Wednesday 6 June 2012

समस्या का समाधान

भाग - चार
श्याम मनोहर कृष्ण तो एक ही थे, उनकी हजारों गोपियों और पत्नियां थीं, किन्तु किसी का ‘हार्ट फेल’ नहीं हुआ। किसी ने कृष्ण के विरुद्ध याचिका दायर नहीं की। गोपियां यदि मिलकर हंगामा करतीं, तो भागवत की कथा ही नहीं होती। आप कल्पना कीजिए, जिन्होंने अपना रोम-रोम श्यामसुन्दर को दे दिया, उनसे अधिक समर्पण, प्रेम, सेवा की भावना, आत्मीय भावना या जितने श्रेष्ठ भाव हैं, वो किसी में नहीं हैं और उसके बाद भी कोई बनावट नहीं है। फिर भी लोग कहते हैं कि कृष्ण जी बहुत प्रेमी हैं और भक्ति के आचार्य के रूप में गोपियों को देखा जाता है, उनसे ज्यादा प्रयोग और ज्ञान किसी को भक्ति का नहीं है। आचार्य क्या है? जिसने सर्वस्व को समझा और जिसने सम्पूर्ण जीवन का सार समझा और जीवन में उतारा, उसी को आचार्य कहते हैं। आज तो आचार्य बनाने वालों को ही आचार्य शब्द के अर्थ का ज्ञान नहीं है। भ्रष्टाचार और आतंकवाद के विरुद्ध आंदोलन करने वाले को भ्रष्टाचार का ज्ञान नहीं है। अन्ना हजारे से कोई पूछे कि भ्रष्टाचार आपको सिर्फ धन का ही दिख रहा है? आज तो ऐसी स्थिति हो गई है कि कोई घर आता है, तो कोई पानी भी नहीं पूछता। आचार्य भी आते हैं, तो कोई बैठने को नहीं कहता। मेरे सामने लोग कुर्सी पर बैठने में संकोच करते हैं, किन्तु जिनके पैरों में कष्ट होता है, उन्हें मैं स्वयं कुर्सी पर बैठने के लिए कहता हूं, यही शिष्टाचार है। यदि आचार्य ही भ्रष्ट होंगे, तो उनका कोई महत्व नहीं रह जाएगा। मैं कह देता हूं कि वरिष्ठता का हनन करके लोकतंत्र में यदि किसी जूनियर को आगे ले आया जा रहा है, तो यह भ्रष्टाचार है या नहीं? ऐसे सामाजिक-मानसिक भ्रष्टाचार के सामने धन का भ्रष्टाचार भी छोटा लगता है। सास आए और बहू बैठने को भी न कहे, तो कैसे चलेगा?
आज लोगों को भ्रष्टाचार का वास्तविक स्वरूप ही समझ में नहीं आ रहा है। ऐसे भ्रष्ट आचरण पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन चला रहे लोग भी चुप हैं।
रामजी का जो अभियान है, उसे देखना चाहिए। रामजी ने साधन का संग्रह नहीं किया, किसी पार्टी या किसी जाति या किसी अमुक की कोई भी अपेक्षा नहीं की, जो मिलता गया, उसे जोड़ लिया, सुग्रीव मिले, तो उन्हें जोड़ा, जामवंत मिले, तो उनको जोड़ा। निषादराज मिले, तो उनको और अनेक-अनेक व्यक्तियों को अपने साथ जोड़ा।
रामजी ने कहा कि हमारे पास कुछ नहीं है कि आपको वेतन देंगे, जैसे मैं फलाहार करता हूं, आप भी करिए, नंगे पांव मैं हूं, आप भी चलिए।
