Saturday, 3 September 2011

ना पूछो फिर जात पात



आध्यात्मिक साधना का जो फल होता है, उद्देश्य होता है, लगभग वैसा ही फल व उद्देश्य राष्ट्रीय और लोकतांत्रिक साधना का होता है। राष्ट्र समृद्धि को प्राप्त हो, सुंदरता को प्राप्त हो, यही लोकतंत्र का लक्ष्य है। ऎसी सेवा साधना के लिए जाति का क्या महत्व हो सकता है? लोकतंत्र में जाति के आधार पर नागरिकों की गणना करना राष्ट्र को चरम लक्ष्य तक पहुंचने से वंचित करने के समान है। ऎसी गणना से हम कोई सकारात्मक लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाएंगे। जाति भेद क्यों बढ़ाया जा रहा है? अगर सूर्य देव भेदभाव करें, अगर वायुदेव भेदभाव करें, तो क्या होगा? मुझे लगता है, जिस दुर्भावना से ग्रस्त होकर अंग्रेजों ने जाति आधारित जनगणना करवाई थी, उससे सावधान रहना चाहिए। वे बांटों और राज्य करो वाले लोग थे, इसके लिए उनका अपना संविधान था, किन्तु अब हमारा अपना संविधान है, हमारे यहां वैसा नहीं होना चाहिए। प्रयास ऎसे हों कि लोगों में परस्पर प्रेम बढ़े, भेद नहीं।आज पूज्य रामानन्दाचार्यजी के जाति भेद विरोधी वचनों का स्मरण करने की आवश्यकता है। राष्ट्र में कृषि विकास हो, शिक्षा, चिकित्सा या सैन्य विकास हो, किसी भी तरह के विकास में जाति की कोई आवश्यकता नहीं है, जैसे प्रेम और भक्ति में जाति की कोई आवश्यकता नहीं है। धागा जितना बड़ा होगा, उतनी ही बड़ी माला बनेगी। जाति आधारित जनगणना होगी, तो धागा टूट जाएगा। अपने राष्ट्र में पहले ही विखंडन बहुत हो चुका है, पाकिस्तान अलग हुआ, श्रीलंका अलग हुआ, बर्मा अलग हुआ, लेकिन अभी भी कई लोग हमें और बांटने के अवसर ढूंढ़ रहे हैं। ऎसी जनगणना से राष्ट्र का मार्ग कतई प्रशस्त नहीं होगा। हमें प्रयास करने चाहिए कि हमारी सांस्कृतिक धारा का विस्तार हो, उसकी उज्ज्वलता बढ़े। अशोक ने इसी राष्ट्र में महान गौरव प्राप्त किया, राष्ट्र के लिए आवश्यक श्रेष्ठ भावों को व्यक्त किया, परन्तु वे किस जाति के थे, कौन जानता है? भारत में जो लोग भेदों की दीवारों को तोड़ने में सफल हुए, वही आगे बढ़े हैं। जाति की पूछ-परख अनुचित है। पुरानी बात है। टिकट बंटवारा हो रहा था, पण्डित नेहरू ने एक जाति विशेष के व्यक्ति को टिकट दिया। जाकिर हुसैन ने पूछा कि उसे आपने टिकट क्यों दिया, उन्हें उत्तर मिला कि अमुक क्षेत्र में अमुक जाति के ज्यादा लोग हैं। जाकिर हुसैन ने तब विरोध किया था कि एक खतरनाक शुरूआत हो रही है। जाकिर हुसैन जाने-माने विद्वान नेता थे, राष्ट्रीय भावना से परिपूर्ण थे, उन्होंने तभी अनुभव कर लिया था कि एक बड़ा खतरा तैयार हो रहा है।
