Saturday 8 April 2017

अबलौं नसानी, अब न नसैहौं

भाग - २ 
लोगों ने तो ईसा मसीह को लटका दिया। कई अहं ब्रह्मास्मि कहने वाले सूफी संतों को मुस्लिम परंपरा के लोगों ने काट-काटकर जलाकर समुद्र में फिंकवा दिया। तमाम हत्याएं हुईं धर्म के प्रचार के लिए। यही हाल ईसाई धर्म का है, लेकिन धन्य है हमारा धर्म, हमारी संस्कृति, हमारी परंपरा, हमारा सबकुछ, जो इन चार्वाकों को भी हमने मारकर गंगा में नहीं बहाया। ऐसे चार्वाक समर्थक, जो परलोक को नहीं मानते, जो वेदों को नहीं मानते, जो मातृ-पितृ की सेवा भावना को नहीं मानते। पितरों को नहीं मानते। जो देवताओं के लोक को, ब्रह्म लोक को नहीं मानते। ये सब बातें बौद्धों और जैनों ने भी कीं। जैन धर्म में भी कहा गया। उन्होंने कहा कि वेदस्य त्रय: कर्तार: - वेदों को बनाने वाले तीन लोग थे - धूर्त, पाखंडी, निशाचर। इधर देखिए, यहां हम कितने सहिष्णु हैं, कितने उदार हैं। कितना हमारा धैर्य है। हमें विश्वास है कि आज नहीं तो कल, ये सब राम भाव में आ ही जाएंगे। वेद भाव में, परलोक भाव में, आस्थाओं में ये तमाम तरह की परंपराएं दुनिया में चलीं, अभी भी चल रही हैं और आगे भी चलेंगी। उनमें हमें ये बात जानने की जरूरत है कि सही विकास कौन और विकास का सही साधन कौन। सही विकास यदि हमारे पास नहीं है, तो हम चोरी करें क्या, बैंक लूटें क्या, हम चारा घोटाला करें क्या, टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला करें क्या? विकास का कौन-सा साधन सही है? विकास का साधन वही है, जो वेदों ने कहा, जो ईश्वर का श्वांस-प्रश्वांस बोध है, अनादि वेद है। जब लोगों के पास में एक पन्ने, पत्ते पर भी लिखा हुआ कुछ नहीं था, तब हमको भगवान ने इन वेदों को दिया था। पूरी मानवता को दिया था। केवल ब्राह्मणों को नहीं, केवल भारतवासियों को नहीं, केवल सनातन धर्म के लोगों को नहीं, केवल जोधपुर, बनारस वालों को नहीं, संपूर्ण संसार के लोगों के लिए भगवान ने अपने श्वांस-प्रश्वांस पुत्र वेदों को दिया। कहा, सत्यम वद। क्या कोई ब्राह्मण ही सत्य बोले और बनिया झूठ बोलता रहे? सभी लोगों को सत्य बोलना चाहिए। जैसा है, वैसा ज्ञान होना और वैसा ही बोलना, ये सत्यम वद है। जो वस्तु जैसी है, उसका वैसे ही सही ज्ञान होना और उसको वैसा ही बोलना। यदि गोमांस खाने वाला भी झूठ बोलेगा, तो उसके लिए लोगों को नफरत होगी, उसके परित्याग का महासंकल्प होगा, निश्चित रूप से एक बार झंझावात आ जाएगा कि नहीं ये झूठा नहीं चलेगा। झूठ को कोई नहीं चाहता। मर्डर करने वाला, लूटने वाला, तमाम अवैध धंधा करने वाला पति भी चाहता है कि जब मैं घर जाऊं, तो मेरी पत्नी सत्य बोले। सत्य ईश्वर का बड़ा प्रतिष्ठित स्वरूप है। सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म... वेदों ने कहा, ईश्वर सत्य है। तीनों कालों में जो बाधित नहीं होता, उसे सत्य कहते हैं। तो भगवान की दया से वो सभी ज्ञान प्राप्त हुए। उनकी व्याख्या स्मृति के रूप में हुई। उनका व्याख्यान पुराणों के रूप में हुआ। उनका व्याख्यान इतिहास के रूप में हुआ। ये चार हमारे सनातन धर्म के अंग हैं - वेद, स्मृति, पुराण और इतिहास। 
इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत्। 
ये सरलीकरण है। इसी का सुग्राह्य स्वरूप है, इसी का परिष्कार है। ये कोई ऐसे ही कल्पित नहीं है। कालिदास ने तो कहा कि पुराणमित्येव न साधु सर्वम्, लेकिन वो दूसरे अर्थ में पुराण है। पुराण तो वेदों की ही व्याख्या हैं। रामायण तो वेदों की ही व्याख्या है। महाभारत तो वेदों की ही व्याख्या है। मनु स्मृति को तो यहां तक कहा जाता है कि वेद वाणी को जो महत्ता, प्रामाणिकता, प्रेरकत्व प्राप्त है, जो उसको गरिमा प्राप्त है, वो सब मनु वाणी को भी प्राप्त है। उसकी बड़ी महिमा है। महाभारत काल वगैरह भी मनु को उद्घृत करते हैं। 
क्रमश:

No comments:

Post a Comment