Monday 11 June 2012

समस्याओं का समाधान

भाग - पांच
आज के समय में श्री माधवाचार्य जी बहुत अच्छे महात्मा हैं। विहिप के संस्थापकों में रहे हैं, उनको देखने से ही लगता है कि वे ऋषि समान हैं। एक बार वे श्रीमठ आए थे, वहां ऋंगेरी के शंकराचार्य जी भी थे, द्वारिका-जोशी मठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद जी भी थे, मैं भी था। मंच पर हम बैठे थे। सभा के उपरांत मैंने किसी से पूछा, ‘आपको सबसे तेजस्वी कौन लग रहा था?’
उन्होंने पूछा, ‘आपको बुरा तो नहीं लगेगा?’
मैंने कहा, ‘नहीं बुरा लगेगा, बताइए।’
तब उन्होंने कहा, ‘माधवाचार्य जी सबसे अच्छे महात्मा लग रहे थे।’
वास्तव में माधवाचार्य जी का बोलना, उठना, बैठना ऐसा है कि उसमें कहीं से कोई नकलीपना नहीं है। आज तो कई महंत ऐसे बैठते हैं, जैसे कोई अहिरावण बैठा हो। बैठा नहीं जा रहा है कि कमर में दर्द है, ऐसे-ऐसे बैठे रहते हैं कि चित्र खराब हो जाता है। दिखावा वाले महंत यह भी सोचते हैं कि कहीं लोग यह न समझ लें कि छोटा वाला महंत है। क्या अकड़ कर बैठने से कोई बड़ा महात्मा हो जाएगा? अकड़ कर बैठने से तो सिनेमा की शूटिंग तक खराब हो जाती है, तो अध्यात्म की शूटिंग कहां चलने वाली है? यदि कोई आदमी फिल्म की शूटिंग करा रहा हो, तो प्रसंग के अनुसार उसे हंसना, मुस्कराना, रोना पड़ता है। प्रसंग है कि मुस्कराना है और वहां कोई अट्ठाहास करने लगे, तो कैसे चलेगा? धर्म के क्षेत्र में अकडऩा कैसे चलेगा? सबसे बढक़र शालीनता बनी रहनी चाहिए। हमारे राष्ट्र का सौभाग्य है, आज भी अच्छे-अच्छे संत हैं, एक से एक बड़े संत हैं, लेकिन क्या कभी रामदेव जी ने या अन्ना हजारे ने उन्हें पूछा है? कभी नहीं पूछा। वे तो ऐसे लोगों को साथ रखते हैं, जिनकी सनातन धर्म में कोई खास जगह नहीं है। महात्मा माधवाचार्य जी उन लोगों में से हैं, यदि उनको कहना होगा, तो वे सोनिया गांधी और मनमोहन ङ्क्षसह को भले बहुत प्रेम कर रहे हों, लेकिन वे जरूर कह देंगे कि यह गलत हो रहा है।
एक बार हमसे उन्होंने कहा कि विज्ञप्ति जारी की जाए, राष्ट्रहित में जारी की जाए। विज्ञप्ति तैयार हुई, उसे जब शंकराचार्य जी को दिखाया गया कि हम दोनों ये जारी कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि जो पापी हैं, अपने आप ही मर जाएंगे, आप लोग क्यों राजनीति में पडक़र ये कष्ट उठाना चाहते हैं। विज्ञप्ति जारी नहीं हुई। तो माधवाचार्य जी को कहीं से कोई लागलपेट नहीं है। इतना बड़ा विद्वान, धनवान और धर्म के लिए काम करने वाले महात्माओं में दस लोग होंगे, तो एक नाम माधवाचार्य जी का है।
हमने समझना होगा कि रामजी ही रामराज्य के संस्थापक पुरुष हैं। हिन्दू राष्ट्र का अर्थ ही रामराज्य है। लफंगों का राष्ट्र नहीं। मैंने पहले भी कहा था कि मांस खाना, शराब पीना और सारे गलत काम करना, यदि यह चलता रहे और यदि इसे हिन्दू राष्ट्र कहा जाए, तो इससे तो धर्मनिरपेक्ष शासन ही ठीक है। मैं किसी की निंदा कर रहा था, जो मांस भी खाते थे, शराब भी पीते थे और श्रीराम का नारा भी लगा रहे थे, तो इससे अच्छा है कि भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र ही बना रहे।
चाहे कांग्रेस के माध्यम से आए या भाजपा या वामपंथियों के माध्यम से आए, रामराज्य की कल्पना तभी साकार होगी, जब शास्त्रीय भावनाओं को या उपनिषद की भावनाओं को, रामजी की भावना पर लोग ध्यान लगाएंगे और रामजी के अभियान से प्रेरणा लेंगे।
संसार में बिन लादेन या दाऊद सबसे बड़े अपराधी नहीं हुए, संसार में रावण जैसा आतंकवादी या व्याभिचारी कोई नहीं हुआ। सबसे बड़ा आतंकवादी कौन - रावण। सबसे बड़ा व्याभिचारी कौन - रावण। नैतिकता ताक पर रखने वाला सबसे बड़ा अपराधी कौन - रावण। सबसे ज्यादा धन का संग्रहकर्ता कौन - रावण। ऐसे रावण को रामजी ने जड़ से उखाड़ दिया और स्वयं कुछ भी नहीं लिया, वहीं का वहीं दे दिया, विभीषण को दे दिया। हां, उससे पहले विभीषण को उत्तराधिकार के लिए तैयार किया, उत्तराधिकारी जोरदार होगा, तभी तो विरासत को बहुत दिन तक बनाए रख पाएगा। अभी कल्पना करिए सब काला धन स्विस बैंक से आ जाए, तो फिर चला जाएगा। जब तक अभी जो लोग हैं, नहीं सुधरेंगे, लोगों में राष्ट्रीय भावना, ईश्वरीय भावना, धार्मिक भावना नहीं होगी, तब तक धन नहीं रुकेगा, फिर काला होकर विदेश चला जाएगा। इसलिए इन भावनाओं को संजोना होगा, ताकि धर्म और धन की शुचिता बनी रहे। रामजी इन भावनाओं को तैयार करते हैं, अपनी सेना को पहले ही तैयार कर दिया कि आपका आचार भी पवित्र है, धर्म भी पवित्र, धन भी पवित्र है। धन का सदुपयोग कैसे होगा, इसके लिए पूरी सेना सौ प्रतिशत तैयार है। अभी तो उत्तराधिकारी बनने के लिए ही झगड़ा चल रहा है। एक से एक लोग लगे हुए हैं, पद के पीछे। कहां से क्या हड़प लिया जाए, यही षडयंत्र जारी हैं।
पहले अच्छी टीम तैयार होनी चाहिए, रामजी से प्रेरणा लेनी चाहिए। रामजी ने जिसको साथ लिया, उसको इतना सक्षम बना दिया कि वह लंका को संभाल सकता था, विभीषण ने संभाला, सुग्रीव ने संभाला, निषादराज ने अपने राज को संभाला, कहीं भरत जी को राजा बनाकर भेजा, कई लोगों को राजा बनाया और अपने बेटों को रामायण गायन में लगा दिया। कुश और लव रामायण गा रहे हैं। आइए, इस अद्भुत, अतुलनीय आदर्श से हम सीखें और समस्याओं का समाधान करें। क्रमश:

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