Monday 11 June 2012

समस्याओं का समाधान

भाग - छह
आज जातिवाद एक बड़ी समस्या बना हुआ है। लगता है, पहले से बढ़ गया है। जातिगत जनगणना भी हुई है। कई लोगों को जाति की राजनीति में बड़ा आनन्द आ रहा है। यह कहा जाता है कि अरहर की दाल को और जाति को जितना पकाया या मथा जाए, उतना ही आनंद बढ़ता है। मैं बतला दूं, बनारस में हमारे लंबे जीवन में एक भी आदमी नहीं मिला, जिसने हमारी जाति के आधार पर हमारा पक्ष लिया हो। बिहार जातिवादियों का देश है, जातिवाद की शुरुआत ही वहां से हुई है। जैसे पहाड़ों पर बर्फ गिरती है, तो तराई के इलाकों तक ठंड स्वत: आ जाती है, ठीक उसी तरह जितनी भावनाएं हैं, भली या बुरी, वे सब बिहार से चलती हैं और देश भर में फैल जाती हैं। महात्मा गांधी ने वहीं से आंदोलन शुरू किया। जब कांग्रेस के विरुद्ध पहला आंदोलन शुरू हुआ, तो बिहार से ही शुरू हुआ, जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व किया। कोई भी क्रांति होगी, तो उस क्रांति का सूत्रपात उसका, उत्स और उसे ऊर्जा देना, उसको रास्ता देना और उसको सारी बौद्धिक कौशल देना, बिहार से ही शुरुआत होती है। इतने ऊर्जावान लोग और कहीं होते ही नहीं हैं। अभी आपने सुना होगा कि वहां एक डीजीपी हैं अभयानंद जी। जब नीतीश मुख्यमंत्री हुए, तो उन्होंने अपनी बिरादरी के आदमी को ही डीजीपी बनावा दिया, लेकिन वह सफल नहीं हुआ, फिर उत्तर प्रदेश के एक ब्राह्मण को बनाया, जो किसी की बात नहीं सुनते थे, उसके बाद अभयानन्द जी आए। अभ्यानन्द जी के पास जब लालू यादव के काल में कोई काम नहीं था, तब उन्होंने गरीब बच्चों को आईआईटी कोचिंग कराना शुरू किया, सुपर थर्टी नाम से संस्थान खोला। तीस गरीब बच्चों को वे चुनते थे, उन्हें पढ़ाते थे, हर तरह की सुविधा देते थे और उनमें से अधिकांश बच्चों का आईआईटी में चयन हो जाता था। आईपीएस अभयानन्द जी और उनकी मित्रमंडली ने यह बड़ा काम किया। उन लोगों ने देश भर को बतला दिया कि यह है पढ़ाई का तरीका। पढ़ाई ऐसे भी हो सकती है, पैसा ही सबकुछ नहीं है।
वे डीजीपी हो गए। मैंने किसी पत्रिका में पढ़ा कि लाखों-लाख जो अवैध हथियार बिहार में जप्त हुए हैं, उनमें लगे लोहे को गलाकर उससे कुदाली और हसुआ बनवा रहे हैं अभयानन्द जी। यह आदमी इतना ईमानदार है कि मैं गया में था, लोग बोले कि अभयानन्द जी प्रणाम करेंगे, यह काफी पहले की बात है। लेकिन वे नहीं आ पाए, तो मैंने पूछा कि क्या हुआ। जवाब मिला, जो किराये की गाड़ी लेकर ससुराल आए थे, वह रास्ते में खराब हो गई, जो समय आपके यहां लगना था, वह रोड पर ही लग गया। वे निजी काम के लिए सरकारी वाहन के इस्तेमाल से बचते हैं। उनके पिताजी भी पुलिस अधिकारी थे। बताते हैं कि पिता जी जो भी बोलते थे, अभयानन्द जी सिर झुकाकर मानते थे। व्यवहार कुशल हैं, प्रणाम करेंगे, सिफारिश भी सुनेंगे, लेकिन वही करेंगे, जो उचित होगा, गलत काम नहीं करेंगे। काम सरकारी वही होगा, जो सही होगा। ऐसे ही पुलिस अधिकारी चाहिए, ऐसे लोगों को आगे लाकर काम करना-कराना चाहिए। ऐसा नहीं है कि देश चलाने लायक लोग नहीं हैं।
उत्तर प्रदेश में मायावती ने एक वैश्य को डीजीपी बनवाया था। ये अधिकारी ऐसे थे कि मायावती भी अन्याय की बात करेंगी, तो वे विरोध करेंगे, भले ही इस्तीफा दे दें। जाति ही सबकुछ नहीं है। चरित्रवान कहीं भी पैदा हो सकता है, उसका जाति से कोई सम्बंध नहीं है। महात्मा गांधी भी तो वैश्य थे। जाति के आधार पर गाली देने की परंपरा बहुत गलत है। श्रेष्ठ लोगों का हर स्थिति में सम्मान होना चाहिए, लेकिन आज लोग श्रेष्ठता का सम्मान कम करने लगे हैं। आप कीजिए, अभी से शुरू कीजिए, ऊर्जा फैलेगी और ईमानदार और श्रेष्ठ लोगों का एक समूह तैयार होगा। पुलिस के अच्छे अधिकारियों को अभी कह दिया जाए कि सुधार कीजिए, काम कीजिए, तो ये एक सप्ताह में किसी भी राज्य को रामराज्य जैसा बना देंगे, एक गलत काम नहीं हो सकेगा, लेकिन अच्छे पुलिस अधिकारियों, अच्छे प्रशासनिक अधिकारियों को काम नहीं करने दिया जाता है।  क्रमश:

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