Wednesday 9 November 2016

भक्तिनी शबरी : सेवा का सच्चा पर्याय

समापन भाग
किसी को सीखना हो, तो शबरी से सीखे कि कैसे श्रद्धा भक्ति के माध्यम से ऊंचाई को प्राप्त किया जा सकता है। शबरी ने सबकुछ पा लिया था, जब तक मानवता रहेगी, तब तक शबरी की चर्चा होती रहेगी। संपूर्ण संसार के मनुष्यों से अत्यंत आग्रह है कि सभी लोग ईश्वर सेवक बनें, संत सेवक बनें, गुरु सेवक बनें। मार्गदर्शन हम शबरी से प्राप्त करें। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र, सभी मार्गदर्शन प्राप्त करें। किसी भी जाति, संप्रदाय के लिए शबरी प्रेरणा का स्रोत हैं। इस तरह के व्यक्तित्व संसार के इतिहास में दुर्लभ हैं। जो जहां है, वहीं से सेवा प्रस्तुत करे। जीवन की परम धन्यता को प्राप्त करेगा। 
ऐसे वैज्ञानिकों की जरूरत है, बहुत से सेवकों की जरूरत है, बहुत से नेताओं की जरूरत है। शबरी से सीखकर समाज उन्नत समाज होगा, एक दूसरे के काम आने वाला समाज होगा, राम राज्य वाला समाज होगा। 
शबरी को भगवान ने नवधा भक्ति का उपदेश दिया, जो आज भी संसार में भक्ति का श्रेष्ठतम उपदेश माना जाता है। यह भक्ति भागवत में भी बताई गई है। जगह-जगह इसका वर्णन है। भगवान ने शबरी के माध्यम से संसार को नवधा भक्ति उपदेश दिया, जैसे कृष्ण अवतार में भगवान ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। भगवान ने शबरी से कहा कि नवधा भक्ति में से किसी एक प्रकार की भक्ति भी किसी को हो जाए, तो उसका कल्याण हो जाएगा, लेकिन आपने तो नौ प्रकार से भक्ति की है। आपके कल्याण में कोई संदेह की बात ही नहीं है। तुम संपूर्ण भक्तिमय हो। राम जी ने बहुत उपदेश दिए होंगे, ३३ हजार साल का उनका काल है, लेकिन उन्होंने जो उपदेश शबरी को दिया, वह अतुलनीय है, यह परम सौभाग्य है कि साधन विहीन शबरी को भक्ति क ा उपदेश मिला। राम जी सबसे साधन संपन्न हैं, वह सबसे साधन विहीन शबरी को उपदेश दे रहे हैं। 
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा। 
अर्थात पहली भक्ति है संतों का सत्संग। दूसरी भक्ति है मेरे कथा-प्रसंग से प्रेम। तीसरी भक्ति है, अभिमान रहित होकर गुरु की सेवा। चौथी है - कपट छोडकर मेरे गुणों का गान करना। पांचवीं है - दृढ़ विश्वास के साथ मेरे मंत्र अर्थात राम नाम का जाप। छठी है - इन्द्रियों का निग्रह, अच्छा चरित्र, संत आचरण करना। सातवीं है - संसार को मुझमें ओतप्रोत देखना, संतों को मुझसे भी अधिक मानना। आठवीं है - जो मिल जाए, उसी में संतोष करना, दूसरे के दोष न देखना। नौवीं भक्ति है - सरलता और सबके साथ कपटरहित व्यवहार करना, मुझमें भरोसा रखना और मन में विषाद न लाना। 
नवधा भक्ति में शबरी ऊंचाई को प्राप्त हुईं। जब शबरी ने राम जी से कहा था कि मैं तो अधम हूं, मन्दबुद्धि हूं, तब राम जी ने कहा, 
कह रघुपति सुनु भामिनी बाता। मानउं एक भगति कर नाता।।
हे भामिनी, मेरी बात सुन, मैं तो केवल एक ही भक्ति का ही सम्बंध रखता हूं। 
भगवान तो भक्त के वश में हो जाते हैं, भगवान केवल भक्ति भाव देखते हैं, ऐसे भगवान के लिए शबरी ने स्वयं को अर्पित कर दिया और संसार के लिए आदर्श बन गईं।
जय श्री राम

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