सैनाचार्य स्वामी अचलानंदगिरी जी महाराज
पीठाधीश्वर, अखिल भारतीय सैन्य भक्ति पीठ
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स्वामी जी से मिलते ही मुझे लगा कि ये अत्यंत उच्च कोटि के संत हैं, मेरे मन को आपने मोह लिया। आपका बहुत प्रभाव पड़ा। आपसे मिलते ही मेरी कई बुराइयां छूट गईं। यह हमारे के लिए सौभाग्य की बात है कि देश में स्वामी रामनरेशाचार्य जी जैसे गुरु विराजमान हैं। रामानंदाचार्य पीठ के प्रसिद्ध उद्घोष - जात पात पूछे नहीं कोई, हरि को भजे से हरि का होई - को स्वामी जी ने संसार में साकार कर दिखाया है। पिछड़ों-दलितों के लिए आपके मन में बड़ी चिंता है, बहुत लगाव है। आपने वाल्मीकि समाज के लोगों को भी भेदभाव से बहुत ऊपर उठकर गले से लगाया। आपको आम लोगों और भक्तों के बीच जाति आधार पर भेद करना नहीं आता। आप भक्त का केवल मन देखते हैं। सैन समाज को गले लगाने वाले स्वामी जी कोई सामान्य साधु नहीं हैं। संत समाज में आप सर्वोच्च रूप से विराजमान हैं।
लोग आज आचार्य की पदवी के लिए लाखों रुपए लेते हैं, मठ व पद पाने के लिए खूब खर्च करते हैं, लेकिन मुझसे आपने कुछ भी नहीं लिया। बस सवा रुपया लेकर मुझे आचार्य बना दिया। मुझे याद है, आपने कहा था कि मैं पौधा लगा रहा हूं, पैसा नहीं ले रहा, मुझे एक पैसा नहीं चाहिए। मुझे विश्वास है कि अचलानंद जी समाज के लिए कीर्ति पैदा करेंगे। आपकी कृपा से आज सब देख रहे हैं, सब कुछ है मेरे आसपास। आस्था है मेरे मन में। सेवा में लगा हूं। मेरा भाव है आपके लिए। आपके चरणों में ही मेरा तीरथ है।
मुझे याद है, जब सैनाचार्य की पदवी की चर्चा चल रही थी, तब एक और साधु आए थे मंदसौर से। उन्होंने दावा किया था सैनाचार्य बनने के लिए, लेकिन स्वामी जी ने मना कर दिया। स्वामी जी ने कहा, मुझे एक बाल बह्मचारी को ही सैनाचार्य बनाना है। पूरी जांच के बाद मैंने निर्णय किया है। उस साधु ने सैनाचार्य बनने के लिए पैसे भेंट करने की कोशिश की थी, स्वामी जी ने उसे बाहर निकाल दिया कि बाल बच्चेदार आदमी कैसे पदवी लेगा।
सैनाचार्य बनने के बाद मैं पूरे मन से काशी स्थित रामानंदाचार्य पीठ श्रीमठ से जुड़ गया। मेरे अंदर जन्म से जो वैराग्य है, वह रामापीर की मेहरबानी है। राम और कृष्ण एक ही हैं। रामापीर बाबा रामदेव जी भगवान कृष्ण के ही अवतार थे। भगवान कृष्ण के अत्यंत प्रिय भक्त महावीर अर्जुन के ही वंश में बाबा रामदेव का अवतरण बताया गया है। वे अर्जुन की बहत्तरवीं पीढ़ी में हुए। बाबा रामदेव ने अपने समय पूरे समाज को एक कर दिया था, जैसे भगवान राम जी ने अपने समय में किया था। उन्होंने भी सबको गले लगाया। उनका नाम राम से जुड़ा था, लेकिन वे पीर भी कहलाए। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम, जाति भेद आदि को नहीं माना। यह बतलाना चाहता हूं कि रामापीर बाबा रामदेव का जन्म जैसलमेर जिले में पोकरण के समीप रामदेवरा में हुआ था। उनकी जन्मभूमि रामदेवरा में आज दुनिया का सबसे बड़ा मेला लगता है। प्रदेश-देश से लाखों लोग सावन-भादो महीने में पैदल ही रामदेवरा दर्शन को पहुंचते हैं। ऐसा धार्मिक-सांस्कृतिक-सामाजिक मेला देश में किसी संत भगवान के लिए नहीं लगता।
मैं जैसे बाबा रामदेव को देखता हूं, वैसे ही राम जी को देखता हूं। उन्हीं की कृपा से आज समाज की हर संभव सेवा करता हूं। भगवान की कृपा है कि मुझे समाज के लिए कुछ करने का अवसर जीवन मिला है। लोगों को अच्छाई अर्थात राम का मार्ग दिखाने में लगा हूं।
मैं आपके साथ था, साथ हूं और साथ रहूंगा। आपने कृपा करते हुए वर्ष १९९४ में आपने जोधपुर में चातुर्मास किया था, दूसरी बार २०१५ में किया। यह मेरे लिए भी बड़े सौभाग्य की बात है। आपने अवसर दिया। मैं आपको तन-मन-धन कुर्बान कर चुका हूं। आपके चरणों में ही मेरा सिर रहेगा।
स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज राम ही हैं। ऐसे महात्मा बहुत कम हैं, जिनकी बोली में शक्ति है। ऐसे महात्माओं के प्रति अब लोग जगने लगे हैं। उनका प्रवचन सुनकर आनंद की प्राप्ति होती है। जिस दौर में बाबा लोग चारों तरफ बदनाम हो रहे हैं, धर्म के पालन से भटक रहे हैं। वहां स्वामी जी आदर्श हैं। आपसे संपूर्ण समाज ज्ञान ले सकता है, यह ज्ञान-संस्कार किसी को टीवी देखने से नहीं मिलता, यह ज्ञान जगह-जगह भटकने से नहीं मिलता, आपके पास मिलता है। स्वामी जी एकदम खरे हैं, उनका ज्ञान टीवी के भरोसे नहीं है। उन्हें प्रचार भी नहीं चाहिए। उन्हें समाज में सुधार चाहिए, जिसके लिए वे जुटे हैं दिन रात। ब्रह्म समान हैं, मेरी आत्मा के अंदर विराजमान हैं और सदा रहेंगे।
लोक संत, राज्य अतिथि - मध्य प्रदेश
स्थान - युगल जोड़ी श्री बाबा रामदेव मंदिर,
राइकाबाग, जोधपुर, राजस्थान
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