भाग - ४
मनु ने कहा -
एतद्देश प्रसुप्तस्य सकाशादग् जन्मन:।
स्वं स्वं चरित्रन् शिक्षरेन् पृथिव्यां सर्व मानवा:।।
संपूर्ण संसार के लोगों को इस देश के लोगों ने चरित्र की शिक्षा दी। विश्व गुुरुत्व तब आया। विश्व गुुरुत्व गोमांस खाकर आएगा क्या? भारत-पाकिस्तान को लड़ाकर हथियार बेचने वाले को विश्व गुरुत्व मिलेगा क्या? रोज पत्नी बदलने वालों को आएगा क्या? ऐसे में आना ही नहीं है, जिसको ना खाने का, ना बैठने का, ना बोलने का ढंग पता है।
भगवान की दया से वही ढंग या पद्धति रामचरितमानस के रूप में प्रकट हुई। एक श्लोक है, जो वाल्मीकि रामायण के वंदना के क्रम में कहा जाता है। उसमें कहा गया है कि वेदों का जो परम प्रतिपाद्य है, परम रहस्य है, जब राम के रूप में प्रकट हो गया। वेदों ने सोचा हमारा सारा सार तत्व तो प्रकट हो गया, अब हम क्या करें। अब हमारा कोई काम ही नहीं रहा। मेरा जो रहस्य था, प्रतिपाद्य था, मेरा जो सबकुछ था, वह चला गया राम के रूप में। तो हम अब क्या करें, तो वेदों ने कहा कि वाल्मीकि के माध्यम से रामायण के रूप में प्रकट हो जाते हैं। तो वेद ही रामायण के रूप में प्रकट हो गए।
वेद: प्राचेतसादासीद् साक्षात् रामायणात्मना।
वाल्मीकि रामायण के रूप में पहली बार वेदों के बाद में किसी लौकिक भाषा में यदि कोई ग्रंथ बना, महाकाव्य बना, इतनी बड़ी अभिव्यक्ति हुई, उसी का नाम वाल्मीकि रामायण है। जैसे वेदों का जोड़ नहीं, वैसे वाल्मीकि रामायण का नहीं, यह इतिहास है। रामायण इतिहास है, वाल्मीकि भी तो तुलसीदास हो गए। यह कथन महा भक्तमाल का -
कलि कुटिल जीव निस्तार हित बालमीकि तुलसी भए।
कलयुग के जो कुटिल जीव हैं, तमाम दुर्भावों से ग्रसित। कलयुग में उनको ठीक करने के लिए महर्षि वाल्मीकि तुलसीदास के रूप में आ गए। ये भक्तमाल नाभादास की रचना है। रामानंद संप्रदाय के ही वे महात्मा थे। सीकर के पास एक रैवासा धाम है, वहां पर उनका प्राकट्य हुआ। कोई ज्ञान नहीं, कोई शिक्षा नहीं, केवल संतों की सेवा से उनको दिव्य ज्योति प्राप्त हुई और उन्होंने एक तरह से हिन्दी का अतिप्राचीन ग्रंथ भक्तमाल का निर्माण किया। तो देखिए वेदों से वाल्मीकि रामायण पर आ गए। वाल्मीकि रामायण से तुलसीदास जी पर आ गए। वही धारा जो गंगा गोमुख में प्रकट हुई थी और ना जाने कहां-कहां से आ रही है, आज तक लोगों को पता नहीं चला। जैसे कब से वेद और कब से संसार चला, ये पता नहीं चल रहा है। अनादि है, वह धारा कल्याण की है। जो सही और सबके लिए कल्याण की धारा है, वह वाल्मीकि रामायण के रूप में प्रकट हुई। वाल्मीकि रामायण से वह तुलसीदास के रामचरित मानस के रूप में हुई। हम लोग केवल मन में बात रखने वाले लोग नहीं हैं। हम कच्चा ज्ञान वाले नहीं हैं। हम परिपक्व ज्ञान के लोग हैं। चरित्र में ज्ञान को उतारने वाली हमारी परंपरा है और उसके बाद दूसरों को देने की यह परंपरा कल्याण का सबसे बड़ा मार्ग है। सभी क्षेत्रों में गोस्वामी जी ने इस बात को प्रकट किया।
क्रमश:
मनु ने कहा -
