Monday 11 June 2012

समस्याओं का समाधान

समापन भाग
कोई निराश न हो, सुधार और रामभाव की संभावना सदा बनी हुई है। ए. राजा भी जेल में गए, करुणानिधि की बेटी भी जेल में गई, एक आदर्श खड़ा हुआ कि बड़े लोग भी जेल जा सकते हैं। आने वाले दिनों में कौन आदमी जेल में पहुंच गया और वहीं सड़ गया, पता नहीं चलेगा। जो गलत हैं, उन्हें दंड मिलेगा।
लोग भूल जाते हैं, अर्जुन सिंह के पिताजी भ्रष्टाचार के मामले में जेल गए थे। बाद में कांग्रेस ने उन्हें विधानसभा चुनाव लडऩे के लिए टिकट दिया। नेहरू जी प्रचार करने के लिए गए थे, भाषण देकर मंच से नीचे उतरे, तो एक स्वतंत्रता सेनानी ने कहा कि पंडित जी आप इस चोर का प्रचार करने के लिए वोट मांग रहे हैं? तो पंडित जी फिर मंच पर चढ़े और वहां से कहा, मैं शर्मिंदगी के साथ अपनी बात को वापस लेता हूं, मैंने कहा था कि इनको वोट दीजिए, अब कहता हूं, आप इनको वोट मत दीजिए, भले कांग्रेस यहां हार जाए, मुझे खुशी होगी कि भ्रष्ट आदमी चुनाव नहीं जीता।
यह बहुत बड़ी बात है, कांग्रेस भी भूल गई है। कांग्रेसियों को कहना चाहिए कि उनकी पार्टी ऐसी पार्टी है, जो अपने नेता को जेल भेज सकती है। समझौता नहीं किया। ए. राजा को उसी सिद्धांत के आधार पर जेल ले जाया गया, लोकपाल के आधार पर वे नहीं गए। पुराने कानून व आधार पर ही न जाने कितने अपराधी जेल में सड़ रहे हैं। आपको मालूम होगा कि चारा घोटाले में दोषी कई लोग मर गए, दस-दस साल का कारावास हो गया। यह वही कानून है, जो संविधान लेखन के समय बना था। सभी समस्याओं की जड़ है आदमी का ईश्वरीय धारा से दूर होना, सभी समस्याओं का समाधान है कि आदमी शास्त्रों के निर्देश से जुड़े, श्रेष्ठ जनों की प्रेरणा से जुड़े और राम भाव के साथ जुडक़र अभियान चलावे। कहीं कोई दिक्कत नहीं होगी। हम लोगों को देखिए, बड़ाई मैं नहीं कर रहा हूं, २३-२४ साल हो गए मुझे रामानन्दाचार्य बने हुए। कहीं एक रुपया भी अपने नाम से नहीं जुड़ा। पैसा आता है, आप ही देते हो, खर्च होता है। किसी ने कहा कि कुछ जमा कर लीजिए, बुढ़ापे में काम आएगा, तो मैंने कहा, मेरे जितने चेले हैं, क्या सब हमसे पहले ही मर जाएंगे, जो मेरे साथ रहेंगे, मैं उनसे कहूंगा कि ऐ दवाई के लिए भेजना, अपनी दवाई में कितना खर्च करते हो, तो मुझे भी भेजना, दवाई की जरूरत है। आज जो हम कमा रहे हैं भावों का धन, हमारे बाद भी हमारे कुछ लोग मरेंगे। अभिप्राय यह कि इतने दिनों में एक रुपया भी जमा नहीं हो पाया, काहे का डिपोजिट, आपको तो बतला दूं, तो हैरान हो जाएंगे। मठ में जो दो ढाई लाख रुपए थे, वो भी १९९७ से ब्लॉक हैं, उसका व्याज भी आना बंद है। फिर भी श्रीमठ चल रहा है।
मैं कई बार लोगों को मजाक में कहता हूं, कुछ दिनों में हम भी पुट्टापर्थी (अमीर) होने वाले हैं, मालामाल होने वाले हैं। पहले ज्यादा साधन नहीं था, साधन अभी जो बढ़ा है, उसमें आप भी हिस्सेदार हैं, आगे जब साधन और बढ़ेगा, तो भोगने के लिए क्या बाहर से लोग आएंगे? हमारे पास जो भी साधन या धन होगा, हमें मिल-बांटकर उपभोग करना है। अभी मैंने नहीं खाया, आप ही प्रसाद लाते हैं, आप ही खाते हैं। हमारे पास जो भाव है, उसे आप प्रचारित करें। हमारे पास जो भी कुछ है, उसमें आप सबकी हिस्सेदारी है। पैसा बहुत आ जाए और सच्ची प्रतिष्ठा न हो, तो कैसे चलेगा? पिछले दिनों जबलपुर के जिस आश्रम में मैंने महायज्ञ करवाया, वह जूना अखाड़े का है। दूसरा कोई आता, तो जूना अखाड़े वाले जगह नहीं देते, धकिया देते। मैं वहां गया, तो उन्होंने सोचा होगा कि रामनरेशाचार्य तो जूना अखाड़े के ही हैं, छोड़ो इन्हें। दूसरा कोई बैठता, तो वे बैठने नहीं देते। मैं कहता हूं, कोई संन्यासी महात्मा वहां आता है, तो इनकी सेवा करो, भेदभाव नहीं करना। श्रीमठ या काशी में भी हमारे यहां कोई संन्यासी आ जाए, तो सेवा होती है। अभी एक छात्र ने निवेदन किया कि हमें सहयोग चाहिए, मैं पढ़ता हूं, मेरे पीछे कोई सहयोग देने वाला नहीं है, मैंने उसके लिए १००० रुपया महीना तय कर दिया, कहा, चिंता मत करो, जरूरत पड़ी तो और दूंगा, अलग साल सहयोग और बढ़ा दूंगा। तुम्हें कहीं जाना होगा, तो टिकट भी बनवा दूंगा, कपड़ा और अन्य आवश्यकता भी पूरी करूंगा, जीवन भर खूब पढ़ो, पूरी मदद करूंगा। मेरा कहना है, कोई आदमी श्रेष्ठ चिंतन में है, तो उसे सहयोग मिलना चाहिए, पैसे का यही उपयोग सबसे बड़ा है।
रामचन्द्र भगवान की जय।

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