आजकल तो बड़े लोग हर साल अपना सोफा, कुर्सी-टेबल, सजावट बदल देते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए, सादगी का जीवन होना चाहिए। रामराज्य का जीवन होना चाहिए। जरा सोचिए कि राम जी ने जंगल में कैसे बिताया होगा समय। ईश्वर की बात छोडि़ए, अयोध्या के महल में तो सब कुछ था, किन्तु जंगल में रहकर एक दिन उफ् तक नहीं किया।
वृंदावन में एक महात्मा
से मैं मिला था। उन्हें देखकर बहुत अच्छा लगा, तो मैंने उनसे पूछा, 'आप इतने अच्छे साधु हो गए, इसका रहस्य क्या है?
उन्होंने कहा, 'मैं तो आपको अपना रोना कहने आया हूं, आप मेरा ही इंटरव्यू मत लीजिए। हां, मुझे एक बात का सदा ध्यान रहा कि मैं साधु बनने
आया हूं, और इसी का आज यह फल है।
मैं भी बनारस साधु बनने
नहीं आया था, मैं तो विद्वान बनने आया
था, अविवाहित रहने आया था।
मुझे साधु तो नहीं बनना था, लेकिन जब रामानंदाचार्य
हो गया, तो फिर कोशिश की कि
थोड़े-बहुत साधु हम भी हो जाएं, साधुओं जैसे
दिखने लगें। इस कोशिश से मुझे भी लाभ हुआ।
ध्यान दीजिएगा, केवल यह याद रहे कि मैं साधु हूं, तो आदमी साधु हो जाएगा। दिखावा क्या करना,
गद्दी का क्या करना? जब शरीर का मांस ही सूख जाएगा, तो बुढ़ापे में तो ये गद्दा ही गडऩे लगेगा। चेहरा सिकुड़
जाएगा, दांत टूट जाएंगे, तो ये गद्दा-पंखा काम करेगा क्या? कदापि नहीं करेगा।
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