Wednesday 9 November 2016

भक्तिनी शबरी : सेवा का सच्चा पर्याय

भाग - ४
एक और चर्चा होती है कि शबरी ने चख-चखकर राम जी को बेर खिलाए। राम जी का यह स्वभाव है, जो भी माताएं, गुरु माताएं उन्हें खिलाती थीं, वे बहुत रुचि के साथ खाते थे, किन्तु शबरी के हाथ से खाने के बाद ईश्वर ने जब भी किसी माता के हाथों कुछ खाया, तो प्रशंसा तो जरूर की, किन्तु धीरे से यह भी कह दिया कि जो स्वाद शबरी के बेर में मिला था, वह फिर कभी नहीं मिला। ईश्वर की जो यह पक्षपाती भावना है, वह भक्त को परम ऊंचाई देने वाली है।
शबरी द्वारा किए गए स्वागत-सत्कार के बाद राम जी ने कहा था, मैं आपके गुरु मतंग ऋषि जी का आश्रम देखना चाहता हूं, जहां वे बच्चों को पढ़ाते, पूजन, अर्चन करते थे। शबरी उन्हें आश्रम में जगह-जगह ले गईं, आश्रम का हर कक्ष दिखाया। वहां सब कुछ व्यवस्थित था, अध्ययन की जगह, ग्रंथ, सबकुछ वैसे ही था, जैसे ऋषि छोड़ गए थे। भगवान बड़े प्रसन्न हुए, शबरी ने सबकुछ ठीक से सजा रखा था। भगवान को चार वेदों को जानने वाला उतना प्रिय नहीं होता, जितना भक्त भाव वाला चांडाल प्रिय होता है। जो भगवान के लिए समर्पित है, वह भगवान को प्रिय है। 
भगवान बैठे हैं, भक्त में वह धन, रूप नहीं देख रहे, केवल श्रद्धा देख रहे हैं। शबरी ने अनुमति मांगी, आपका दर्शन हो गया, आज मेरा जीवन परिपूर्ण हुआ। भगवान अब कृपा करें, मैं अब जाऊं। गुरु चरणों की सेवा करूं। राम ने कहा, ऐसा ही हो। शबरी भगवान के देखते-देखते ही दिव्यधाम चली गईं। ऐसा वाल्मीकि रामायण में लिखा है।
शबरी से जुड़ी प्रसिद्ध कथा है। एक तालाब में कीड़े पड़ गए थे, लोगों ने राम जी से कहा कि आप इसे निर्मल बना दीजिए, 
भगवान ने कहा कि यह पाप का फल है। किससे यह पाप हुआ कि पानी दूषित हो गया? 
लोग नहीं बतला पाए। तब राम जी ने कहा, चिंतन करने से मेरे मन में ऐसा आ रहा है कि कभी रास्ता साफ कर रही थीं शबरी। एक संत ने शबरी को नहीं देखा, शबरी ने उन्हें देखा और किनारे खड़ी हो गईं, स्नान करके जब वह लौटने लगे, तो शबरी का कपड़ा उनके चरणों में गिर गया, वे बड़े नाराज हुए, कौन है दुष्टा, रास्ते में आ गई, दूषित कर दिया, अब फिर स्नान करना पड़ेगा। 
दुबारा स्नान के लिए वह संत नदी नहीं गए, उन्होंने इसी तालाब में स्नान किया। उसी समय से इसका जल कीड़ों से भर गया। 
लोगों ने पूछा, इसका समाधान क्या हो सकता है बताइए?
तो राम जी ने कहा, यदि शबरी के चरणों से धोकर इसमें जल डाला जाए, तो कीड़े समाप्त हो जाएंगे। 
लोगों ने ऐसा ही किया और तालाब के कीड़े समाप्त हो गए। बहुत बड़ी घटना हो गई। सभी प्रकार से निर्बल साधन विहिन व्यक्ति के माध्यम से संत सेवा की महिमा से ईश्वर सेवा की महिमा से शबरी शक्तिशाली हो गईं। तालाब को निर्मलता प्राप्त हो गई। इस घटना से दण्डकारण्य के संपूर्ण ऋषि समाज में बहुत अच्छा संदेश गया। कई लोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि हम तो जान ही नहीं रहे थे कि ये महिला इतनी प्रभावशाली हैं। ईश्वर तो वस्तुत: दीनदयाल हैं, उन्होंने शबरी के रूप में भक्त को पहचान लिया। 
चिंतन की बात है कि लाखों वर्ष हो गए, त्रेता की बात है राम जी जब हुए थे, लेकिन शबरी की चर्चा आज भी ताजा है। कितना परिवर्तन आया संसार में, कितने तरह के लोग आए, गायक, कलाकार, सुनने वाले, लिखने वाले, बोलने वाले, सब लोग सिमट गए, बड़ी जातियों में जन्मे लोग सिमट गए लेकिन शबरी आज भी संसार को प्रकाशित कर रही हैं। शबरी का एक ही रहस्य है कि उन्होंने श्रेष्ठ भावों के साथ संतों की सेवा की। कहीं से कोई छल नहीं, अभिमान नहीं, दिखावा नहीं। 
क्रमश:

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