Thursday, 29 September 2011

मा हिंस्यात् सर्वाणि भूतानि

भ्रूण हत्या, पहला - भाग
आज कन्या भ्रूण हत्या एक बड़ी समस्या है। हम मानते हैं कि हत्या होनी ही नहीं चाहिए, क्योंकि जो जीवन दान है, वह हमारे द्वारा नहीं होता है, चाहे कीट का जीवन हो या पतंग का जीवन हो। यहां तक कि हम गेहूं, चावल भी स्वयं नहीं बना पाते हैं, हम केवल बीज डालते हैं, सींचते हैं, उसमें फूल स्वत: आता है, फल आता है। जो बनाता है, उसी को नष्ट करने का अधिकार है। रोटी हम बनाते हैं, बिल्ली आदि से उसकी रक्षा करते हैं, हम उसको खा जाते हैं या लोगों को खिला देते हैं। तीनों काम हुआ, उत्पादन, पालन और संहारण, इसलिए हम रोटी के स्वामी हैं। स्वामी को अधिकार है। मकान बनाया हमने, तो स्वामी उसका कोई दूसरा होगा क्या? इस संसार में एक भी ऐसा मनुष्य शरीर नहीं है, जो मनुष्य बनाता हो।

दु:ख क्यों होता है?

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