एतद्देश प्रसुप्तस्य सकाशादग् जन्मन:।
स्वं स्वं चरित्रन् शिक्षरेन् पृथिव्यां सर्व मानवा:।।
संपूर्ण संसार के लोगों को इस देश के लोगों ने चरित्र की शिक्षा दी। विश्व गुुरुत्व तब आया। विश्व गुुरुत्व गोमांस खाकर आएगा क्या? भारत-पाकिस्तान को लड़ाकर हथियार बेचने वाले को विश्व गुरुत्व मिलेगा क्या? रोज पत्नी बदलने वालों को आएगा क्या? ऐसे में आना ही नहीं है, जिसको ना खाने का, ना बैठने का, ना बोलने का ढंग पता है।
भगवान की दया से वही ढंग या पद्धति रामचरितमानस के रूप में प्रकट हुई। एक श्लोक है, जो वाल्मीकि रामायण के वंदना के क्रम में कहा जाता है। उसमें कहा गया है कि वेदों का जो परम प्रतिपाद्य है, परम रहस्य है, जब राम के रूप में प्रकट हो गया। वेदों ने सोचा हमारा सारा सार तत्व तो प्रकट हो गया, अब हम क्या करें। अब हमारा कोई काम ही नहीं रहा। मेरा जो रहस्य था, प्रतिपाद्य था, मेरा जो सबकुछ था, वह चला गया राम के रूप में। तो हम अब क्या करें, तो वेदों ने कहा कि वाल्मीकि के माध्यम से रामायण के रूप में प्रकट हो जाते हैं। तो वेद ही रामायण के रूप में प्रकट हो गए।
वेद: प्राचेतसादासीद् साक्षात् रामायणात्मना।
वाल्मीकि रामायण के रूप में पहली बार वेदों के बाद में किसी लौकिक भाषा में यदि कोई ग्रंथ बना, महाकाव्य बना, इतनी बड़ी अभिव्यक्ति हुई, उसी का नाम वाल्मीकि रामायण है। जैसे वेदों का जोड़ नहीं, वैसे वाल्मीकि रामायण का नहीं, यह इतिहास है। रामायण इतिहास है, वाल्मीकि भी तो तुलसीदास हो गए। यह कथन महा भक्तमाल का -
कलि कुटिल जीव निस्तार हित बालमीकि तुलसी भए।
कलयुग के जो कुटिल जीव हैं, तमाम दुर्भावों से ग्रसित। कलयुग में उनको ठीक करने के लिए महर्षि वाल्मीकि तुलसीदास के रूप में आ गए। ये भक्तमाल नाभादास की रचना है। रामानंद संप्रदाय के ही वे महात्मा थे। सीकर के पास एक रैवासा धाम है, वहां पर उनका प्राकट्य हुआ। कोई ज्ञान नहीं, कोई शिक्षा नहीं, केवल संतों की सेवा से उनको दिव्य ज्योति प्राप्त हुई और उन्होंने एक तरह से हिन्दी का अतिप्राचीन ग्रंथ भक्तमाल का निर्माण किया। तो देखिए वेदों से वाल्मीकि रामायण पर आ गए। वाल्मीकि रामायण से तुलसीदास जी पर आ गए। वही धारा जो गंगा गोमुख में प्रकट हुई थी और ना जाने कहां-कहां से आ रही है, आज तक लोगों को पता नहीं चला। जैसे कब से वेद और कब से संसार चला, ये पता नहीं चल रहा है। अनादि है, वह धारा कल्याण की है। जो सही और सबके लिए कल्याण की धारा है, वह वाल्मीकि रामायण के रूप में प्रकट हुई। वाल्मीकि रामायण से वह तुलसीदास के रामचरित मानस के रूप में हुई। हम लोग केवल मन में बात रखने वाले लोग नहीं हैं। हम कच्चा ज्ञान वाले नहीं हैं। हम परिपक्व ज्ञान के लोग हैं। चरित्र में ज्ञान को उतारने वाली हमारी परंपरा है और उसके बाद दूसरों को देने की यह परंपरा कल्याण का सबसे बड़ा मार्ग है। सभी क्षेत्रों में गोस्वामी जी ने इस बात को प्रकट किया।
क्रमश:
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