Saturday 24 September 2016

मरा मरा से राम राम तक

भाग - ६
महर्षि वाल्मीकि ने संपूर्ण आत्मीय भाव से जानकी जी और उनके पुत्रों को अपने आश्रम में रखा। राम जी के बच्चों को सशक्त रूप से विकसित किया। उन्होंने राम जी के बच्चों को वीर ही नहीं, विद्वान भी बनाया। 
उनके आश्रम का वातावरण अत्यंत सुंदर था। ऐसे दिव्य वातावरण जहां सबकुछ पवित्र है, शुद्ध है, अच्छे जीवन को देने वाला है। ऐसे वातावरण में निर्वासन के प्रताप से जानकी जी पहुंच गईं। उनके बच्चे भी वहीं पल रहे हैं, बहुत ही शुभ हो। विधि विधान से उनका पालन-पोषण संस्कार हुआ। संसार के लिए यह बहुत ही अच्छी घटना हुई। जो लोग सत्य नहीं जानते, वही कहेंगे कि राम जी ने गलत किया। कहते हैं कि जानकी जी को जंगल में छोड़ दिया गया धोबी के कहने पर, लेकिन वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण में धोबी की चर्चा कहीं नहीं है। तुलसीदास जी ने उस प्रकरण को ही छोड़ दिया, क्योंकि उनसे वियोग सहन नहीं हुआ। 
राम जी को भी गुरुकुल में रहने का ज्यादा अवसर नहीं मिल पाया था, शिक्षा तो उन्हें मिली थी, वन में रहकर शिक्षा लेने का काम अधूरा रह गया था, जिसे जानकी जी ने अपने बच्चों के माध्यम से पूरा किया। महर्षि वाल्मीकि ने अपने आदि काव्य को सबसे पहले राम जी के बच्चों लव-कुश को पढ़ाया। इस संसार की अद्भुत घटना है कि दुनिया का सबसे पहला आदि काव्य ग्रंथ जो लौकिक भाषा का पहला महाकाव्य है, जो बच्चों की मां के लिए लिखा गया है, पिता के लिए लिखा गया है, उसे बच्चों को ही सबसे पहले पढ़ाया। 
लव, कुश रामायण गाते हैं। जहां वे रामायण गाते हैं, वहां लोग एकत्र हो जाते हैं। लोग राम जी के सद्गुण सुनना चाहते हैं, लोग जानकी जी के बारे में जानना चाहते हैं। राम जी के मन में है कि जिस उद्देश्य से सीता आश्रम गई थीं, वह पूरा हुआ, मेरे बेटों को अच्छी शिक्षा प्राप्त हुई। 
महर्षि वाल्मीकि ने केवल कुछ लोगों को ही सुरक्षित नहीं किया, वाल्मीकि रामायण की रचना की, लव, कुश को शिक्षित करके रघुवंश को सिंचित किया और रघुवंश को सिंचित करके विश्व व सृष्टि को सिंचित किया। रघुवंश आदर्श है पूरे संसार के लिए, उसका जयघोष पूरे संसार में हो। यह सभी लोगों के लिए प्रेरणादायक है कि बच्चों को जो शिक्षा देनी है, जरूर दी जाए, बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर बनाया जाए, आधुनिक शिक्षा दी जाए, इसके बिना जीवन का निर्वाह नहीं होगा, लेकिन बच्चों में ऋषि जीवन का भी प्रभाव होना चाहिए, बच्चों को पता होना चाहिए कि ऋषित्व क्या है, तप-त्याग-संयम नियम का क्या सुख है। घर में रहकर बच्चे यह नहीं प्राप्त कर सकते। संसार के लोगों को, विशेषकर भारत के लोगों को ऐसी योजना बनानी चाहिए कि गर्भावस्था में महिलाओं को ऐसे वातावरण में भेजा जाए, जहां सबकुछ अध्यात्ममय है, जहां एक-एक शब्द विशिष्ट है, खाना-पीना, दिनचर्या शुद्ध है, अनुशासित है, दिव्य है, तो इससे होने वाली संतति में महान संस्कार का प्राकट्य होगा, जो उसके संपूर्ण जीवन को प्रेरित करता रहेगा, गुरुत्व देता रहेगा, संबल देता रहेगा, और उसके साथ-साथ में दूसरी जरूरी आधुनिक शिक्षा भी दी जाए। प्रारंभिक काल किसी के लिए भी अच्छा होना चाहिए। बचपन अगर श्रेष्ठ वातावरण में बीत जाए, तो संपूर्ण जीवन आलोकित हो जाता है।
क्रमश:

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