बृहदारण्यकोपनिषद् में याज्ञवल्क्य ऋषि अपनी पत्नी मैत्रेयी से कहते हैं, 'आत्मनस्तु कामाय सर्वं प्रियं भवति। संसार के प्रत्येक व्यक्ति को अपने सुख के लिए ही पत्नी, पुत्र व धन प्रिय होता है।
एक व्यक्ति ने अपने समस्त परिवार से विद्रोह करके एक अत्यंत सुन्दर कन्या से विवाह किया। रात-दिन पत्नी को खुश करने में जुट गया। एक बार वह पत्नी के साथ गंगा में नौका विहार कर रहा था, तभी आकस्मिक तूफान आने से नाव डूबने लगी। भयभीत पत्नी बोल पड़ी, 'मुझे तैरना नहीं आता, मेरी कैसे रक्षा होगी।' पति ने उत्तर दिया, 'नाव भले डूब जाए, मैं तुम्हें पार ले जाऊंगा।' वह पत्नी को कंधे पर बिठाकर तैरने लगा।
No comments:
Post a Comment