Wednesday 16 November 2016

सती अनसूया जी : पति भक्ति अर्थात महाशक्ति


भाग - ४
यहां भगवान ने सीता जी को अनसूया जी से सत्संग करने के लिए प्रेरित किया। भगवान को पता था कि अनसूया जी आदर्श महिला हैं। राम जी ने कहा कि जाओ आप, अनसूया जी को प्रणाम करो, आशीर्वाद लो। 
अनसूया जी के पास जाकर सीता जी ने अत्यंत विनम्रता से समर्पित भावना से सीता जी को बार-बार प्रणाम किया, बार-बार चरणों में स्वयं को नवाया और उनसे आशीर्वाद की आकांक्षा की। सीता जी के विनीत भाव को देखकर अनसूया जी बहुत प्रसन्न हुईं और अपने समीप में बैठाया। एक महिला के पास दूसरी आए, तो बड़ी महिला आशीर्वाद देती है। अनसूया जी ने भी सीता जी को आशीर्वाद दिया। साथ ही, दिव्य आभूषण और दिव्य वस्त्र सीता जी को प्रदान किए। विशेषता यह थी कि ये वस्त्र और आभूषण कभी पुराने नहीं होंगे, उनमें कभी गंदगी नहीं आएगी। अनसूया जी को पता था कि राम जी वनवास के लिए निकले हैं, तपस्वी वेष है। सीता जी कहां, कैसे वस्त्र बदलेंगी, कहां आभूषण बदलेंगी, कैसे बदलेंगी। इसलिए अनसूया जी ने सीता जो को आशीर्वाद स्वरूप दिव्य वस्त्र-आभूषण दिए। 
लिखा है तुलसीदास जी ने -
रिषिपतिनी मन सुख अधिकाई। आसिष देइ निकट बैठाई।।
दिब्य बसन भूषन पहिराए। जे नित नूतन अमल सुहाए।।
अनसूया जी अपने हाथों से सीता को दिव्य वस्त्र, आभूषण पहनाए। एक और भी काम किया अनसूया जी ने, संक्षेप में जानकी जी को नारी धर्म का व्याख्यान किया कि नारी को कैसे रहना चाहिए। सबसे पहली बात नारी धर्म का व्याख्यान करते हुए कहा कि माता, पिता, भाई, जितने भी सम्बंधी हैं स्त्री के, वे सब सीमित हैं, माता-पिता, भाई इत्यादि लडक़ी को कोई भी वह नहीं दे सकता, जो पति दे सकता है। 
तुलसीदास जी ने लिखा है -
मातु पिता भ्राता हितकारी। मितप्रद सब सुनु राजकुमारी।।
अमित दानि भर्ता बयदेही। अधम सो नारि जो सेव न तेही।।
अनसूया जी ने ही यह उपेदश किया था - 
धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी।।
एक लडक़ी को माता-पिता क्या दे सकते हैं, पढ़ा सकते हैं, वस्त्र दे सकते हैं, दान-दहेज दे सकते हैं, यह सीमित है, इसकी एक सीमा है, अमिट देने की क्षमता पति में ही होती थी। हे जानकी, कोई सीमा नहीं है, जिसका कोई माप नहीं हो सकता, जिसको तौला नहीं जा सकता है, जिसे दायरे में नहीं लाया जा सकता, वह सुख पति ही दे सकता है। दूसरे लोग पत्नी को उतना सुख नहीं दे सकते। 
जिस तरह की देखभाल पति करता है, उस तरह की देखभाल माता-पिता भाई नहीं कर सकते। पति के साथ लगकर पत्नी अपने परलोक को भी सुधार सकती है। पति जो धर्म करेगा, उसमें आधे की भागीदार पत्नी होगी। जो परम फल अमिट फल कहलाता है, उस फल को देने की क्षमता पति के साथ लगकर ही प्राप्त हो सकती है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण उपदेश है। पिता कभी अपनी बेटी के सभी रहस्यों के जानकार नहीं हो सकते, लेकिन पति अपनी पत्नी के सभी रहस्यों का जानकार होता है। 
पति सब कुछ दे सकता है, अमित दानि भर्ता बयदेही। जो पालन-पोषण करता है, उसे भर्ता कहा जाता है। पति की सेवा करके नारी सब कुछ प्राप्त कर सकती है। लोक की सभी विभूतियों को लोक के सभी फलों को प्राप्त कर सकती है, इसलिए अनसूया जी ने कहा कि किसी भी अवस्था में पति का परित्याग नहीं होना चाहिए, क्योंकि वह असीमित दान देने वाला है। भले ही पति गरीब हो, बीमार हो, नेत्र ज्योति न हो, अपंग हो, सभी प्रकार की दीनता से युक्त होने के बावजूद पति की सेवा में ही पत्नी को सब कुछ मिलेगा। दूसरों से कुछ नहीं मिलेगा, जो है, वह भी चला जाएगा। 
आजकल असंख्य नारियों का मन भटकता है अपने पति से, अपने पति की दरिद्रता, दीनहीनता, रोग आदि को देखकर भटकता है, भटकने से कुछ नहीं मिलता, बल्कि जो मिला हुआ है, वह भी छिन जाता है। इसलिए पति को किसी भी तरह से उपेक्षित नहीं करना चाहिए। यदि थोड़ा भी मन भटकता है, तो उससे अनेक तरह की यातनाएं प्राप्त होती हैं। सब कुछ मानकर पति का ही साथ तन-मन से देना चाहिए। 
इसके बाद चार प्रकार की पतिव्रता स्त्रियों का उल्लेख किया अनसूया जी ने। स्त्रियों को इन बातों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। आज के लोग समझ रहे हैं कि हम बहुत होशियार हैं, एक जगह बंधन में रहने की क्या जरूरत है, जबकि यह बंधन नहीं है, यह तो बड़े लाभ देने वाला है। जब संयम-बंधन में रहेंगे, तभी हम जीवन का सही मूल्यांकन कर सकेंगे। हम सम्बंध जरूर बढ़ाएं, लेकिन मर्यादा से सम्बंध को बढ़ाना चाहिए, जिससे हमारे जीवन का विकास हो, यह नहीं कि जो मिले उसे पत्नी मान लें, जो मिले उसे पति मान लें। सम्बंधों की गरिमा बनाए रखने के लिए बंधन जरूरी हैं। 
क्रमश: 

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