारी शिक्षाएं अभी नष्ट-भ्रष्ट हो रही हैं। केवल भारत वर्ष ही नहीं, केवल एक जाति के लोगों के लिए नहीं, संपूर्ण मानवता के लोगों, शरीरधारियों के लिए यह उपयोगी बात है। 
आप अपने बच्चे को बड़ा बनाना चाहते हैं, इसमें संदेह नहीं, किन्तु कैसे बड़ा बनाएंगे। आप अपने पिताजी का सम्मान नहीं करेंगे, तो आपका बच्चा कैसे करेगा? आप यदि संयम-नियम से जीवन नहीं बिताएंगे, तो सबकुछ अस्त-व्यस्त रहेगा, तो आपका बेटा कैसे संयमी होगा? कैसे चरित्रवान होगा, कैसे वह चोर नहीं होगा? कैसे वह पक्षपाती नहीं होगा? कैसे वो उद्दंड नहीं होगा? तो यह सारी शिक्षाएं छोटी आयु में जो लकीर पड़ जाती है मन में, वह बुढ़ापे तक चलती है। 
एक आरंभिक काल में अध्ययन किया था - पंचतंत्र हितोपदेश। बहुत उपयोगी है, समय मिले, तो सबको पढऩा चाहिए। उसमें लिखा था कि जो बच्चों का दिमाग होता है, वह कच्चे घड़े के समान होता है। कच्चे घड़े पर जो लकीर खिंच जाती है, वो जीवन भर बनी रहती है। घड़ा पक गया और अब लकीर बनी रहेगी। पक्के घड़े पर यदि लकीर खींची जाए, लकड़ी से, उंगली से, तो टिकती नहीं है, किन्तु कच्चे घड़े पर खींची जाए, तो सदा बनी रहती है। 
जैसे कच्चे घड़े पर कोई चिन्ह बना दिया जाए, तो पकने के बाद इधर-उधर नहीं होती, अमिट हो जाता है, किन्तु यदि आपने चिन्ह पक्के हुए घड़े पर लगा दिया, तब तो मिट जाएगा, आजीवन नहीं रहेगा। फूटने पर्यंत नहीं रहेगा। इसी तरह से हम अपने बच्चों को जो अबोध हैं, जिनके पास भाषा नहीं है, जिनके पास सिद्धांत ज्ञान नहीं है, जिनके पास व्यवहार का बहुत ज्ञान नहीं है, सबकुछ अभी अधूरा-अधूरा है। अपने बच्चे को कोई कह ही नहीं रहा है कि मैं खड़ा हूं, तू क्यों बैठ गया। 
एक बार दिल्ली जा रहा था, तो लखनऊ में हवाई अड्डे पर वीआईपी कक्ष में बैठा था। वहां अधिकारियों ने कहा हमारे प्रबंधकों को कि महामहीम राज्यपाल मोतीलाल वोरा आ रहे हैं। राज्य में राष्ट्रपति शासन है। महाराज को दूसरी जगह बैठा देते हैं। ये जगह खाली कर दें, तो हमारे प्रबंधकों ने कहा कि खाली कर देते हैं। हम दूसरे कमरे में चले गए, बैठे। किसी पुलिस के बड़े अधिकारी ने कहा मोतीलाल वोरा जी को कि रामानंदाचार्य रामनरेशाचार्य जी भी अभी हवाई अड्डे पर ही हैं। तो वोरा जी ने कहा, हमें मिलवाओ, उन्हें प्रणाम करना है। 
तो आ गए, प्रणाम किया। समाचार मैंने पूछा, कहां जा रहे हैं, कहां से आ रहे हैं। ये पूछकर जो व्यावहारिक क्रम है, बहुत प्रेम से मिला। काफी दिनों बाद भेंट हुई थी। वोरा जी मेरे पुराने शुभचिंतक और प्रेमी, अच्छे भाव रखने वाले, किन्तु मिलने की खुशी में मैं यह कहना भूल गया कि वोरा जी बैठेंगे क्या। बातचीत के क्रम की शुरुआत प्रवाह में भूल गया, तो मोतीलाल वोरा जी जब २०-२५ मिनट बीत गया, वो खड़े थे। तब मैंने कहा, ‘वोरा जी आप बैठेंगे क्या?’ 
उन्होंने उत्तर दिया, ‘इतनी बड़ी आयु का हूं, आप बोल ही नहीं रहे थे, तो मैं कैसे बैठता।’ 
सनातन धर्म में शिक्षा दी जाती है, जब तक बड़े की आज्ञा नहीं है, छोटे को बैठना नहीं है। मैंने कहा, धन्य सनातन धर्म और धन्य वो संस्कार देने वाले, जातियां, परिवार, संस्थान। इतना बड़ा आदमी राज्यपाल है, राष्ट्रपति शासन है, देश का सबसे बड़ा प्रांत है उत्तर प्रदेश। पूरा अधिकार राज्यपाल के पास, मुख्यमंत्री रहा हुआ नेता। एक भिक्षु की आज्ञा के बिना बैठा ही नहीं। कहा कि आपकी आज्ञा नहीं हुई। 
तो मैंने कहा, ‘मैं समझता था कि आप जल्दी जाएंगे, क्योंकि विमान को जाना है। अंधेरा हो जाएगा।’ 
तो वोरा जी ने कहा, ‘छोड़ देता विमान, नहीं जाता, वहां कौन मेरे बाल बच्चे रो रहे हैं। आप मिल गए हो, तो मेरी यात्रा की इससे बड़ी उपलब्धि क्या होगी? आपको हम लोग बहुत-बहुत महत्व देते हैं। प्रेरणा लेते हैं।’ 
तो यह शिक्षा का प्रभाव है कि इतने बड़े प्रांत का राज्यपाल, राष्ट्रपति शासन से जुड़ा हुआ राज्यपाल मेरी आज्ञा के बिना बैठा नहीं। अब तो कोई भी बैठ जाता है, कितना भी वरिष्ठ आदमी हो। 
क्रमश:

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