धर्म के ज्ञान से ही व्यक्ति को जीने की कला आती है.
Friday, 7 April 2017
अबलौं नसानी, अब न नसैहौं
राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैंहौं।। पायेऊँ नाम चारु चिंतामनि, उर कर तें न खसैहौं।। स्यामरूप सुचि रुचिर कसौटी, चित्त कंचनहिं कसैहौं। परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैहौं। मन मधुकर पनकै तुलसी रघुपति-पद-कमल बसैहौं।। (105वां पद - विनय पत्रिका - गोस्वामी तुलसीदास कृत)
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