Tuesday 11 April 2017

अबलौं नसानी, अब न नसैहौं

भाग - १२
मैं कह रहा हूं कि कभी भी कुछ भगवान को अर्पित करो, तो प्यार से अर्पित करो। दुर्भावनाओं को निकालो, संयत बनाओ मन को, कभी इधर भाग रहा है, तो कभी उधर भाग रहा है। तमाम दुर्भावों से युक्त मन नहीं चलेगा। मन में प्यार का प्राकट्य करो, प्यार प्रवाहित करो और उसके बाद समर्पण करो, तो भगवान स्वीकार करेंगे। यह हुआ कल्याण का मार्ग, मोक्ष का मार्ग। यह दान नहीं हुआ। दान तो बहुत छोटी चीज है। सनातन धर्म में जहां-जहां पूजा की बात आती है, वहां-वहां जरूर पुराणों में, स्मृतियों में इतिहासों में कहीं भी यदि कहा कि उन्होंने पूजन किया, तो यह जरूर कहते हैं कि प्रेम के साथ पूजन किया। भरत जी पूजन करते हैं राम की चरण पादुका का, नंदी ग्राम में सिंहासन पर प्रतिष्ठित करके राजा के रूप में उनका सम्मान करते हैं, उनकी आज्ञा लेते हुए, उनके निर्देश से पूरे राष्ट्र का संचालन भरत जी कर रहे हैं। यहां से रामराज्य शुरू हो गया। राम जी की चरण पादुका राज्य का संचालन कर रही है। तुलसीदास जी ने अयोध्या कांड के अंत में लिखा है, 
नित पूजत प्रभु पाँवरी 
भरत जी पादुका की रोज पूजा करते हैं। भरत जी जानते हैं, मेरे साथ चरण पादुका जी आई हैं, मैंने उनको तैयार करवाया। भरत जी चरण पादुका का पूजन कैसे करते थे, काग भुसंडी रामायण में उनका वर्णन मिलता है। मंत्र-तंत्र की भाषा में लिखा था, उसे कोई समझ नहीं पाता था। पंडित राजेश्वर प्रसाद द्राविड़ ने समझाया था। आप ध्यान दीजिए कि भरत जी पूजन कैसे करते हैं, 
तुलसीदास जी ने लिखा - प्रीति न हृदयँ समाति।
जैसे नदी अपने तटों को लांघ जाती है, उछाल लेकर तटों से बाहर आ जाती है, अब तट नहीं रह पाए, तट सामथ्र्यहीन हो गए, वैसे ही प्रेम इतना उमडऩा चाहिए कि लगे कि आपके संभाल में नहीं आ रहा है। भरत जी ऐसा पूजन करते हैं। तुलसीदास जी को बड़ा ज्ञान है शास्त्रों का, उन्हें मालूम है कि कैसे भक्ति होती है। यहां तो अनेक लोग पूजन करते हैं, तो चेहरा पहले से भी खराब हो जाता है। आज कई लोग बदमाश हो गए हैं, पूजन के समय हलो-हलो भी करते हैं, अपने पास मोबाइल रखना चाहिए क्या पूजन के समय? हाईकोर्ट में कोई मोबाइल लेकर जाए, तो रजिस्ट्रेशन भी रद्द हो जाएगा, लेकिन जब मेरे पास वकील आते हैं, तो मोबाइल रखते हैं! अब लोग गलत करने लगे हैं। कथा में बैठे हुए हैं पंडित जी पूजा करवा रहे हैं और साथ ही साथ मोबाइल भी देख रहे हैं, यह पूजन नहीं है। आपको पूजन के लिए अवसर मिला है, यह बहुत संक्षिप्त संसाधन में मोक्ष की यात्रा हो रही है। इसमें किसी मोबाइल की जरूरत है क्या, सत्संग में मोबाइल, मंदिर की पूजा में मोबाइल, गुरु के दर्शन और सामिप्य में मोबाइल, माता-पिता के पास दो मिनट के लिए बैठे हैं, उसमें भी मोबाइल? फोन आता है, तो मोबाइल लेकर लोग ऐसे दौड़ते हैं कि कोई बहुत बड़ी समस्या आ गई हो। मैं भी यहां मोबाइल लेकर आता, तो कैसा लगता आपको बताइए। 
भगवान की दया से जब भी अवसर मिले, तो पूरे भाव से पूजन करें। हमें अपना संपूर्ण जीवन मोक्ष के लिए ही जीना चाहिए। तो गृहस्थी कैसे चलेगी? हमारा देखना, बैठना, बोलना सब मोक्ष के लिए है। 
हम लोग रामानंदाचार्य की पंरपरा के हैं। जो राम भक्ति के प्रवर्तक महान संत थे। जब-जब त्रेता का अवतरण होगा, तब-तब राम जी प्रकट होंगे - 
संभवामि युगे युगे।
और उनकी भक्ति निरंतर चलती रहती है, उसी भक्ति को जगद्गुरु रामानन्दाचार्य जी ने आगे बढ़ाया। राम भक्ति धारा को अत्यंत व्यापकता प्रदान की। रामभक्ति धारा को रविदास की झोंपड़ी तक पहुंचा दिया, जहां जूते सिए जाते थे और चमड़ा पीटा जाता था। यह काम भारत सरकार नहीं कर सकती, जब करेंगे, तो रामानंदाचार्य करेंगे और उनके आप जैसे भक्त करेंगे। ये प्रधानमंत्री के वश में नहीं। प्रधानमंत्री रोड बनवा देगा, बिजली लगवा देगा, यही सब काम करें, यही बहुत है। धन्य है संतों का जीवन। 
क्रमश:

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