Wednesday 16 November 2016

सती अनसूया जी : पति भक्ति अर्थात महाशक्ति


भाग - ३
पतिव्रता कुछ भी कर सकती है। जो भी करने योग्य है या नहीं करने योग्य है, वह जैसा चाहे, वैसा बना दे। यदि स्त्री पतिव्रत का पालन करती है, जो सर्वश्रेष्ठ भावों को समर्पित है, उसकी भावना कहीं नहीं भटकती। पतिव्रता नारी में बहुत शक्ति होती है। जीवन की दूसरी समस्याओं के समाधान में वे संभव हैं। जैसे ईश्वर कुछ भी कर लेते हैं, जैसे वह संप्रभुता संपन्न हैं, ठीक उसी तरह से पतिव्रता महिलाएं भी कुछ भी कर सकती हैं। 
स्त्रियों का पहले सीमित क्षेत्र था, लेकिन अब विस्तृत क्षेत्र हो गया है, अब वे कार्यालय भी जाती हैं। घर से बाहर निकलकर कई तरह के काम करने लगी हैं। बाहर निकलने से उनकी व्यस्तता बढ़ी, उनकी आत्मनिर्भरता बढ़ी, उनकी पहचान बढ़ी है, उनका धन बढ़ा है। उनका मनोरंजन बढ़ा है, लेकिन इसमें बहुत बड़ी विडंबना उत्पन्न हो गई है, बाहर निकलने से पतिव्रता धर्म बहुत असक्त हुआ है। पहले एक दायरे में रहना होता था, उसमें माता-पिता, बच्चों-पति की सेवा अतिथि सेवा का काम एक दायरे में ही होते थे। सीमित दायरे में रहने से पतिव्रता धर्म का पालन करने में स्त्रियों को काफी सुविधा होती थी, काफी बल मिलता था, लेकिन उन्मुक्त जीवन जब से स्त्रियों का शुरू हुआ है, अनेक तरह के काराबारों में वे सक्रिय हुई हैं, तब से पतिव्रता यज्ञ का अनुष्ठान कमजोर पड़ा है, जिससे संपूर्ण परिवार, समाज, जाति खतरे में पड़ रही है। वैसे ज्यादातर लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है। बच्चों को कौन संभाले, संस्कार कौन दे, पति कार्यालय गए, पत्नी कार्यालय गई, कौन संस्कार दे? समाज का चिंतन कई बड़े चिंतकों ने किया है, भारत ने अपने प्रभुत्व को गंवा दिया। भारत का प्रभुत्व छोटा रह गया। देश की शक्ति के मूल में एक बड़ी भूमिका है पति और पत्नी के परस्पर विश्वास की, सम्बंधों की। अनसूया जी के बारे में चिंतन करते हुए इन बातों पर ध्यान जा रहा है। 
यदि पत्नी पूर्ण रूप से पति के लिए समर्पित होती है, तो समाज, परिवार, जाति, मानवता को अनेक प्रकार की कमजोरियों से बचाया जा सकता है। अब किसी का किसी के लिए संपूर्ण समर्पण नहीं है। 
अनसूया जी अत्रि जी के साथ परलोक सुधार के लिए ही आई थीं। संतति को जन्म देने, संग्रहण करना, उनका संकल्प नहीं था। संकल्प यह था कि आज से दोनों एक हो गए, जैसे एक हाथ में पीड़ा होती है, तो संपूर्ण शरीर की पीड़ा मानी जाती है, ठीक उसी तरह से पति-पत्नी, दोनों एक हो जाते हैं। एक ही के दो भाग, एक पुरुष भाग और दूसरा नारी भाग। परिवार, समाज में पत्नी बनकर जब कोई कन्या आती थी, तो पति का बल बढ़ जाता है। एक नई शक्ति के रूप में पति प्रकट होता है। सनातन धर्म में पतिव्रता का पालन अत्यंत महत्वपूर्ण रूप से स्वीकार किया गया है। एक ही पति से अपने मन, तन को जोडक़र रखना आजकल कम हो रहा है। जब जो अच्छा लगे, वैसा करना चाहिए, क्या यह सोच जीवन के सभी क्षेत्रों में संभव है? जब मन करे, वैज्ञानिक बन जाएं, डॉक्टर बन जाएं, राजनेता बन जाएं, ऐसा तो संभव नहीं है। जहां जो समर्पित हो गया, वहां वह क्षेत्र उसका अपना हो गया। जहां जो लगा हुआ है, पूर्ण समर्पण से लगे, तो उसकी शक्ति बढ़ जाती है।
पतिव्रता धर्म का पालन विश्वव्यापी धर्म है। ऋषियों-महर्षियों ने पतिव्रता का जो प्रतिपादन किया, उसके प्रयोग के लिए लोगों को समझाया, लोगों को इसका अनुरक्त बनाया, यह केवल ब्राह्मणों के लिए नहीं था, यह केवल भारत भूमि के लिए नहीं था, दुनिया के हर व्यक्ति के लिए था। 
पति तभी कामयाब होता है, जब उसके पीछे पत्नी की शक्ति पूरी तरह से लगती है। जब दोनों एक दूसरे के लिए, एक दूसरे के हित के लिए प्रयासरत रहते हैं। पतन के लिए नहीं, उद्धार के लिए प्रयासरत रहते हैं। कहीं भी अपूर्ण समर्पण से उपलब्यिां प्राप्त नहीं होतीं। संपूर्ण समर्पण से ही बड़ी उपलब्धियां प्राप्त होती हैं। 
अनसूया जी पति के प्रति अपने समर्पण के कारण बहुत बड़ी शक्ति में बदल गईं। जैसे सूर्य संपूर्ण संसार को दिन में प्रकाशित करता है, चंद्रमा रात्रि में प्रकाशित करता है, ठीक उसी तरह से अनसूया जी का जो जीवन है, पूरे संसार को पतिव्रता धर्म के लिए प्रेरित करने के लिए आदर्श है। जब वे ब्रह्मा, विष्णु, महेश को बालक बना सकती हैं, तो कितनी अतुलनीय शक्ति उनके पास है। 
आज समर्पण के अभाव में ही समाज भ्रष्ट हो रहा है, समाज का सही मूल्यांकन घट रहा है। सभी महिलाओं को अनसूया जी से प्रेरणा लेकर, बल लेकर अपने जीवन को सुधारना चाहिए। आज महिलाएं जीवन की कमजोरी को दूर करने के लिए यहां-वहां भटकती हैं, कई तरह के लोगों से जुड़ती हैं, किन्तु उन्हें खास कुछ प्राप्त नहीं होता। उन्हें उत्तम चरित्र प्राप्त नहीं होता। 
भगवान जब चित्रकूट में रह रहे थे। वहां काफी लोगों का आना-जाना हो गया था। भगवान ने सोचा कि इस स्थल को भी छोड़ देना चाहिए, कहीं और दूरी पर रहना चाहिए। भगवान ने महर्षि अत्रि के आश्रम में जाकर उन्हें प्रमाण किया, उनका सम्मान किया, आशीर्वाद लिया और उनसे प्रेरणा भी ली। आप आज्ञा दीजिए कि आगे बढूं, ऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त करूं। अत्रि जी ने भी राम जी का बहुत आदर किया। उन्होंने भगवान की एक लंबी वंदना की और कहा कि आपकी शुचिता बनी रहे, आपकी कृपा बनी रहे। 
क्रमश: 

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