Tuesday, 13 September 2011

दुनिया में इतना दुख क्यों है?

एक दिन मैं बिहार यात्रा में किसी गांव जा रहा था। विभिन्न स्वभाव और विभिन्न आयु व आकार-प्रकार व अवस्थाओं के लोग साथ थे। उन लोगों ने कई प्रकार की चर्चाएं छेड़ रखी थीं, लेकिन उन चर्चाओं का कोई समाधान नहीं हो रहा था। कोई पूछ रहा था कि माता पिता को लोग क्यों नहीं मान रहे हैं, कोई भ्रष्टाचार की बात कर रहे थे। हर आदमी के मन में कोई न कोई जिज्ञासा थी, लेकिन उसका समाधान उस समूह के द्वारा नहीं हो रहा था। देखने से यही लग रहा था कि लोग जिज्ञासु हैं, जानने की इच्छा है। शास्त्रों में लिखा है, जिज्ञासा तभी होती है, जब संदेह हो और जब अपना मतलब सिद्ध होना हो। तो दुनिया में कोई ऐसा नहीं है, जिसे जिज्ञासा नहीं हो। हर किसी को कोई न कोई मतलब भी है और संदेह भी है।
दु:ख क्यों होता है?

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