Tuesday 11 April 2017

अबलौं नसानी, अब न नसैहौं

भाग - ९
कोई मंदिर में जा रहा है, तो धर्म के लिए नहीं, मोक्ष के लिए जा रहा है। यज्ञ में जाओ, दान करो, तो धर्म है, स्नान के लिए जाओ, तो धर्म, तीर्थ में जाओ, तो धर्म, माता-पिता की सेवा धर्म है। सत्संग में आप आए हो, यह कोई धर्म है, यह कोई अर्थ अर्जन है क्या? यहां तो जितना सुनना, देखना, आना, जाना भी मोक्ष के लिए, जो प्रसाद मिलता है, उसे जीभ से लगाना भी मोक्ष के लिए। 
प्रसाद आपकी भूख मिटाने के लिए नहीं है, प्रसाद यश के लिए नहीं है, प्रसाद अखबारों में छपवाने के लिए नहीं है, वह धर्म नहीं है, काम नहीं है, अर्थ नहीं है, वह मोक्ष के लिए है। जब आपने ब्राह्मण को दिया, तो दान हो गया, वही समर्पण यदि ईश्वर के लिए किया, तो भक्ति हो गई। 
पत्रं, पुष्पं, फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
भगवान की उद्घोषणा है, आप हमें पत्र दीजिए, वही हिन्दी में पत्ता है।
पत्र नहीं है, तो पुष्प चलेगा। पुष्प नहीं है, तो फल चलेगा। फल नहीं है, तो जल दीजिए। जल सबसे सुलभ भगवान का निर्देश है। यह सर्वसुलभ है। मरुभूमि में भी लोग अपने साथ जल रखते हैं। वस्तु देने से भगवान में हमारा मन लगता है। हालांकि भगवान को वस्तु की जरूरत नहीं है, भगवान कोई खाते हैं क्या? लोग बोलते हैं कि  भोग लगाया, उतने का उतना रह गया, भगवान तो खाते ही नहीं, झूठे ही लोग भोग लगाते हैं। आपके मन में भी आता होगा कि भगवान तो खाए नहीं। मुझसे भी लोग पूछते हैं।
इसका समाधान आप सुन लीजिए। अपने सनातन धर्म की मान्यता है कि भगवान खाते और पीते नहीं हैं। 
न वै देवा: तु खादन्ति, न पिबन्ति जलं फलम्।
देवता लोग खाते नहीं, पीते नहीं हैं, तो करते क्या हैं? केवल स्वीकार करते हैं। उनको वो भूख नहीं लगी है, जो आप मिटाएंगे। स्वर्ग लोक में खाने के लिए कम है क्या कि आपके बाजरे की रोटी भगवान खाएंगे। 
भगवान वैसे ही स्वीकार करते हैं, जैसे प्रधानमंत्री जोधपुर में आए और यहां उनके अनुयायियों या पार्टी के लोगों या समर्थकों ने देश की समस्या के निदान के लिए समाधान में बल देने के लिए एक उनको ड्राफ्ट दिया, एक राशि दी, पांच करोड़ रुपए की राशि। प्रधानमंत्री एकदम खुश होकर पूरी गरिमा, रोम-रोम से प्रफुल्लित होकर उस धन को लेते हैं, लेकिन आपको ध्यान होना चाहिए। यह धन उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। प्रधानमंत्री के हस्ताक्षर से रोज अरबों रुपए खर्च होते हैं। करोड़ की राशि प्रधानमंत्री के लिए कुछ नहीं है। भारत सरकार का जो भी खर्च होता है वह प्रधानमंत्री के मार्फत ही होता है। प्रधानमंत्री केवल आपका दिया स्वीकार करता है राष्ट्र के लिए, अपनी पत्नी-बच्चों के लिए नहीं। यह धन प्रधानमंत्री कोष में चला जाता है, इसका एक रुपया भी वह खर्च नहीं करेगा। 
ऐसे ही भगवान केवल स्वीकार करते हैं, भगवान ने स्वीकार किया, तो आपका जीवन धन्य हो गया। जिस नंद-यशोदा के यहां अनेक गायें हैं, लीला के क्रम में भी जिस लाड़ले भगवान के माता-पिता के पास अनेकों गायें हैं, वो गोपियों के पास थोड़े-से मक्खन के लिए जाएगा क्या? 
क्रमश:

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