अबलौं नसानी, अब न नसैहौं
राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैंहौं।।
पायेऊँ नाम चारु चिंतामनि, उर कर तें न खसैहौं।।
स्यामरूप सुचि रुचिर कसौटी, चित्त कंचनहिं कसैहौं।
परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैहौं।
मन मधुकर पनकै तुलसी रघुपति-पद-कमल बसैहौं।।
(105वां पद - विनय पत्रिका - गोस्वामी तुलसीदास कृत)
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