आप सोचिए, यदि मैं रोज इत्र लगाकर यहां बन-ठनकर ब्यूटीपार्लर से सजकर आऊं, तो मैं आपको कैसा उपदेश दूंगा या कैसा उपदेश दे सकूंगा। आज यही हो रहा है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन करने वालों को चुनाव प्रचार में नहीं जाना चाहिए था। मेरा कहना है, कांग्रेस ने चालीस साल निरंतर राज किया, तो अवश्य उसका पैसा विदेशी बैंक में होगा, किन्तु जिन्होंने छह साल राज किया, उनका भी तो होगा, भले कुछ कम ही हो। उन लोगों को साथ नहीं जोडऩा चाहिए था, यदि आपने उनको जोड़ा, तो लगा कि आप उनके इशारे पर काम कर रहे हैं। ये लोग रामराज्य की बात क्या करेंगे? इनके साथ कितने सच्चे लोग हैं? रामजी के अभियान में बहुत लोग थे और सभी त्यागी, समर्पित, नि:स्वार्थ। क्या रामराज्य चंद लोगों के दम पर ही आ जाएगा? ध्यान रहे, रामराज्य लानेे के लिए त्रेता युग में भी रामजी को सेना बनानी पड़ी थी। आज अनेक बड़े-बड़े संत हैं, उन्हें साथ नहीं लिया जा रहा है। आंदोलन या अभियान कैसे चलेगा, यह पता ही नहीं है। जिस आदमी को यह ज्ञान नहीं है कि अनशन कैसे तोड़ा जाता है, किसके हाथों से रस पिया जाता है, वह कैसे और कितना सफल होगा?
उधर रामजी को देखिए, अपने समय के महान चिंतकों, मनिषियों, ऋषियों के पास आश्रमों में जा-जाकर रामजी दंडवत करते हैं। रामराज्य की स्थापना के कुछ सूत्र हैं, उन्हें अपनाना पड़ेगा। जो सात्विक जीवन के लोग हैं, जिनके जीवन में दाग मात्र नहीं हैं, उनसे आप सहयोग लें, प्रेरणा प्राप्त करें, उनसे आपका आधार बन जाएगा। यह आपके लिए औषधि बन जाएगी। शल्य क्रिया की भी आपके पास तैयारी होनी चाहिए। जैसे अफगानिस्तान में नाटो सेना वाले संहार करते हैं और बाद में जाकर सडक़ बनाना, विधानसभा बनाना और इसमें भारत से भी सहयोग दिया जाता है। शल्य क्रिया के उपरांत दवा देना, मरहम पट्टी करना यह सब जरूरी है। सकारात्मक परिवर्तन की तैयारी हर तरह से होनी चाहिए। रामराज्य में विचारों से परिवर्तन होगा, उसके लिए प्रयास करना होगा, किन्तु आज दुनिया का कौन-सा संगठन है, जो रामजी के अभियान से प्रेरणा ले रहा है?
सभी ऋषियों, मुनियों के आश्रम में रामजी जाते हैं, वोट मांगने के लिए नहीं जाते हैं, उनके विचारों का संग्रह करने, उन विचारों का प्रयोग करने, उन विचारों को अपने जीवन में उतारने के लिए जाते हैं। जरा देखिए तो कि गुरु वशिष्ठ जी के प्रति रामजी में कितना आदर का भाव है। जब आप श्रेष्ठ जन के प्रति आदर का भाव ही नहीं रखेंगे, तो आप क्या श्रेष्ठ पद का उपयोग कर पाएंगे? रामजी ने विश्वास के साथ शुरुआत किया कि राम भाव के विकास की परंपरा, योजना चलनी चाहिए।
हम दुनिया की बात बाद में करेंगे, अपने देश में जिन लोगों ने शताब्दियों तक समाज को प्रभावित किया, जिनके जीवन में क्षण-क्षण में राष्ट्रीय भावना है, मानवता की भावना है, राम राज्य की भावना है, वे सभी लोग पवित्र जीवन के लोग हैं, इनका आचरण और धर्म भी पवित्र है। शास्त्रों से जो ऊर्जा निकल रही है, ये उसके पक्षधर हैं। आज भ्रष्टाचार कहां नहीं हो रहा है? आदि शंकराचार्य ने चार मठ बनाए थे, उनके किसी मठ पर उनका कोई भाई-भतीजा नहीं है, किन्तु अब मठों में क्या हो रहा है, यह भी तो देखा जाए। राम भाव के प्रकाश में जीवन सुधार की आवश्यकता है। क्रमश:

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