अब जाति आधारित जनगणना के प्रयास करने वाले न जाने कैसे लोग हैं? क्या चाहते हैं? क्या देश का विकास चाहते हैं? गणना तो उनकी होना चाहिए, जो हमारे राष्ट्र में अवैध रूप से रह रहे हैं। गणना तो इसकी होना चाहिए कि कौन अपने स्वार्थ को पहले रखता है और कौन राष्ट्र को पहले रखता है? आज आप पूछिए, तो उत्तर मिलेगा, सबसे पहले अपना जीवन महत्वपूर्ण है, उसके बाद धन महत्वपूर्ण है, फिर अपना परिवार व समाज या जाति महत्वपूर्ण है, किन्तु यह तो राष्ट्रीय भावना को निगलने जैसी बात है। हमारी सारी अच्छाइयों को निगल रहा है स्वार्थ। गणना तो इसकी होना चाहिए कि राष्ट्रीयता के पैमाने पर किसके कितने अंक हैं? निरंतर कहा जाता है कि दूसरे देशों में राष्ट्रवादी भावना ज्यादा है। हमें भी तो हर भेद से परे अपने राष्ट्र का चिंतन करना चाहिए। आज पहले से पता होता है, जाति आधार पर टिकट बंटेगा। आरक्षण है। असंतोष बढ़ रहा है। विप्लव होगा, आतंककारी भावना बढ़ेगी। जगदगुरू स्वामी रामानन्दाचार्य कहते थे, जात पात मत पूछो। आज जाट भाई अपनी जाति से मुख्यमंत्री बनाने की मांग करते हैं, किन्तु स्वामीजी ने जाति से जाट धन्नाजी को आज से सैकड़ों वष्ाü पहले ब्राह्मणों की पंक्ति में बिठाया था।
जहां तक महिला आरक्षण का प्रश्न है, तो मेरा मानना है, यह होना चाहिए। इस राष्ट्र की संस्कृति ने महिलाओं का जितना सम्मान किया, उतना किसी राष्ट्र ने नहीं किया। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की, तो उन्होंने कहा, मैंने सीता चरित का गायन किया है, राम चूंकि उनके पति हैं, इसलिए सीता चरित में वे भी हैं। दुनिया में नारी को केन्द्र में रखकर उस जैसा दूसरा ग्रंथ नहीं है।
इंदिरा गांधी को जिस सम्मान के साथ राष्ट्र ने प्रधानमंत्री बनाया, वैसा आज तक कहीं नहीं हुआ। नारी स्वतंत्रता की बात करने वाले अमेरिका, रूस में भी नारी न तो सुप्रीम कोर्ट में उच्च पद पर पहुंची है और न राष्ट्रपति बन सकी है। चीन अभिमान करता है, लेकिन उसने अपने सबसे बड़े नेता माओ के निधन के बाद उनकी पत्नी को किनारे कर दिया। लोग कहते हैं, नारी बाहर जाएगी, तो कैसे संघर्ष करेगी, बाहर तो बड़ी गंदगी है, गुंडे हैं। इसके लिए तो पहले हमें बाहर सफाई करना चाहिए। नारियों को बाहर आने से रोकने की बजाय हमें बाहर की दुनिया की जो गंदगी है, उसका सफाया करना होगा। व्यवस्था न सुधरे, तो कोई भला पुरूष भी आगे नहीं आएगा, çस्त्रयों के आगे आने की तो बात छोडिए। आरक्षण में जो आरक्षण की बात कर रहे हैं, वे दकियानूसी लोग हैं। महिला आरक्षण संभव हुआ, तो हमारी संस्कृति के साथ एक ऎसी विशेषता जुड़ेगी, जिसकी बराबरी संसार का कोई राष्ट्र नहीं कर पाएगा। तमाम आरक्षण हो रहे हैं, किन्तु महिला आरक्षण पहले होना चाहिए।
स्वामी रामनरेशाचार्य
रामानन्द संप्रदाय के प्रधान
(जैसा उन्होंने ज्ञानेश उपाध्याय को बताया, पत्रिका में प्रकाशित लेख)

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