Monday, 29 October 2018

श्रीराम मार्ग पर चलें सदा

भाग - ९
चैतन्य महाप्रभु ने कहा कि यदि किसी को भक्त बनना है, भगवान का भजन करना है, तो मान की इच्छा छोड़ो और मान देने की इच्छा से जुड़ो। हमें दूसरों को मान देना है। हमें मान चाहिए, हम चाहते हैं कि सब लोग हमारी जयजयकार करें। ऐसे महान भाव के चैतन्य महाप्रभु प्रचारक हैं। मान देने की परंपरा, मर्यादा निभाने की परंपरा बच्चों को शुरू से ही बतलानी चाहिए। जब पिता जी आएं, तो आप खड़े हो जाओ, उन्हें प्रणाम करो, ये शुरू से सिखाना होगा। पिता जी बड़े हैं, उनका मान-सम्मान करें। इससे समाज जुड़ेगा, मानवता का विकास होगा। सार्थकता बढ़ेगी। इसलिए भगवान राम जी जब उठते हैं, तो सबसे पहले भगवान को प्रणाम करके, जो कुलदेवता हैं, माता-पिता को, ब्राह्मणों को, जितने भी बड़े लोग हैं, सबको प्रणाम करते हैं। 
प्रणाम बहुत-बहुत बड़ी साधना है। प्रणाम समाज का बहुत बड़ा जोडऩे वाला द्रव है। सम्मान ही आदमी को चाहिए। सारे लोग भोजन ही नहीं मांगते, कपड़ा ही नहीं मांगते, किन्तु सम्मान सबको अच्छा लगता है। आज भी लोग हाथ जुड़वाते हैं, जो हाथ जुड़वाने, प्रणाम करवाने का उपक्रम चल रहा है, किन्तु अधिकांश परिवारों में अब बंद हो रहा है। बच्चों को नहीं सिखलाते और स्वयं भी नहीं करते हैं। अब तो लोग घुटने में ही हाथ लगा देते हैं। यह कोई बात हुई क्या? कुछ दिनों में पेट में लगा देंगे, उसके बाद छाती में लगा देंगे, गला में लगा देंगे, सिर में लगा देंगे, ये कोई प्रणाम की पद्धति हुई क्या? वरिष्ठ खड़ा है और छोटा ही बैठ गया। ये मर्यादा की बात हुई क्या? 
पूरी दुनिया का मूल तंत्र है प्रणाम, हमें किसी को पिघलाना है, हमें किसी को अपना बनाना है, तो उसको हम प्रणाम करें और सब बातें तो गौण हैं। ये शिक्षा देनी ही चाहिए कि जब तक बड़े खड़े हैं, तब तक छोटों को बैठना नहीं है। कैसे हाथ जोडऩा है, कैसे चरण स्पर्श करना है। किस तरह से उन्हें बोलना है कि जी प्रणाम, हाथ जोडक़र। ये सिखाना घर के विद्यालय का कार्य है। 
अभी तो आधुनिक शिक्षा पद्धति में बच्चे बैठे रहते हैं और अध्यापक खड़े रहकर पढ़ाते हैं। बतलाइए, अब क्या शिक्षा होगी। अब कक्षा में हाथ नहीं जोडऩा है, बस अपनी जगह खड़े हो जाइए और फिर बैठ जाइए, बेचारा अध्यापक खड़ा रहेगा। उसे देर तक खड़ा रहना है। ऐसा सेना में होगा क्या? ऐसा तो नहीं होगा। जितनी बार बड़ा अधिकारी जाता है, उतनी बार छोटा अधिकारी सैल्यूट मारता है। 
सभी लोगों को बच्चों को सैनिक बनाना है। जो सेना में प्रोटोकॉल है, केवल वही नहीं, जो संतों में प्रोटोकॉल है, वो भी बताना है। जो मार्यादाएं सेना में हैं, जो मर्यादाएं दूसरे संस्थानों में हैं, उसके साथ ही हमें संतत्व की शिक्षा भी देनी चाहिए। जो हमें आदर देता है, मर्यादा के साथ सारे व्यवहार करता है, वही तो संत है। शुरू से ही शिक्षा हो और शिक्षा की जो विवेचना है, वो ऐसे दी जाए कि अपरोक्ष ज्ञान हो जाए। अपनों के साथ दूसरों को भी प्रेरित करने की भी शिक्षा देनी है। भगवान की दया से जो बड़ी प्रसिद्ध है कि राम जी जब उठते थे, तब सभी बड़ों को प्रणाम करते थे। 
गुरु माने बड़ा होता है। व्याकरण में एक सूत्र है - दीर्घं च - जो बड़ा है अपने से, वो अपना गुरु है। जो आयु में बड़ा है, वो भी गुरु है। धन में जो बड़ा है, वो गुरु है। जो अपने से रूप में बड़ा है, बल में बड़ा है, प्रभाव में बड़ा है, तो उसको प्रणाम कीजिए। जिसको बड़प्पन प्राप्त है, वो गुरु है। 
अभी तो लोगों को यही समझ नहीं आ रहा है कि गुरुओं को कैसे प्रणाम किया जाए।  ये वो देश है, जहां प्रणाम करके लोग पत्थर को भी पिघला देते हैं। द्वारिकाधीश तो सुदामा को प्रणाम करते हैं। द्वारिकाधीश को समग्र ऐश्वर्य प्राप्त है, जो समृद्धशाली हैं, वो भी अपने गरीब ब्राह्मण संत साथी को प्रणाम करते हैं। इस तरह की प्रेम की वर्षा और मर्यादा की संस्थापना अनुकरणीय है, अद्भुत है और दूसरा इसका कोई उदाहरण नहीं है। भगवान की दया से जीवन के इन महत्वपूर्ण तथ्यों को बच्चों को विद्यालय जाने से पहले और बाद में भी बार-बार बतला देना चाहिए। 
क्रमश:

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