Saturday 24 September 2016

मरा मरा से राम राम तक

भाग - ४
कहा जाता है, सौ करोड़ रामायणों की रचना हुई है। हर बार त्रेता में राम को प्रगट होना है। निरंतर उनके लिए लेखन होता रहता है। जितना राम जी पर लेखन हुआ है, उतना किसी भी अवतार के सम्बंध में लेखन नहीं हुआ। चाहे कोई भी अवतार हो, राम का अवतार सर्वाधिक चर्चित है। भगवान राम के सम्बंध में लेखन अद्भुत है। 
हां, वाल्मीकि जी ने यह अवश्य कहा, ‘मैं राम जी के चरित्र का गायन नहीं कर रहा हूं, मैं सीता के चरित्र का गायन कर रहा हूं।’ 
ग्रंथ की चेतना को महानायक से न जोडक़र उनकी जो प्राण वंदना हैं, उनकी जो अद्र्धांग्नि हैं, उनके नाम से जोड़ा। यह अनोखी बात है, ऐसा दुनिया में कहीं नहीं हुआ कि महानायक को छोडक़र उनकी सहभागिनी के नाम पर ग्रंथ रचा जाए। जहां राम जी की तूती बोल रही हो, जिन्होंने हजारों-हजारों वर्षों तक कण-कण को प्रभावित किया हो, अपना बनाया हो, वहां किसी दूसरे के चरित्र का गायन हो और सभी लोग उसको स्वीकार करें, विरोध न हो, यहां तक कि राम जी भी उसे स्वीकार करते हैं, यह तो अद्भुत बात हो जाएगी। राम जी के साथ महर्षि वाल्मीकि का जीवन पूर्ण रूप से जुड़ा हुआ जीवन है।
बहुत से लोगों का मानना है कि राम जी का जब अवतार हुआ, तो उसके पहले ही रामायण की रचना हो गई थी, अपनी दिव्य दृष्टि से वाल्मीकि ने देख लिया था। जो कुछ राम जी ने अपने अवतार काल में किया, उससे पहले ही उसका लेखन हो गया, ऐसा सनातन धर्म का पूर्ण विश्वास है। यह ऋषित्व के द्वारा ही संभव है, वह दिव्य प्रज्ञा से भूत, भविष्य को जान लेता है। वह वर्तमान को तो जानता ही जानता है। वाल्मीकि ने समाज के लिए, संसार के लिए बहुत बड़ा काम किया, क्रांति हुई। निश्चित रूप से सीता जी के साथ जो हुआ, उससे लोग आहत रहे होंगे, किन्तु वाल्मीकि रामायण का अध्ययन करने से उन्हें बड़ी शीतलता की प्राप्ति होगी।
लोकरंजन के लिए, लोगों को संतुष्ट करने के लिए, लोगों की भावनाओं को सम्मान देने के लिए गर्भावस्था में ही सीता जी को वनवास पर जाना पड़ा। सीता जी को वाल्मीकि जी की रचना से बहुत बल मिला होगा कि सीता चरित्र के लिए रामायण की रचना हुई। वाल्मीकि के रामायण में सीता चरित्र है, राम चरित्र नहीं है। राम जी महत्वपूर्ण चरित्र हैं, तो उसमें उनकी लीला आनी ही है, किन्तु वाल्मीकि जी स्पष्ट कहते हैं कि मैं सीता चरित्र लिख रहा हूं। 
मैं यह नहीं कहने जा रहा कि राम जी ने जो किया, उससे सीता के साथ अन्याय हुआ। मेरे पास ऐसे विचार हैं, जिनसे यह सिद्ध हो सकता है कि भगवान श्रीराम ने सीता जी को अपनी दुर्भावना या संदेह के कारण या सम्मान लेने के लिए गर्भावस्था में वाल्मीकि जी के आश्रम नहीं पहुंचाया था। 
क्रमश:

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