Saturday 24 September 2016

मरा मरा से राम राम तक

भाग - ३
जीवन के किसी क्षेत्र में कोई नया बड़ा आदमी आता है, तो वह बहुत दमखम के साथ लगता है अपने जीवन को सुधारने में। अपने जीवन को परिवर्तित करने में अपने जीवन को सुंदर बनाने में पूरे दमखम के साथ प्रयास करता है। रत्नाकर ने जपना शुरू किया और हजारों वर्षों तक जपा, उन पर दीमक लग गए, जप करते-करते एक जगह, दीमकों ने उन पर घर बना लिया। दीमक के घरों को ही वल्मीक बोलते हैं, इसलिए इनका नाम वाल्मीकि हो गया। संपूर्ण जीवन विशुद्ध हो गया, भगवान का नाम जपते हुए। रोम-रोम से जहां पाप प्रवाहित हो रहा था, वहां रोम-रोम से राम-राम प्रवाहित होने लगा। अध्यात्म और अहिंसा प्रवाहित होने लगी, रोम-रोम में संयम-नियम स्थापित हो गए। पाप की गुंजाइश ही खत्म हो गई, संपूर्ण जीवन विशुद्ध हो गया। इसी क्रम से रत्नाकर डाकू ने पूर्ण महर्षित्व को प्राप्त कर लिया। वाल्मीकि के नाम से तीनों लोक में ख्याति हुई। एक बहुत बड़ी क्रांति आई कि समाज के लिए जो अभिशाप बना हुआ था, जो मानवता के लिए कलंक था, ब्राह्मण जाति के लिए जो कलंक था, आज राम-राम की महिमा से वह मानवता के लिए वरदान बन गया। देवर्षि नारद के गुरुत्व की महिमा से कल्याण हो गया। उन्होंने ऋषित्व को उत्पन्न कर दिया। पूरे समाज के लिए एक आदर्श बना। मानवता का चरम प्राप्त हुआ। शास्त्र विरुद्ध आचरण के सबसे बड़े कर्ता का जीवन पूर्ण शास्त्रीय जीवन हो गया। शास्त्रों के संकेतों को दूर-दूर तक प्रसारित करने वाली जीह्वा से संपन्न जीवन प्राप्त हो गया। 
चारों ओर यही चर्चा थी, जो जहां सुनता था, उसे लगता था कि कितना भी तुच्छ जीवन हो, नीच जीवन हो, मर्यादा के विरुद्ध जीवन हो, लेकिन संतत्व की प्राप्ति संभव है। यदि ईश्वर में जीवन को लगाया जाए, तो परिवर्तन होगा। शास्त्रों की आज्ञा की जरूरत है। देवर्षि नारद के बताए मंत्र का सम्मान किया और पूर्ण विश्वास अर्जित किया। उन्होंने तपस्या से वह सब प्राप्त किया, जो वह लूटपाट से कभी प्राप्त नहीं कर सकते थे। राम नाम से सामान्य मनुष्य ही नहीं, मनुष्यता की पराकाष्ठा वाला जीवन भी संभव है। देवर्षि नारद की विद्या काम कर गई। हमारा जीवन कितना भी लांछित हो, निंदनीय हो, अभिशापित हो, कितना भी हमारा जीवन हेय हो, समाज के लिए अत्यंत नाकारा हो, किन्तु सही मार्गों से चलकर भी हम अपने जीवन को सुधार सकते हैं। सुधार ही नहीं सकते, उसे परम सौन्दर्य दे सकते हैं, उसको संसार के लिए मानवता के लिए परम उपयोगी बना सकते हैं, प्रेरणादायक बना सकते हैं। सभी लोगों को एक मार्ग की प्राप्ति हुई। 
आम धारणा है, जीवन में, समाज में धन कमाने के लिए भोग के लिए, सम्मान कमाने के लिए व्यक्ति न जाने कितना परिश्रम करता है, लेकिन उतना परिश्रम वह ईश्वर के लिए नहीं करता। लौकिक विद्या को कमाना भी साधारण काम नहीं है, कला के क्षेत्र में बड़े स्वरूप को कमाना भी कोई साधारण काम नहीं है, लेकिन जब आध्यात्मिक कमाई की बात होती है, तो लोग पीछे हट जाते हैं। आध्यात्मिक जीवन को भी उतना ही महत्व देना चाहिए। 
वे पूरे संसार के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। महर्षि वाल्मीकि आदिकाव्य के रचयिता हैं, जैसे वेदों के स्तर का दुनिया में कोई ग्रंथ नहीं है। वेद अनादि माने जाते हैं। ब्रह्मा जी भी केवल ग्रहण करते हैं, ऐसा कहा जाता है, वेदों में भी यह वाक्य आया है। 
वेदों की तुलना में कोई ग्रंथ किसी जाति, किसी राज्य, किसी संप्रदाय के पास नहीं है। कोई भी वेदों को नहीं काट सकता, उनकी ऊंचाई को प्राप्त नहीं कर सकता। वेदों को छोड़ दें, तो लौकिक भाषा में, लौकिक संस्कृति में सबसे पहला ग्रंथ महर्षि वाल्मीकि के ग्रंथ को माना गया। यह ध्यान देने योग्य बात है। संपूर्ण संसार में जितनी भाषाएं हैं, उन भाषाओं में किसी भी भाषा के पास महर्षि वाल्मीकि का महाकाव्य वाल्मीकि रामायण जैसा कोई ग्रंथ नहीं है। कितनी बड़ी बात है कि जब वेदों के बाद लौकिक संस्कृति के अनुरूप लौकिक रचना बनी, तो पहली रचना वाल्मीकि जी ने ही रची - वाल्मीकीय रामायण। 
वेदों को प्रमाण माना जाता है, महाभारत को, वाल्मीकि रामायण को इतिहास की कोटि में रखा जाता है। इतिहास का प्रतिपादन हुआ। तमाम तरह के विषय वाल्मीकि रामायण में ज्ञान, शरणागति, वेदों का वर्णन, यह अद्भुत महाकाव्य है। सबसे पहले भगवान के चरित्र का वर्णन लौकिक भाषा में हुआ। यह पूर्ण ग्रंथ माना जाता है। वाल्मीकि रामायण में प्रमुखता से राम का वर्णन हुआ। कहा जाता है, वेदों में राम जी का वर्णन नहीं हुआ, किन्तु वाल्मीकि रामायण जैसा बड़ा ग्रंथ बिना आधार के ही लिखा गया था क्या? यदि बिना आधार के लिखा गया होता, तो उसे कोई महत्व नहीं देता, कोई सम्मान नहीं देता। भगवान राम का चरित्र वेदों में भी था, लेकिन वो शाखाएं लुप्त हो गईं। वाल्मीकि रामायण की विशिष्टता और सत्यता पूर्ण प्रमाणित है। राम जी पूर्णावतार हैं, अद्भुत व्यक्तित्व हैं। 
११ हजार वर्षों का काल राम जी का रहा। कुछ विद्वानों ने व्याख्या करके यह भी अर्थ निकाला है कि राम जी का शासनकाल ३३ हजार वर्ष का था। राम जी पूर्ण ब्रह्म हैं, अवतारी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, गुणों की खान हैं, कोई भी हेय गुण उनमें नहीं है। संपूर्ण जीवन उनका उदार है। परम प्रेरणास्पद है, संतों को सुख पहुंचाने वाला है। 
क्रमश: 

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